बचत खाते पर ब्याज भुगतान की गणना करना हमेशा से एक विवादास्पद विषय रहा है।
खाताधारकों ने पाया है कि महीने में ज्यादा समय तक बचत खाते में अधिक नकदी होने के बावजूद भुगतान किया गया ब्याज कम था। इसकी वजह यह है कि ब्याज की गणना महीने के 20 दिनों में खाते में उपलब्ध न्यूनतम राशि के आधार पर की जाती है।
इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि अधिकांश लोग बचत खाते पर मिलने वाले ब्याज की गणना पर ध्यान नहीं देते हैं क्योंकि इस पर प्रतिफल कम मिलता है। यद्यपि, कर अधिकारी देनदारियों की गणना करते समय इसे भी शामिल करता है।
हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बचत खाते की ब्याज दरों में भेद-भाव पर अपनी निगाह डाली है। आरबीआई की दखलंदाजी से अगले साल अप्रैल से बचत खाते पर मिलने वाली ब्याज की गणना के तरीके बदल जाएंगे। नई प्रणाली लागू होने के साथ ही आय पर ध्यान देना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा क्योंकि ब्याज की राशि अधिक होगी। नई प्रणाली को समझने से पहले आइए एक नजर पुरानी प्रणाली पर डालते हैं।
आम तौर पर बचत खाता वह होता है जिसमें लोग अपना वेतन जमा करते हैं। कार्यशील पूंजी जैसे कि मासिक खर्चे आदि की जरूरतें इसी खाते से पूरी की जाती हैं। परिणामस्वरूप इस खाते के नकदी स्तर में घट-बढ़ चलता रहता है।
कुछ बैंकों ने तिमाही आधार पर इन खातों में 5,000 या इससे अधिक की राशि अनिवार्य कर दी है। ऐसी कुछ सीमाओं को देखते हुए बचत की राशि पर मिलने वाला सालाना ब्याज भी सबसे कम 3 से 3.5 प्रतिशत का है। हालांकि, विवाद का मुद्दा ब्याज दरें नहीं है बल्कि इन खातों पर दिया जाने वाला ब्याज है।
वर्तमान में ब्याज की गणना मासिक आधार पर की जाती है, लेकिन खाताधारकों को ब्याज का भुगतान तीसरे या छठे महीने के अंत में किया जाता है। सबसे ज्यादा विवादास्पद वह राशि है जिसके आधार पर ब्याज की गणना होती है। किसी महीने की 10 तारीख से लेकर महीने के अंत तक खाते में उपलब्ध न्यूनतम राशि के आधार पर बैंक ब्याज देते हैं।
चलिए मान लेते हैं कि आपके खाते में महीने की शुरुआत में एक लाख रुपये हैं जो 15 तारीख तक बढ़ कर 1.5 लाख रुपये हो जाते हैं। लेकिन, निवेश और अन्य खर्च की बाध्यता की वजह से उसी महीने की 28 तारीख को खाते में मात्र 50,000 रुपये बचते हैं। अब बैंक आपको इस 50,000 रुपये पर ब्याज देगा।
खाते में उपलब्ध बड़ी राशि पर ब्याज-गणना के समय विचार नहीं किया जाएगा। ऐसी गणनाएं मासिक आधार पर की जाती हैं। वर्तमान परिस्थितियों में बैंकों को न्यूनतम जमा राशि पर ब्याज देने की अनुमति है इसलिए इसे लागू करना आसान रहा।
व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो इसके कई मतलब निकलते हैं। जब खाते में जमा रकम का सवाल उठता है तो ब्याज गणना के लिए केवल उस राशि पर विचार किया जाता है जिसे महीने की 10 तारीख से पहले जमा किया गया होता है। इसके बाद बारी आती है, न्यूनतम जमा राशि की गणना की। स्पष्ट है कि 10 तारीख के बाद जमा की गई राशि को ब्याज की गणना के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाता है।
इसके अलावा, जब बात चेक या ऋण की मासिक किस्त की होती है तो 10 तारीख के बाद की ऐसी सभी निकासी से वर्तमान जमा रकम कम ही होती है। यह एक ऐसी बात है जिससे ज्यादातर लोग प्रभावित होते हैं। अगर आपके बचत खाते में एक अप्रैल को 12,000 रुपये हैं और 5 अप्रैल को आप इसमें 5,000 रुपये जमा करवाते हैं लेकिन 15 तारीख को 10,000 रुपये निकाल लेते हैं तो शेष जमा राशि 7,000 रुपये होगी।
25 अप्रैल को अगर आप 30,000 रुपये जमा करते हैं तो जमा रकम बढ़ कर 37,000 रुपये हो जाएगी। बचत खातों की ब्याज गणना की वर्तमान विधि के अनुसार 7,000 रुपये पर ब्याज की गणना की जाएगी जिसके फलस्वरूप आपको 20 रुपये का भुगतान किया जाएगा। इसका मतलब हुआ कि ब्याज गणना के लिए निकासी पर तो विचार किया गया लेकिन जमा करवाये गए चेक पर ध्यान नहीं दिया गया।
ब्याज गणना की नई प्रणाली के तहत बचत खातों में दैनिक उपलब्ध राशि के आधार पर ब्याज का भुगतान किया जाएगा। इसका अर्थ है कि किसी बचत खाताधारक को निवेश गणना के उच्च आधार का लाभ मिलेगा अगर एक बड़ी राशि खाते में दीर्घावधि तक पड़ी रहती है।
यह बिल्कुल उस ऋण की तरह है जहां दैनिक कटौती की वजह से किसी व्यक्ति को कम ब्याज दर का भुगतान करना पड़ता है। ऋण और जमा दोनों के लिए एक जैसी प्रणाली प्रयोग में लाने के प्रस्ताव के साथ आरबीआई यह सुनिश्चित करना चाहता है कि दोनों तरह के लेन-देन के ब्याज की गणना में एकरूपता रहे। आप उम्मीद कर सकते हैं कि अगले साल अप्रैल से आपको अपने बचत खाते में अच्छा ब्याज मिलने लगेगा।
