भारत में 1901 के बाद से 2024 सबसे गर्म साल रहा, जिसमें औसत न्यूनतम तापमान दीर्घावधि औसत से 0.90 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इस अवधि में वार्षिक औसत तापमान 25.75 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो दीर्घावधि औसत से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक है। यह भी सवा सौ साल में सबसे अधिक है। ये आंकड़े मौसम विभाग ने बुधवार को जारी किए हैं।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के अनुसार अधिकतम औसत तापमान 31.25 डिग्री सेल्सियस रहा, जो सामान्य से 0.20 डिग्री अधिक है। वर्ष 1901 के बाद से यह चौथा मौका है जब अधिकतम औसत तापमान इस बिंदु तक पहुंचा है। इसी प्रकार वार्षिक न्यूनतम औसत तापमान 20.24 डिग्री सेल्सियस रहा जो सामान्य से 0.90 डिग्री अधिक दर्ज किया गया।
साल 2024 ने बढ़ते तापमान के मामले में 2016 को पीछे छोड़ दिया है। उस साल भूमि सतह पर वायु तापमान सामान्य से 0.54 डिग्री सेल्सियस अधिक था। मौसम विभाग के प्रमुख ने बताया कि सबसे अधिक औसत न्यूनतम तापमान जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में रहा जबकि दूसरा सबसे अधिक फरवरी में दर्ज किया गया।
मौसम विभाग के अनुसार इस साल जनवरी से मार्च के दौरान उत्तर भारत में वर्षा सामान्य से कम रहने की संभावना है, जो दीर्घावधि औसत (एलपीए) के 86 प्रतिशत से भी कम होगी। इसका सीधा असर रबी फसलों पर पड़ सकता है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी राज्य सर्दियों (अक्टूबर से दिसंबर) में गेहूं, मटर, चना और जौ सहित रबी फसलों की खेती करते हैं और गर्मियों (अप्रैल से जून) में उनकी कटाई करते हैं। सर्दियों के दौरान पश्चिमी विक्षोभ के कारण होने वाली वर्षा, उनकी खेती में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साल 1971-2020 के आंकड़ों के आधार पर इस अवधि के दौरान उत्तर भारत में औसत वर्षा का स्तर लगभग 184.3 मिमी है।
मौसम विभाग के पहले पूर्वानुमान के उलट पूर्वी, उत्तर-पश्चिम और पश्चिम-मध्य क्षेत्रों के कुछ इलाकों को छोड़कर जनवरी में भारत के अधिकतर हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। यही नहीं, जनवरी में मध्य भारत के पश्चिमी और उत्तरी भागों में शीतलहर दिवस सामान्य से अधिक रह सकते हैं। इसका मतलब है कि जनवरी में उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ेगी।
इस बीच, यूरोपीय जलवायु एजेंसी ‘कोपरनिकस’ के अनुसार, 2024 संभवतः अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा तथा यह ऐसा पहला वर्ष होगा जब वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक (1850-1900) स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा होगा। जलवायु विज्ञानियों के दो स्वतंत्र समूहों (वर्ल्ड वैदर एट्रीब्यूशन तथा क्लाइमेट सेंट्रल) द्वारा किए गए वार्षिक अध्ययन के अनुसार विश्व में साल 2024 में अतिरिक्त 41 दिन भीषण लू वाले रहे।
मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि साल 2024 के दौरान न्यूनतम तापमान में वृद्धि वाकयी बहुत अधिक है। उन्होंने कहा, ‘देश के अधिकांश हिस्सों में खास कर मॉनसून के बाद और जाड़ों में न्यूनतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है।’ मौसम विभाग ने कहा कि जनवरी में ला-नीना का प्रभाव दिख सकता है, लेकिन यह बहुत कम समय के लिए होगा।
वैज्ञानिकों के मुताबिक जून 2023 में पहली बार मासिक वैश्विक तापमान ने 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार की थी, यही स्थिति जुलाई 2024 को छोड़ शेष अवधि में बनी रही। पेरिस समझौते के अनुसार यदि तापमान लगातार 1.5 डिग्री की सीमा से ऊपर बना रहता है तो यह 20-30 वर्षों तक निरंतर तापमान वृद्धि को संदर्भित करता है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि दुनिया अब उस चरण में प्रवेश कर गई है जब तापमान लगातार 1.5 डिग्री की सीमा से अधिक बना रह सकता है। वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 के आधार स्तर के मुकाबले पहले ही 1.3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है।
चीन भी हो रहा गर्म
चीनी मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार चीन में भी साल 2024 पिछले छह दशकों के आंकड़ों की तुलना में सबसे अधिक गर्म रहा। इससे पिछला साल भी सबसे गर्म दर्ज किया गया था और इस साल उसका भी रिकॉर्ड टूट गया। चीन में पिछले साल औसत तापमान 10.92 डिग्री सेल्सियस (51.66 फॉरेनहाइट) दर्ज किया गया था, जो 2023 के मुकाबले 1 डिग्री अधिक था। खास यह कि 1961 में जब से मौसम संबंधी आंकड़ों की तुलना शुरू हुई, उसके बाद 10 सबसे अधिक गर्म वर्ष 21वीं सदी में ही रहे।