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लाभ के लिए उठाइए हानि!

Last Updated- December 10, 2022 | 10:03 PM IST

पिछले साल अप्रैल महीने में राजीव शर्मा (परिवर्तित नाम) ने अपनी जायदाद 50 लाख रुपये के अल्पावधि के लाभ पर बेच दी।
यह जान कर कि उनको अपेक्षाकृत अधिक कर चुकाना होगा, उन्होंने चढ़ते-उतरते शेयर बाजार में निवेश करने का निर्णय किया। मई में उन्होंने 30 लाख रुपये का निवेश म्युचुअल फंडों में कर दिया।
अक्टूबर में अपने बेटे द्वारा किए गए निवेश को उन्होंने 10 लाख रुपये में बेचा। इस प्रकार उन्हें अल्पावधि में 20 लाख रुपये का पूंजीगत घाटा हुआ। उसके बाद उन्होंने अपेक्षाकृत कम कीमतों पर म्युचुअल फंडों में निवेश किया।
उनके वित्तीय आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं-
अल्पावधि का पूंजीगत अभिलाभ- 50 लाख रुपये।
इस लाभ पर लगने वाला कर: 50 लाख रुपये का 33.99 प्रतिशत= 17 लाख रुपये।
अल्पावधि का पूंजीगत घाटा- 20 लाख रुपये
अल्पावधि का पूंजीगत अभिलाभ (घाटे के बाद)- 30 लाख रुपये।
लाभ पर लगने वाला कर: 30 लाख रुपये का 33.99 प्रतिशत=10.20 लाख
म्युचुअल फंडों का निकासी प्रभार: कुछ नहीं
नया प्रवेश प्रभार- 67,500 रुपये (30 लाख रुपये का 2.25 प्रतिशत)
अब, चूंकि शर्मा ने 20 लाख रुपये का घाटा उठाया है इसलिए वे इसे 50 लाख रुपये के लाभ के साथ समायोजित कर सकते हैं। इसलिए उनकी केवल 30 लाख रुपये की राशि पर कर लगाया जाएगा। इस प्रकार शर्मा कर के तौर पर 6.8 लाख रुपये की बचत करने में सफल रहे।
इसके साथ-साथ उन्होंने अपने पोर्टफोलियो में बदलाव कर उपयुक्त निवेश किया। उचित फंडों की खरीदारी उन्होंने कम प्रवेश प्रभार चुकाते हुए की। प्रवेश प्रभार कम होने से उन्हें अधिक लाभ हुआ। लेकिन ऐसा हमेशा ही नहीं होता। किसी निवेशक को अधिक प्रवेश प्रभार झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रवेश प्रभार की वजह से लाभ में थोड़ी कमी आएगी लेकिन यह नीति कर बचत की राशि के नजरिये से बुरी नहीं है।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि अगर अभी कोई पूंजीगत हानि नहीं भी होती है तो भी आप इस नीति को अगले आठ साल तक प्रयोग में ला सकते हैं। मतलब यह कि अगर आप अपनी परिसंपत्तियों जैसे जायदाद और आभूषणों को बेचें तो आपको भारी पूंजीगत लाभ होगा। इससे अल्पावधि का पूंजीगत घाटा हो सकता है जिससे कर में बचत कर लाभ कमाया जा सकता है।
पूंजीगत घाटा किसी परिसंपत्ति के अंतरण से होने वाली हानि है। जब कभी पूंजीगत हानि होती है तो आप सर्वप्रथम यह जानिए कि यह अल्पावधि का पूंजीगत घाटा है या दीर्घावधि का। इस मामले में समयावधि का सिध्दांत यहां लागू होता है।
तीन महत्वपूर्ण बातें ध्यान रखें:
एक्सचेंज पर किए गए शेयरों के कारोबार और इक्विटी ओरियेंटेड फंडों पर दीर्घावधि पूंजीगत अभिलाभ कर नहीं लगता है। इसलिए, इन परिसंपत्तियों के आधार पर आप दीर्घावधि के पूंजीगत अभिलाभों को समायोजित नहीं कर सकते हैं।
गैर-बाजारी लेन देन से हुए घाटे, जिस पर सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन शुल्क नहीं लगाया जाता, को केवल दीर्घावधि के लाभों के साथ समायोजित किया जा सकता है।
अल्पावधि के पूंजीगत घाटे का समायोजन अल्पावधि के साथ-साथ दीर्घावधि लाभों के साथ भी किया जा सकता है।
वास्तव में, यह ऐसी नीति है जिसे आप इक्विटी बाजार में हुए घाटे के मामले में इस्तेमाल में ला सकते हैं। अगर, परिस्थितियां बिगड़ी हुई हैं तो सर्वप्रथम आपको इसका आकलन करना चाहिए और देखना चाहिए कि आप इनसे किस प्रकार लाभ उठा सकते हैं।
दो बातों का ध्यान रखिए। पहला, खरीद और बिक्री के हर ऑर्डर के लिए ब्रोकरेज चुकाया जाता है। दूसरा, बाजार में पुन: शीघ्रता से प्रवेश करें क्योंकि अगर बाजार में बढ़त होती है आपकी लागत बढ़ जाएगी। दूसरी तरफ अगर इक्विटी बाजार में गिरावट आती है तो आपको कम कीमत का अतिरिक्त लाभ मिलेगा।
लेखक प्रमाणित वित्तीय योजनाकार हैं।

First Published - March 29, 2009 | 10:56 PM IST

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