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कॉर्पोरेट धोखाधड़ी की खतरनाक दुनिया

Last Updated- December 11, 2022 | 12:16 AM IST

पुणे स्थित फॉरेंसिक अकाउंटिंग एवं शैक्षिक फर्म इंडिया फॉरेंसिक कसंल्टेंसी सर्विसेज (आईसीएस) ने हाल ही में एक अध्ययन किया था, जिसका नाम है ‘अर्ली वार्निंग सिग्नल्स ऑफ कॉरपोरेट फ्रॉड्स’। जनवरी 2008 से अगस्त 2008 के बीच किए गए इस अध्ययन में कॉरपोरेट धोखाधडी क़ो लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं।
अध्ययन का ब्योरा
अध्ययन में खुलासा किया गया है कि बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में सूचीबद्ध 4867 कंपनियों में से कम से कम 1200, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में सूचीबद्ध 1288 कंपनियों और बेंचमार्क सेंसेक्स एवं निफ्टी में शामिल 25-30 कंपनियों ने अपने वित्तीय ब्यौरों में हेरफेर की।
अध्ययन में जिन 11 क्षेत्रों की कंपनियों को शामिल किया गया है, उनमंक रियल एस्टेट, रिटेल, बैंकिंग, निर्माण, बीमा, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, म्युचुअल फंड, ट्रांसपोर्ट एवं वेयरहाउसिंग, मीडिया एवं संचार, तेल एवं गैस और सूचना प्रौद्योगिकी शामिल हैं।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 28 फीसदी का योगदान देने वाले निर्माण क्षेत्र इस अध्ययन में धोखाधड़ी के मामले में सबसे ऊंचे पायदान पर रहा। रियल एस्टेट और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम इस मामले में दूसरे नंबर पर हैं।
अध्ययन में शामिल 340 चार्टर्ड अकाउंटेंट में से 73 फीसदी के मुताबिक वित्तीय धोखाधड़ी का लक्ष्य शेयर बाजार के विश्लेषकों की अनुमान से काफी अधिक था। धोखाधड़ी से जुड़े कई मामलों में ऋण चाहने वाली कंपनियों द्वारा आंकड़ों में भारी हेर-फेर की गई।
केपीएमजी इंडिया फ्रॉड सर्वे रिपोर्ट 2008 में यह खुलासा हुआ था कि 80 फीसदी से अधिक प्रतिभागियों ने स्वीकार किया था कि धोखाधड़ी एक समस्या है और 70 फीसदी ने माना था कि यह अगले दो साल में और बढ़ेगी।
अकाउंटिंग गड़बड़ी धोखाधड़ी का सबसे भयंकर रूप है, क्योंकि यह वित्तीय ब्यौरों में निवेशक के विश्वास को तोड़ने का काम करती है। वास्तविकता यह है कि निवेशकों को तिमाही दर तिमाही वित्तीय परिणामों का शिद्दत से इंतजार रहता है और अगर इन परिणामों में हेरफेर की जाए तो मूल्य निर्माण से संबद्ध बाजार का सिद्धांत स्वयं पर अच्छी पकड़ कायम नहीं रख पाता।
ऐसी स्थिति में धोखाधड़ी लंबे समय तक बनी नहीं रह सकेगी और अंतत: कीमतें अपने यथार्थवादी स्तरों को हासिल कर लेंगी। धोखाधड़ी से जुड़े लोगों में कंपनियों के अकाउंट विभागों के कर्मी, ऑडिटर और कंपनियों के संबद्ध निदेशक आदि जिम्मेदार होते हैं। यह संभव है कि धोखेबाजों और धोखेबाजी से अवगत लोग इनसाइडर ट्रेडिंग में लिप्त हो सकते हैं।
क्लॉज 49
यह बेहद गंभीर बात है कि लिस्टिंग एग्रीमेंट के क्लॉज 49 पिछले कई साल से अस्तित्व में है जिसके बावजूद बड़ी तादाद में सूचीबद्ध कंपनियों में अकाउंटिंग धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं।
लिस्टिंग एग्रीमेंट के क्लॉज 49 में प्रावधान है कि कंपनी के निदेशक मंडल में आधी संख्या में स्वतंत्र निदेशक शामिल हों और एक क्वालीफाइड एवं स्वतंत्र ऑडिट कमेटी में दो-तिहाई सदस्य स्वतंत्र निदेशक ही होने चाहिए। इसके अलावा इस कमेटी का अध्यक्ष भी स्वतंत्र निदेशक ही होगा।
ऑडिट कमेटी को कंपनी की वित्तीय रिपोर्टिंग प्रक्रिया का सही तरीके से निरीक्षण करना चाहिए और अपनी वित्तीय सूचनाओं का खुलासा करते वक्त यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह वित्तीय स्टेटमेंट सही और विश्वसनीय है।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अलावा कंपनी के मुख्य परिचालन अधिकारी को भी यह प्रमाणित करना चाहिए कि वित्तीय ब्यौरे में किसी तरह के झूठे स्टेटमेंट को शामिल नहीं किया गया है या किसी मैटेरियल फैक्ट को छोड़ा नहीं गया है। इसमें कंपनी के कार्यों को सही और निष्पक्ष रूप से पेश करना चाहिए। यह अंदरूनी ऑडिटरों से जुड़ी जिम्मेदारियां हैं।
इसके अलावा स्टेचुअरी ऑडिटर यानी सांविधिक ऑडिटर को भी यह प्रमाणित करना होगा कि साल के दौरान दर्ज कंपनी के ब्यौरों में किसी तरह की मैटेरियल धोखाधड़ी नहीं की गई है। भारत सरकार का कंपनी मामलों का विभाग ऐसी ही जांच-पड़तालों के जरिये पूरे देश की कंपनियों के कामकाज की निगरानी कर रहा है।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि सूचीबद्ध कंपनियों में से लगभग 20 फीसदी कंपनियां ऐसे वित्तीय स्टेटमेंट को पेश करने में सफल रही हैं जिनमें धोखाधड़ी की गई।
सख्त कदमों की जरूरत
इन समस्याओं से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाने जरूरी हैं। कंपनी मामलों के विभाग और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को धोखाधड़ी में लिप्त पाई जाने वाली कंपनियों के विशेष ऑडिट का तुरंत आदेश देना चाहिए। विशेष ऑडिट में गड़बड़ी पाए जाने पर कंपनियों के निदेशकों और अन्य संबद्ध लोगों के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए।
इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया को भी दोषी चार्टर्ड अकाउंटेंटों के खिलाफ उपयुक्त दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए। स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका भी सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है।इतना ही काफी नहीं है।
इनसाइडर ट्रेडिंग के मामलों का पता लगाने के लिए सेबी को ऐसी कंपनियों के शेयरों में लेनदेन की जांच शुरू कर देनी चाहिए। सिर्फ यह कहना अनावश्यक है कि इनसाइडर ट्रेडिंग के मामलों में दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
(लेखक बीएसई के पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं)

First Published - April 13, 2009 | 7:12 PM IST

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