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कम से कम कितनी हो बीमा की राशि

Last Updated- December 10, 2022 | 8:51 PM IST

जीवन बीमा की राशि विभिन्न विधियों से निधारित की जा सकती हैं। इनमें से एक है- आय और व्यय प्रतिस्थापन विधि।
अमित जीवन-बीमा संबंधी जरूरतों की गणना करने की आय प्रतिस्थापना विधि से भली भांति अवगत हैं और कुछ अन्य उपाय जानना चाहते हैं।
जब आय-प्रतिस्थापन विधि द्वारा किसी व्यक्ति के लिए उचित बीमा-रकम की गणना की जाती है तो अधिकांश लोग उस बीमा-राशि को लेते हुए झिझकते है। ऐसा भी हो सकता है कि इस विधि द्वारा प्राप्त बीमा रकम की किश्तें देने में भी अधिकांश व्यक्ति सक्षम न हों, क्योंकि इस आधार पर बीमा राशि अधिकतम होती है।
इस प्रकार, आय प्रतिस्थापन की विधि एक व्यक्ति द्वारा चुनी जाने वाली बीमा-राशि की उच्चतम सीमा निर्धारित करता है। परिवार की सामान्य जीवन-शैली को बरकरार रखने के लिए आवश्यक कम से कम बीमा राशि की गणना के लिए व्यय-प्रतिस्थापन विधि उपयोग में लाया जाता है।
इसमें, उत्तरजीवी सदस्यों के आश्रित बने रहने की अवधि तक में होने वाले खर्चे को ध्यान में रखकर बीमा किया जाता है। हम आमित का ही मामला लेते हैं। मान लेते हैं कि उनके परिवचार का पूरा खर्चा प्रतिवर्ष अनुमानत: 5 प्रतिशत की दर से बढेग़ा (वास्तव में विभिन्न वस्तुओं की दर में सालाना बढ़ोतरी अलग-अलग होती है)। हम यह भी मानकर चलते हैं कि अमित की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी नौकरी नहीं करेंगी।
अमित की पत्नी, जागृति, अभी 39 वर्ष की हैं। उनके एक बेटा है, रोहित। रोहित सातवीं कक्षा में पढ़ाई करता है। उसके स्कूल की फीस 1200 रुपये प्रति महीना है। उनका परिवार का खर्चा महीने में 28,000 रुपये या साल में 3.36 लाख रुपये है। हम लोग यह मानकर प्लान करेंगे कि अमित की पत्नी 85 वर्ष तक जीवित रहेंगी।
सुरक्षा के खयाल से हम यह भी मानकर नहीं चल रहे हैं कि रोहित की पढ़ाई के बाद खर्चों में कोई कमी आएगी, क्योंकि मेडिकल के खर्चों का भी प्रबंध करना है। व्यय प्रतिस्थापन विधि द्वारा आवश्यक बीमा राशि की गणना के लिए हम लोग पूरे खर्चे में से उस रकम को घटा देंगे जिसकी जरूरत अमित की मृत्यु के बाद नहीं होगी।
इस प्रकार, अमित के गुजर जाने की दशा में, आज लगभग 23,800 रुपये या 2.86 लाख रुपये की सालाना आवश्यकता होगी। हम यह भी मान लेते हें कि स्नातक की पढ़ाई में 10 लाख (2.5 लाख प्रति वर्ष के हिसाब से चार वर्षों के लिए) और स्नातकोत्तर की पढ़ाई में 15 लाख (7.5 लाख प्रति वर्ष, दो वर्षों के लिए) का खर्चा आएगा।
जब स्कूल की पढ़ाई समाप्त हो जाएगी तो उस साल के बाद हम पूरे खर्चे में उसे शामिल नहीं करेंगे, और परिणामस्वरूप कुल खर्च में 9 प्रतिशत की कमी हो जाएगी। अब 7 प्रतिशत का डिस्काउन्ट मानकर, हम सारे खर्चों को आज के मूल्यानुसार कम करते हैं। साल दर साल होने वाले कुल खर्च का वर्तमान मूल्य 77.25 लाख रुपये बनता है।
हालांकि, आज की तारीख में अमित के पास 44.36 लाख रुपये की बचत राशि है, जिसे उसने अपनी मेहनत की कमाई से बचाया है। 27 लाख रुपये की उसकी जीवन बीमा पॉलिसी है। उसकी देनदारी 6 लाख रुपये की है। इससे उनके परिवार का जोखिम 67.34 लाख रुपये कम हो जाता है, क्योंकि यही वह राशि है जो उसे मिल पाएगा। अब खर्चों के वर्तमान मूल्य और क्षति-पूर्ति के लिए आवश्यक रकम में 9.91 लाख का अंतर है।
अपने परिवार के आदर्श व्यय प्रतिस्थापन के लिए उसे तुरंत 10 लाख रुपये का अतिरिक्त बीमा करवाने की जरूरत है। यहां हम मान लेते हैं कि जागृति अपने पीछे कोई धनराशि नहीं छोड़ जाएगी। भविष्य के बारे में सही-सही कुछ भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसलिए, सुरक्षा के तौर पर अमित को गणना द्वारा प्राप्त बीमा की रकम से 50 प्रतिशत अधिक अर्थात् लगभग 15 लाख रुपये का बीमा करवाने की सलाह दी जानी चाहिए।
हम लोगों ने अमित के परिवार की आर्थिक सुरक्षा हेतु उसकी बीमा संबंधी आवश्यकताओं की गणना की जिसमें उनकी तत्काल मृत्यु को ध्यान में रखा गया है। बीमा की राशि साल दर साल कम होती जाएगी क्योंकि उस अवधि में अमित की बचत और संपत्ति में बढ़ोत्तरी होगी। इसके लिए, उस अवधि में बीमा को क्रमश: कम करते हुए, विभिन्न कालावधियों की उपयुक्त पॉलिसी, जो समय के साथ घटने वाली होती है, ली जा सकती है। टर्म पॉलिसी सबसे अधिक उपयुक्त होगी।
संक्षेप में कहें तो व्यय प्रतिस्थापन की विधि में किसी व्यक्ति की बीमा-जरूरतों की आवश्यक राशि की गणना के लिए निम्नलिखित चरणबद्ध तरीके का इस्तेमाल किया जाता है।
भविष्य के खर्चों का वर्तमान मूल्यानुसार आकलन किया जाता है
कमाने  वाले की जीवन बीमा, संपत्ति का मूल्य और तत्कालीन बचत को घटा दिया जाता है
वैसी सब देनदारी जोड दी जाती है जिसका भुगतान बीमा लेने वाले को तुरंत करना पड सकता है
परिणामस्वरूप जो रकम प्राप्त होती है, उस रकम के बराबर की बीमा करवाने की जरूरत है।
बीमा जरूरतों के आकलन में इस विधि को सबसे निचले स्तर का समझना चाहिए जबकि आय-प्रतिस्थापन विधि को बीमा संबंधी आवश्यकताओं के आकलन की ऊपरी सीमा माननी चाहिए।

First Published - March 23, 2009 | 3:08 PM IST

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