Design By Ajay Mohanty; Image Generated By Chatgpt
लोक सभा चुनावों के लिए जैसे-जैसे अभियान तेज हो रहा है, राजनीतिक दल अपना संदेश हर तरफ फैलाने के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग कर रहे हैं। इस प्रौद्योगिकी की मदद से भाषणों का तुरंत अनुवाद हो जाता है, डिजिटल ऐंकर तैयार होते हैं और दिवंगत नेताओं के वीडियो बनाने में भी मदद मिलती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर में वाराणसी में एक कार्यक्रम के दौरान तमिल भाषी दर्शकों के लिए अपने भाषण का अनुवाद करने के लिए एआई आधारित टूल भाषिणी का उपयोग किया था। उन्होंने कहा था, ‘मैं पहली बार एआई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहा हूं और भविष्य में भी इसका उपयोग करूंगा।’
महीने भर बाद मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में दर्शकों से उनके एआई से अनूदित भाषणों को सुनने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) के क्षेत्रीय भाषा हैंडल और यूट्यूब का रुख करने के लिए कहा था। भारतीय जनता पार्टी ने एक यूट्यूब चैनल बनाया है जो प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों को बांग्ला, तमिल, मलयालम और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कर सुनाता है।
भाजपा की तरह ही उसके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) भी चुनाव प्रचार के लिए जीवंत ऑडियो-विजुअल मीडिया के लिए एआई का उपयोग कर रहे हैं। तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक एआई का उपयोग कर ऐस वीडियो बना रही है जिसमें प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के दिग्गज नेता रहे एम करुणानिधि मतदाताओं से वोट देने की अपील करते दिख रहे हैं। करुणानिधि का निधन 2018 में 94 वर्ष की आयु में हो गया था।
पश्चिम बंगाल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) भी एआई आधारित ऐंकर समता का उपयोग कर रही है। समता चुनावी अभियान में पार्टी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की पहुंच बढ़ाने के लिए वीडियो तैयार कर रही है। पॉलिटिकल एनालिटिक्स इंडिया (पीए-आई) के संस्थापक निरंजन आर का कहना है, ‘अब सभी पार्टियां एआई के साथ दिलचस्प सामग्री चाहती हैं। इससे पार्टियों को अपने पुराने नेताओं की आवाज और लोकप्रिय नारों के रूप में उनकी आभा वापस लाने में मदद मिल रही है और इसका इस्तेमाल सकारात्मक के साथ-साथ व्यंग्यात्मक तरीके से भी किया जा रहा है।’
ध्यान खींचने के बाद भी चुनावों में अभी एआई का उपयोग शुरुआती अवस्था में है और प्रयोगात्मक है। राजनीतिक विश्लेषक दिग्गज मोगरा ने कहा, ‘बड़े राजनीतिक दल अभी भी बड़े पैमाने पर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के उपयोग के प्रति सशंकित हैं। इसकी शुरुआत एक बड़े विचार के साथ हुई थी, लेकिन उचित जानकारी की कमी, अत्यधिक बिक्री और औसत दर्जे की सामग्री ने इसे खराब किया है।’
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के बारे में अत्यधिक प्रचार के कारण वास्तविक मांग के मुकाबले एआई आधारित सामग्री बहुतायत हो गई है। सभी राजनीतिक दलों को क्लोन वीडियो, फोटो और वीडियो फाइल जैसी समान एआई आधारित सामग्री की पेशकश मिल रही है। राजनीतिक सामग्री बनाने वाले स्टूडियो और फर्म चुनावों को एआई के उपयोग के प्रायोगिक परीक्षण के तौर पर देख रहे हैं और बाद में प्रौद्योगिकी पर प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं।
खुद को सिंथेटिक मीडिया कंपनी बताने वाली द इंडियन डीपफेकर के संस्थापक दिव्येंद्र सिंह जादौन ने कहा कि वास्तव में चुनाव प्रचार में एआई का इस्तेमाल छोटे पैमाने पर किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘इसका कारण यह भी हो सकता है कि राजनीतिक दल अपने कंटेंट को पहले ही बाहर नहीं लाना चाहते हैं क्योंकि इससे विपक्षियों को बढ़त मिल सकती है। या तो वे उनके खिलाफ ही इसका उपयोग शुरू कर सकते हैं या फिर समान कंटेंट तैयार कर सकते हैं।’
चेन्नई के विजुअल इफेक्ट स्टूडियो म्युनोयिम एआई के संस्थापक सेंथिल नयागम ने कहा, ‘तमिलनाडु में चुनाव (19 अप्रैल) होने में अब महज कुछ घंटे बचे हैं और हमने इसके लिए कंटेंट तैयार कर लिया है। अब यह राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है कि वे इस कंटेंट का कैसे उपयोग करेंगे। हमें अभी भी अपने अधिकतर कंटेंट पर मतदाताओं की प्रतिक्रिया का इंतजार है।’ म्युनोयिम ने ही करुणानिधि का जीवंत डिजिटल संस्करण तैयार किया है।
नियामकीय चिंता और मतदाताओं के दृष्टिकोण के अलावा एआई आधारित कंटेंट में तकनीकी समस्याएं भी हैं। नयागम का कहना है, ‘भारतीय चेहरे बनाने में एआई बहुत कुशल नहीं है। हम अपने डेटासेट का विस्तार कर रहे हैं और हम अगले कुछ महीनों में इसमें सुधार की कोशिश कर रहे हैं। कोई भी राजनीतिक दल ऐसे कंटेंट पेश नहीं करना चाहेंगे जो उन पर प्रतिकूल असर डाले या फिर विपक्षी पार्टियां उनके खिलाफ ही उपयोग करने लगे।’
एआई का नकारात्मक पहलू दुनिया भर की सरकारों के लिए चिंता का विषय है, खासकर चुनावों के दौरान। राजनीतिक दल एआई का रुख कर रहे हैं, लेकिन इसका सबसे बड़ा जोखिम यही है कि इस तकनीक का इस्तेमाल फर्जी सूचनाएं फैलाने के लिए किया जा रहा है। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2024 में कहा गया है कि एआई आधारित गलत सूचनाएं भारत में चुनावों के दौरान सबसे बड़ा खतरा है।
फर्जी वीडियो और तस्वीरों पर विवाद होने और सरकार द्वारा सलाह जारी होने के बाद बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने छेड़छाड़ किए जाने वाले कंटेंट के प्रसार को रोकने के लिए सख्त कदम भी उठाए हैं। व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक की मूल कंपनी मेटा मई से छेड़छाड़ किए गए कंटेंट को पहचानने के लिए मेड विद एआई लगे वीडियो जारी करेगा। अप्रैल में एक ब्लॉग पोस्ट के जरिेये कंपनी ने कहा था कि उसने भारत में अपने तीसरे पक्ष के तथ्य जांच नेटवर्क का विस्तार किया है और अब 16 भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी के लिए उसके पास 12 भागीदार हैं।
गलत सूचनाओं से निपटने और अपने प्लेटफॉर्म पर पारदर्शिता बढ़ाने के लिए मेटा ने पिछले महीने भारत के लिए एक विशिष्ट चुनाव कमांड केंद्र की शुरुआत की है। इंस्टाग्राम पर कंपनी ने विभिन्न देशों में चुनावों से पहले राजनीतिक कंटेंट को प्रतिबंधित कर दिया है।
गूगल ने पहले ही अपने एआई प्लेटफॉर्म जेमिनी को भारतीय चुनावों पर सवालों का जवाब देने से रोकने की घोषणा की है। गूगल के स्वामित्व वाली वीडियो शेयरिंग प्लेटफॉर्म यूट्यूब ने हाल ही में एक ऐसा टूल पेश किया है जिसके जरिये क्रिएटर उपयोगकर्ताओं को यह बताएंगे कि उनके कंटेंट का कोई हिस्सा सिंथेटिक मीडिया अथवा जेनरेटिव एआई की मदद से तैयार किया गया है।
यूट्यूब ने उन विज्ञापनदाताओं के 73 लाख से अधिक चुनावी विज्ञापनों को हटा दिया है जिन्होंने साल 2023 में सत्यापन नहीं कराया था। एक्स ने 4 अप्रैल को भारत में अपना कम्युनिटी नोट्स प्रोग्राम शुरू करने की घोषणा की थी। इसके तहत उपयोगकर्ता तथ्य जांच ट्वीट्स में शामिल हो सकते हैं।