विनिर्माण में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2027-28 (वित्त वर्ष 2028) से एल्युमीनियम, तांबा और जस्ता जैसी अलौह धातुओं से बनने वाले नए उत्पादों में कम से कम 5 फीसदी रिसाइकल्ड सामग्री शामिल करना अनिवार्य कर दिया है।
यह आवश्यकता धीरे-धीरे और बढ़ेगी फिर वित्त वर्ष 2029 में इसे 10 फीसदी तक किया जाएगा। वित्त वर्ष 2031 तक एल्युमीनियम के लिए 10 फीसदी, तांबा के लिए 20 फीसदी और जस्ता के लिए 25 फीसदी तक का लक्ष्य निर्धारित किया जाएगा। यह पहल प्राथमिक संसाधनों पर देश की निर्भरता कम करने और खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए की गई है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 20 अगस्त को जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, 1 अप्रैल, 2025 से खतरनाक एवं अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन और सीमा पार आवाजाही) दूसरा संशोधित नियम, 2024 लागू होगा। नए नियमों में न केवल अलौह धातु उत्पादकों को अपने उत्पादों के एक निर्दिष्ट प्रतिशत हिस्से को रिसाइकल करने की जरूरत होगी बल्कि स्क्रैप धातुओं के पर्यावरणीय तौर पर बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए एक विस्तारित उत्पादक दायित्व (ईपीआर) ढांचे की भी शुरुआत की जाएगी।
हल्के वजन और जंगरोधी होने के कारण एल्युमीनियम का महत्त्व होता है, ये खूबिंया इसे परिवहन, पैकेजिंग और निर्माण के तौर पर उपयोग में लाने के लिए भी आदर्श बनाती हैं। तांबे की पहचान बेहतरीन संवाहक के तौर पर है और इसे बड़े पैमाने पर बिजली की वायरिंग, प्लंबिंग और कई औद्योगिक अनुप्रयोगों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है। जस्ता को आमतौर पर जंग से बचाने के लिए अन्य धातुओं के साथ सुरक्षात्मक कोटिंग के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है और यह पीतल जैसी मिश्र धातुओं में एक प्रमुख घटक है।
खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन नियम पहली बार 1989 में पेश किए गए थे और खतरनाक कचरों के सुरक्षित प्रबंधन के लिए साल 2000, 2003, 2008 और 2016 में इसमें संशोधन किए गए।