निस्संदेह समूचे विश्व में अभी नकदी की भारी कमी है और सभी केंद्रीय बैंक जी-जान से जुटे हुए हैं जिससे कि उनकी वित्तीय प्रणाली दुरुस्त रह सके।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी कोई अपवाद नहीं है। आरबीआई ने अभी तक नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर)में 3.5 फीसदी की कटौती कर इसे 5.5 प्रतिशत कर दिया है साथ ही एसएलआर में 1 प्रतिशत की कटौती कर 24 प्रतिशत कर दिया है।
ये सारे उपाय घरेलू वित्तीय प्रणाली में तरलता लाने और फंड की लागत घटाने की दिशा में किए गए हैं। इस परिस्थिति में ‘नकदी ही राजा है’ जैसी लोकोक्ति सार्थक प्रतीत होती है। वैसी कंपनियां जिनके पास नकदी की अधिकता है वे ऐसी कठिन परिस्थिति में अन्य कंपनियों की तुलना में लाभ की अवस्था में हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि कठिन ऋण परिस्थितियों से निपटने, सस्ते मूल्यांकन वाली परिसंपत्तियों का अधिग्रहण करने तथा शेयरों की पुनर्खरीद करने या लाभांशों का भुगतान करने में इससे काफी मदद मिलती है। पिछले कुछ महीनों में बाजार में जबर्दस्त गिरावट आई है।
स्मार्ट इन्वेस्टर ने कई सूचीबध्द कंपनियों की यह जानने के लिए पड़ताल की कि कारोबार, परिसंपत्तियों की बिक्री या पहले बेचे गए इक्विटी से कंपनी ने कितनी नकदी बनाई है और उनकी एंटरप्राइज वैल्यू (बाजार पूंजीकरण +ऋण) कितनी है। परिणामस्वरूप कंपनियों की एक लंबी सूची तैयार हो गई जिसमें कुछ जाने-माने नाम भी शामिल थे।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कई मामलों में नकदी और नकदी तुल्य चीजों का संयुक्त मूल्य इतना अधिक था कि यह एंटरप्राइज वैल्यू के 50 प्रतिशत से भी ज्यादा था। और, कुछ मामलों में यह 100 प्रतिशत या उससे भी अधिक था। हालांकि,अपनी गणणा के लिए हमने सहयोगी कंपनियों, संयुक्त उद्यम तथा समूह कंपनियों में किए गए निवेश को नहीं जोड़ा है।
अगर, इन राशियों को जोड़ दिया जाता तो प्राप्त संख्याएं ज्यादा आकर्षक हो जातीं। प्राप्त संख्याएं यह भी प्रदर्शित करती हैं कि विकट परिस्थिति में या तो बाजार बैलेंस शीट की नकदी को पूरी तरह नहीं जान पा रही है या फिर यह कंपनी की कारोबारी संभावनाओं को कम कर आंक रही है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि कुछ कंपनियां आकार में छोटी हो सकती हैं या फिर उनका ट्रैक रेकॉर्ड उतना बेहतर नहीं हो सकता है लेकिन कई कंपनियों के बिजनेस मॉडल काफी मजबूत हैं उनके बैलेंस शीट भी अच्छे हैं और विकास की संभावनाएं भी खुली हुई हैं।
यहां वैसी कंपनियों का चयन किया गया है जिनकी नकदी और नकदी तुल्य का मूल्य एंटरप्राइज वैल्यू के 50 प्रतिशत से अधिक हैं। बिजनेस की संभावनाओं, धनात्मक नकदी प्रवाह, प्रवर्तकोंप्रबंधन का प्रोफाइल तथा अन्य के साथ-साथ मुख्य व्यवसाय जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए यहां कंपनियों का चुनाव किया गया था।
इस प्रक्रिया में एलएमडब्ल्यू जैसी कंपनी भी मिली जिसके पास 550 करोड़ रुपये की नकदी है। इसमें से 442 करोड़ रुपये ग्राहकों से ली गई अग्रिम राशि है। इस तरह की कंपनियों का चयन नहीं किया गया है।
निवेश कंपनी टाटा इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन जिसके पास प्रतिभूतियां (इक्विटी, ऋण आदि) हैं, जिसमें समूह कंपनियों के 530 करोड़ रुपये भी शामिल है, (मार्च 2008 के अनुसार) को यहां शामिल नहीं किया गया है। यहां उल्लेख किए गए कंपनियों के अलावा भी कुछ कंपनियां हैं जैसे, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, इंडिया इन्फोलाइन और मोतीलाल ओसवाल, जिनमें निवेश करने के बारे में सोचा जा सकता है।
अपार इंडस्ट्रीज
सितंबर की तिमाही में हुए लगभग 63 करोड़ रुपये के मार्क टु मार्केट फॉरेक्स घाटे के कारण अपार इंडस्ट्रीज के परिचालन और शुध्द लाभों पर खासा प्रभाव पड़ा है। अपार इंडस्ट्रीज तेल और कंडक्टर व्यवसायों से जुड़ी हुई है।
निर्यात को छोड़ कर जहां आय 32 प्रतिशत बढ़ कर 632 करोड़ रुपया हो गया वहीं ब्याज, कर, अवमूल्यन और एमोर्टाइजेशन के पहले के लाभ (ईबीआईडीटीए) और शुध्द लाभ क्रमश: 56 प्रतिशत और 54 प्रतिशत कम होकर 12 करोड़ रुपये और 5 करोड़ रुपये रहे।
फॉरेक्स घाटे के अतिरिक्त तेल की कीमतों के घटने के अनुमानों को लेकर विशिष्टता वाले क्षेत्र तेल वर्ग में कम खरीदारी (कंपनी ने भंडार बनाया हुआ था) तथा उच्च लागत मूल्यों के कारण कंपनी का परिचालन और शुध्द लाभ प्रभावित हुआ। कंपनी को भरोसा है कि चालू वर्ष की अंतिम तिमाही में इसमें काफी सुधार होगा।
कंडक्टर कारोबार की बात करें तो कंपनी के पास 910 करोड़ रुपये के ऑर्डर है (30 सितंबर 2008 के अनुसार) जिसे अगले 18 महीनों में पूरा किया जाना है। कंपनी को आशा है कि पावरग्रिड कॉर्पोरेशन तथा अन्य ट्रांसमिशन कंपनियों द्वारा कंडक्टर के लिए लाई जाने वाली निविदाओं का एक हिस्सा इसे चालू वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले मिल सकता है।
सितंबर की तिमाही में खराब प्रदर्शन के बावजूद कंपनी ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि सहयोगी कंपनियों में निवेश करने के बाद भी इसके पास 444 करोड़ रुपये की नकदी है। वर्तमान एंटरप्राइज वैल्यू 360 करोड़ रुपये होने के साथ (अपार इंडस्ट्रीज के शेयरों की कीमत 37 प्रतिशत कम रही हैं और इनका कारोबार वर्तमान में 84.05 रुपये पर किया जा रहा है) बाजार इसकी सही कीमतों को नहीं आंक पा रहा है क्योंकि प्रति शेयर नकदी तकरीबन 193 रुपये बनती है।
डेन्सो इंडिया
बिक्री के 13 प्रतिशत बढ़ कर 131 करोड रुपये होने के बावजूद सितंबर की तिमाही में डेन्सो इंडिया के परिचालन और शुध्द लाभ क्रमश: 29 और 35 प्रतिशत कम होकर साल दर साल 8.31 करोड़ रुपये और 4.7 करोड रुपये रहे।
यद्यपि, इलेक्ट्रिकल ऑटोमोटिव कंपोनेंट कंपनी डेन्सो इंडिया द्वारा लागत को नियंत्रित करने के उपाय किए जाने के बावजूद मूल्य संबंधी दवाबों के कारण परिचालन लाभ प्रभावित होने से नहीं बच सका। कंपनी का विश्वास है कि पिछले वित्त वर्ष में जिस प्रकार दोपहिया वाहनों की बिक्री में नकारात्मक वृध्दि हुई थी वह चालू वित्त वर्ष में बदल सकती है।
इस परिवर्तन का लाभ उठाने के लिए कंपनी हरिद्वार में एक दूसरी इकाई लगाने जा रही हैञ इसकी लागत 28 करोड़ रुपये होगी जिसे चरणबध्द तरीके से अगले 4 वर्षों में पूरा किया जाएगा। इस इकाई में कैपेसिटर डिस्चर्ज इग्निशन और मैग्नेटो का निर्माण किया जाएगा। इससे न केवल कंपनी को दोपहिया उद्योग में अपनी बिक्री बढ़ाने में मदद करेगा बल्कि इससे करो में छूट भी मिल पाएगी।
कंपनी का ऋण नहीं के बराबर (3 करोड़ रुपये) है और इसके पास 95 करोड़ रुपये की नकदी है। यद्यपि ऑटो उद्योग का भविष्य उतना उज्ज्वल नजर नहीं आता है लेकिन कंपनी की नकदी इसके 116 करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण से थोड़ा ही कम है।
डेन्सो कॉर्पोरेशन ऑफ जापान (48 प्रतिशत) तथा सुमितोमो कॉपोरेशन ऑफ जापान और मारुति सुजुकी (10.27 प्रतिशत) हिस्सेदारी शुभ है और इस कारण कंपनी को ऑर्डर मिलते रहने की संभावना है। उच्च लाभांश की आय भी संतोष प्रदान करता है।
हिंदुस्तान ऑयल एक्सप्लोरेशन
तेल एवं गैस से संबध्द कंपनी हिंदुस्तान ऑयल एक्सप्लोरेशन ने नवंबर 2007 में राइट्स इश्यू के जरिए 610 करोड़ रुपये जुटाए थे। इस कारण कंपनी के पास अभी नकदी तुल्य लगभग 729 करोड़ रुपये है।
तेल और गैस ढूंढने के क्षेत्र में यह कंपनी विभिन्न अवसरों का लाभ उठाने की तलाश में है और इसकी मंशा वर्तमान तथा नई तलाश व विकासात्मक गतिविधियों में इस नकदी को लगाने की है। इस कंपनी ने पहले भी तेल एवं गैस के ब्लॉक में निवेश किया है जिसमें ओएनजीसी के साथ साझेदारी भी शामिल है।
शेयरों के मूल्यांकन इस बात से प्रभावित हो रहे हैं कि इन निवेशों से आय और लाभ कब तक प्राप्त होने लगेगा। इसलिए एक तरफ जहां अल्पावधि में कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है वहीं भविष्य में कंपनी को अपना उत्पादन बढ़ाना चाहिए।
यद्यपि मूल्यांकन अभी उतने अच्छे भले ही नहीं हों लेकिन आने वाले समय में कंपनी के प्रदर्शन में सुधार की संभावनाएं हैं। निवेशकों को इस कंपनी के परिचाल के छोटे आकार तथा बीते समय के असमान आयों को ध्यान में रखना चाहिए।
कंपनी की आय तथा लाभ उत्पादन के स्तर तथा कच्चे तेल की कीमतों से काफी अधिक प्रभावित होते हैं, इससे लगता है कि अल्पावधि में इसके वित्तीय दशाओं पर कुछ दवाब बना रहेगा। इस कंपनी के शेयर वैसे निवेशकों के लिए है जो धैर्य रखने के साथ-साथ जोखिम भी उठा सकते हों।
एमटीएनएल
सरकारी टेलीकॉम कंपनी महानगर टेलीफोन निगम के शेयर वास्तविक परिसंपत्तियों और कंपनी की नकदी को देखते हुए काफी आकर्षक हैं। जरा सोचिए, कंपनी ऋण मुक्त है और इसके पास तरल निवेश तथा नकदी एवं बैंक बैलेंस वित्त वर्ष 2008 में 3,720 करोड रुपये का रहा जो इसके 4,139 करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण से मात्र 10 प्रतिशत कम है।
इसका मतलब हुआ कि बाजार कंपनी के मुख्य कारोबार का अंकलन मात्र 419 करोड़ कर रही है जो कंपनी की परिसंपत्तियों (जिसमें इसके ग्राहक भी शामिल है), टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर और विशाल जायदाद को देखते हुए निश्चित तौर पर काफी कम है। अगर बुक वैल्यू पर भी विचार किया जाए तो यह कंपनी के शेयर मूल्य 65.70 रुपये से तीन गुना अधिक है।
मूल्य को कम आंकने की वजह पिछले तीन सालों से कंपनी के प्रदर्शन का खराब रहना है, इस दौरान कंपनी की आय और मुनाफे में कमी दर्ज की गई है। एमटीएनएल अपनी आय का लगभग 34 प्रतिशत कर्मचारियों पर खर्च करती है जबकि निजी कंपनियां केवल 7 फीसदी अपने कर्मचारियों पर खर्च करती हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कंपनी ने अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं। इसने अपनी क्षमताएं और मोबाइल तथा ब्रॉडबैंड के ग्राहक आधार बढ़ाया है। एमटीएनएल था बीएसएनएल के विलय का कदम इस कंपनी के शेयरों के लिए बेहतर साबित होगा। विश्लेषकों ने 12 महीनों के लए इसके मूल्य का लक्ष्य 100-115 रुपये तय किया है।
पीटीसी इंडिया
पावर ट्रेडिंग व्यवसाय की अग्रणी कंपनी पीटीसी के पास नकदी और नकदी तुल्य 1,450 करोड़ रुपये है जो इसकी एंटरप्राइज वैल्यू 1,094 करोउ रुपये से काफी अधिक है। बाजार की गिरावट के बाद इसके शेयरों की कीमत 202 रुपये से घट कर 52.15 रुपये (वर्तमान में) हो गई।
वर्तमान बाजार मूल्य केवल इसके बुक की नकदी वैल्यू को प्रदर्शित करता है जबकि अन्य पहलू जैसे विकासोन्मुख कारोबार तथा उद्योग परिदृश्यों को लेकर नहीं चला गया है। चर्तमान नकदी तथा नकदी तुल्य उस धन को प्रदर्शित करता है जो कंपनी ने क्वालीफायड इंस्टीटयूशनल प्लेसमेंट के जरिए लगभग 3,000 लाख डॉलर जनवरी 2008 में जुटाए थे।
पीटीसी इंडिया के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक टी एन ठाकुर कहते हैं, ‘हम अगले दो वर्षों मंभ पूंजी पर्याप्तता बढ़ा कर, पीटीसी फाइनैंशियल सर्विसेज का पूंजी बढ़ा कर, ईंधन मध्यस्थता में निवेश कर, ऊर्जा क्षेत्र की इकाईयों में निवेश करने के साथ-साथ विकासोन्मुख कारोबार की पूंजी संबंधी जरूरतों पूरी करने में इस कोष का उपयोग अगले 2 वर्षों में करने की सोच रहे हैं।
पीटीसी जो मुख्यत: पावर व्यवसाय के क्षेत्र में है अब पावर जेनरेशन, फाइनैंशिंग, ईंधन और पावर ट्रेडिंग कारोबार में खुद को विशाखित कर रही है। कुछ पावर जेनरेशन परियोजनाओं में कंपनी पहले ही हिस्सेदारी ले चुकी है जिसमें तीस्ता ऊर्जा (1200 मेगावाट) परियोजना में ली गई 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी भी शामिल है।
दीर्घावधि के पीपीए के तहत कंपनी पहले ही लगभग 11,940 मेगावाट की क्षमताओं के साथ गठजोड़ कर चुकी है। वित्त वर्ष 2009 की अनुमानित आय की तुलना में इसके शेयरों का कारोबार 15 गुना पर किया जा रहा है।