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…तो खाली रहेगी कंपनियों की झोली

Last Updated- December 11, 2022 | 12:15 AM IST

मंदी और मांग घटने के चलते मार्च 2009 में समाप्त चौथी तिमाही में भारतीय कंपनियों का प्रदर्शन निराशाजनक रहने की उम्मीद है।
विश्लेषकों का कहना है कि पिछले 9 माह के दौरान मंदी को मात देने और मांग बढ़ाने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक की ओर से तमाम तरह के उपाय किए गए, इसके बावजूद कंपनियों के प्रदर्शन में सुधार होता नहीं दिखा।
अनुमान के मुताबिक, बीएसई सेंसेक्स में शामिल 30 कंपनियों के समेकित मुनाफे में साल-दर-साल करीब 9 से 15 फीसदी की गिरावट देखी जा सकती है, जो पिछली 15 तिमाहियों में सबसे खराब है। गौरतलब है कि दिसंबर 2009 को समाप्त तीसरी तिमाही में कंपनियों के मुनाफे में साल-दर-साल के आधार पर करीब 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
खास बात यह कि देश में पिछले 10 सालों में ऐसा पहली बार होगा, जब सेंसेक्स कंपनियों की समेकित बिक्री में भी गिरावट दर्ज की जा सकती है। हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ कंपनियां तीसरी तिमाही के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि हाल के दिनों में नकदी का प्रवाह बढ़ा है।
चौथी तिमाही में मुख्य रूप से रियल्टी, धातु, तेल एंव गैस और बैंकिंग सेक्टर पर नजर रहेगी। दरअसल, इस क्षेत्र में बिक्री प्रभावित होने से भारतीय उद्योग जगत की समेकित बिक्री पर भी असर पड़ने की आशंका है।
वैसे, तेल बॉन्ड मिलने से सरकारी स्वामित्व वाली तेल विपणन कंपनियों के मुनाफे में थोड़ा सुधार हो सकता है, लेकिन रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुनाफे में मामूली गिरावट की आशंका है। जहां तक बैंकिंग और एफएमसीजी सेक्टर की बात है, तो इनके मुनाफे में दहाई अंकों की वृद्धि हो सकती है। आइए जानते हैं, किन क्षेत्रों का प्रदर्शन बीते वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में कैसा रहने की उम्मीद है :
वाहन क्षेत्र
पिछले कुछ समय से वाहनों की बिक्री में भारी गिरावट का रुख देखा जा रहा था। लेकिन मार्च को खत्म हुई तिमाही में दोपहिया वाहनों की बिक्री जहां 15 फीसदी की दर से बढ़ी है, वहीं कारों की बिक्री में भी तिमाही-दर-तिमाही 41 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
 व्यावसायिक वाहनों की बिक्री में भी 26 फीसदी का विकास देखा गया। बजाज ऑटो की बात करें, तो उसकी बिक्री में 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन इस बार कंपनी की बिक्री में 16 फीसदी का इजाफा होने की उम्मीद है।
जानकारों का कहना है कि कंपनी की बिक्री में बढ़ोतरी की मुख्य वजह उत्पाद शुल्क में कटौती और ईंधन की कीमतों में गिरावट है। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारियों की वेतन वृद्धि की वजह से भी वाहनों की बिक्री में इजाफा हुआ है।
दोपहिया वाहनों की बिक्री में ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती आय का प्रमुख योगदान है। वहीं कारों की बिक्री में इजाफा मुख्य रूप से ब्याज दरों में कटौती और आसान कर्ज की उपलब्धता की वजह से हुआ है। व्यावसायिक वाहनों की बिक्री में भी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन यात्री किराए में इजाफा नहीं होने और आसान लोन की अनुपलब्धता अब भी चिंता का सबब बनी हुई है। वाहन कंपनियों के परिचालन लाभ में इस दौरान इजाफा होने की उम्मीद है।
इसकी वजह यह है कि अंतिम तिमाही में स्टील और एल्युमीनियम जैसी धातुओं की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। अंतिम तिमाही में हीरो होंडा का मुनाफा साल-दर-साल के आधार पर ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है। टाटा मोटर्स और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा को फॉरेक्स घाटा और विदेशी कर्जों की वजह से थोड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
बैंकिंग
बैंकिंग तंत्र में नकदी का प्रवाह बढ़ा है, लेकिन मंदी और बैंकों की ओर से कर्ज देने में सावधानी बरतने की वजह से मार्च में समाप्त तिमाही में बैंकिंग सेक्टर की क्रेडिट ग्रोथ 17.3 फीसदी रहने की उम्मीद है, जबकि तीसरी तिमाही में बैंकिंग सेक्टर की विकास दर 24 फीसदी थी।
ऊंची जमा दर और ब्याज दरों में कटौती की वजह से बैंकों की ब्याज से कमाई पर असर पड़ने की आशंका है। हालांकि साल-दर-साल के आधार पर देंखे, तो बैंकिंग क्षेत्र का मार्जिन या तो स्थिर रह सकता है या फिर उसमें मामूली इजाफा हो सकता है।  
निजी क्षेत्र के प्रमुख बैंक आईसीआईसीआई को ब्याज के जरिए होने वाले मुनाफे में नुकसान की उम्मीद है, क्योंकि बैंक की ओर से ज्यादा मात्रा में लोन वितरित नहीं किया जा सका है। बैंकों के ट्रेडिंग मार्जिन में भी इजाफा होने की उम्मीद है, लेकिन मार्क टू मार्केट लॉस की वजह से यह तीसरी तिमाही के मुकाबले कम ही रहेगा।
आरबीआई की ओर से दिसंबर 2009 तक गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां घोषित नहीं करने के निर्देश के बावजूद बैंक एनपीए मद में ज्यादा रकम दिखा सकते हैं। यूबीआई और पीएनबी जैसे बैंक सबसे ज्यादा एनपीए दिखा सकते हैं। जमा दरों के मुकाबले ब्याज दरों में ज्यादा कटौती से बैंकों के मुनाफे पर असर पड़ने की आशंका है। हालांकि एसएलआर और सीआरआर में अगर आगे कटौती होती है और जमा दरों में कमी आती है, तो बैंकों के मार्जिन में थोड़ा सुधार आ सकता है।
पूंजीगत वस्तुएं और इंजीनियरिंग सेक्टर
औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट का असर आईआईपी आंकड़ों पर दिख रहा है। ऐसे में औद्योगिक गतिविधियों पर निर्भर रहने वाली प्रमुख सेक्टर- धातु, तेल एवं गैस, टेक्सटाइल आदि की ऑर्डर बुक में भी कमी देखी जा रही है। वैसे, सरकारी परियोजनाओं और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों को अच्छे ऑर्डर मिल रहे हैं और उनके मार्जिन में भी सुधार की उम्मीद है।
कर्मचारियों की वेतन वृद्धि, ब्याज दरों में इजाफा, फॉरेक्स घाटा, इन्वेंटरी लॉस और कार्यशील पूंजी की समस्या की वजह से कंपनियों के मार्जिन पर दबाव पड़ने के आसार हैं। वैसे, तिमाही-दर-तिमाही आधार पर जिंसों की कीमतों में आई कमी और ब्याज दरों में नरमी की वजह से कुछ कंपनियों के मार्जिन में सुधार की उम्मीद है।
एलऐंडटी के राजस्व का करीब 42 फीसदी हिस्सा औद्योगिक क्षेत्रों से आता है, जिनमें हाइड्रोकार्बन प्रमुख हैं। ऐसे में कंपनी की ऑर्डर बुक में धीमी रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है। जानकारों का मानना है कि कंपनी की आय में भले ही इजाफा हो, लेकिन ब्याज दरों में इजाफे की वजह से शुद्ध मुनाफा घट सकता है।
एबीबी की ऑर्डर बुक में तीसरी तिमाही के दौरान करीब 37 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। ऐसे में कंपनी की आय अंतिम तिमाही में 7.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है। कार्यशील पूंजी पर दबाव के चलते कंपनी के मुनाफे पर भी असर पड़ने की आशंका है।
अंतिम तिमाही में बीएचईएल की आय में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है, लेकिन कंपनी का मुनाफा घट सकता है। इसकी वजह कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी मानी जा रही है।
विनिर्माण क्षेत्र
ऑर्डर बुक को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र की कंपनियों का प्रदर्शन चौथी तिमाही में बेहतर रह सकता है। हालांकि इस क्षेत्र की कंपनियों के लिए मुनाफे की विकास दर को बनाए रखना बड़ी चुनौती हो सकती है। वैसे, ब्याज दरों में नरमी और कार्यशील पूंजी बढ़ने से कुछ सुधार की उम्मीद है।
जानकारों का कहना है कि कच्चे माल की कीमतों में कमी, ब्याज दरों में नरमी और कार्यशील पूंजी की उपलब्धता की वजह से तिमाही-दर-तिमाही आधार पर इस क्षेत्र का प्रदर्शन अच्छा होने की उम्मीद है। साल-दर-साल के आधार पर देंखे, तो आईवीआरसीएल इन्फ्रा की आय में इजाफा हो सकती है, लेकिन ब्याज दरों की वजह से कंपनी का मुनाफा घट सकता है।
ऊंची ब्याज दरों का असर नागार्जुन कंस्ट्रक्शन और एचसीसी जैसी कंपनियों पर भी पड़ सकता है। नागार्जुन के राजस्व में 11 फीसदी इजाफा होने की उम्मीद है, जबकि मुनाफा कम हो सकता है। जयप्रकाश एसोसिएट्स की आय में 22 फीसदी इजाफा होने की उम्मीद है, लेकिन सीमेंट और रियल एस्टेट कारोबार में नुकसान की वजह से मुनाफे पर दबाव पड़ने की आशंका है।
एफएमसीजी सेक्टर
मंदी के बावजूद एफएमसीजी क्षेत्र का प्रदर्शन अच्छा रहने की उम्मीद है। कंपनियों की बिक्री दहाई अंक की दर से विकास कर रही है, वहीं मार्जिन भी अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर रहने की उम्मीद है।
उत्पाद शुल्क में कमी का असर भी कंपनियों की आय पर पड़ेगा। इसके साथ ही जिंसों की कीमतों में गिरावट से एफएमसीजी कंपनियों की लागत घट गई है, जिससे उनके मुनाफे में इजाफा हो सकता है।
वैसे, शुरुआत में लागत में इजाफा होने की वजह से कंपनियों ने उत्पादों की कीमतों में इजाफा किया था, जिससे बिक्री में कमी आई है, जिसका असर चौथी तिमाही के नतीजों में देखा जा सकता है। कई कंपनियां अब कीमतों में कटौती कर रही हैं, ताकि उनकी बिक्री बढ सके। लेकिन अंतिम तिमाही के नतीजों पर इसका असर नहीं होगा।
आईटीसी की सिगरेट की बिक्री में 2-3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी से कंपनी का मुनाफा बढ़ सकता है। वैसे, पर्सनल केयर उत्पादों और फूड सेगमेंट में नुकसान जारी रहने के आसार हैं।
साबुन और डिटर्जेंट की कीमतों में इजाफा करने से एचयूएल की बिक्री पर असर तो पड़ा हैं, लेकिन मुनाफा बढ़ने की उम्मीद है। ब्याज दरों में नरमी और जिंसों की कीमतों में गिरावट से एफएमसीजी कंपनियों के मुनाफे में तेजी से इजाफा हो सकता है।
सूचना प्रौद्योगिकी
मंदी की वजह से अमेरिका और यूरोप की कंपनियों ने आईटी पर खर्चों में कटौती की है, जिसका असर भारतीय आईटी कंपनियों की कमाई पर पड़ सकता है। अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2009 में आईटी सेवाओं के बजट में 8 से 15 फीसदी तक की गिरावट आई है।
कई परियोजनाओं को रद्द करने और कुछ परियोजना की अवधि को टालने की वजह से भी आईटी कंपनियों के राजस्व पर दबाव पड़ सकता है। वहीं कंपनियों को सेवाओं की कीमतों में कटौती का भी दबाव झेलना पड़ रहा है। इससे चौथी तिमाही में आईटी सेक्टर के मुनाफे पर असर पड़ना तय है।
तीसरी तिमाही में प्रमुख चार आईटी कंपनियों के राजस्व में 4.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी, जबकि चौथी तिमाही में इसमें और ज्यादा कमी आने की आशंका है। विप्रो और इन्फोसिस के राजस्व में तिमाही-दर-तिमाही आधार पर भारी गिरावट देखी जा सकती है। एक्सॉन अधिग्रहण के चलते एचसीएल के राजस्व में 15 फीसदी की दर से विकास हो सकती है।
टीसीएस और इन्फोसिस के एबिटा मार्जिन पर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जहां तक फॉरेक्स घाटा की बात है, तो एचसीएल टेक्नोलॉजी और टीसीएस की तुलना में इन्फोसिस को कम नुकसान होने की उम्मीद है। जानकारों का कहना है कि इन्फोसिस के शुद्ध मुनाफे में अंतिम तिमाही के दौरान कमी आ सकती है।
धातु सेक्टर
लॉन्ग और फ्लैट उत्पादों की मांग में इजाफा होने से इस क्षेत्र की कंपनियों की बिक्री में तिमाही-दर-तिमाही 35-45 फीसदी का इजाफा होने की उम्मीद है। लौह-अयस्क और कोकिंग कोल के साथ-साथ किराए में नरमी से सेल और जेएसडब्ल्यू की लागत घट गई है। इससे इन कंपनियों का मुनाफा बढ़ सकता है। वैसे, अभी भी इस क्षेत्र को मांग में कमी से जूझना पड़ रहा है।
जानकारों का कहना है कि सेल की तिमाही-दर-तिमाही विकास दर 30-40 फीसदी रह सकती है। लेकिन स्टील की कीमतों में नरमी और लागत में इजाफा होने से साल-दर-साल आधार पर इसका मुनाफा घट सकता है।
बिक्री में इजाफा होने के बावजूद जेएसडब्ल्यू और टाटा स्टील, दोनों को घाटा हो सकता है। टाटा स्टील को विदेशी परिचालन, खासकर कोरस की वजह से नुकसान उठाना पड़ सकता है। जेएसडब्ल्यू सस्ती दरों पर कोकिंग कोल खरीदने में सफल रही, लेकिन इन्वेंटरी बड़ी समस्या बनी हुई है। एल्युमीनियम की कीमतों में 50 फीसदी का इजाफा होने से हिंडाल्को और स्टरलाइट  के मुनाफे में इजाफा होने की उम्मीद है।
तेल एवं गैस
तिमाही-दर-तिमाही आधार पर इस क्षेत्र की ज्यादातर कंपनियां अच्छा मुनाफा कमा सकती हैं। तीसरी तिमाही में कच्चे तेल की कीमतों और ग्रास रिफाइंनिंग मार्जिन में गिरावट से कंपननियों की आय पर दबाव देखा गया था। तीसरी तिमाही में सिंगापुर-जीआरए औसतन 3.6 डॉलर प्रति बैरल थी, जो अंतिम तिमाही में बढ़कर 5.4 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
इसी तरह कच्चे तेल की कीमत भी 35 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 50 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है। रुपये की कीमतों मेें करीब 22 फीसदी की गिरावट आई है, इससे भी कंपनियों को राहत मिलने की उम्मीद है। कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और पेट्रोल, डीजल की बिक्री से मुनाफा, सरकारी स्वामित्व वाली तेल विपणन कंपनियां- आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल के लिए फायदेमंद हो सकता है।
 साथ ही केरोसिन और एलपीजी की बिक्री में हो रहे नुकसान की इससे भरपाई भी हो सकती है। विश्लेषकों का कहना है कि सरकार की ओर से तेल बॉन्ड जारी करने से तेल विपणन कंपनियों के मुनाफे में इजाफा हो सकता है। तेल उत्पाद कंपनियों में केयर्न इंडिया की आय घट सकती है, क्योंकि कच्चे तेल की कीमतें पहले से कहीं ज्यादा घट गई हैं।
लेकिन कंपनी की आय में इजाफा हो सकता है। ऑयल इंडिया के मुनाफे में भी इजाफा होने की उम्मीद है। अधिकांश विश्लेषकों का कहना है कि रिलायंस का मुनाफा इकाई अंक में रह सकता है। हालांकि कंपनी की आय अन्य स्रोतों से काफी बढ़ सकती है।
फार्मास्यूटिकल्स
प्रमुख दवा कंपनियों में से एक सन फार्मा की आय दहाई अंकों में रह सकती है। रुपये की कीमतों में गिरावट और घरेलू बाजार में 11 फीसदी की दर से विकास करने की वजह से कंपनी की आय में इजाफा हो सकता है। नए उत्पादों को लॉन्च करने और लाइफस्टाइल दवाओं की बिक्री बढ़ने से भी कंपनी को फायदा हो सकता है।
नकदी की संकट के बावजूद जेनरिक दवा कंपनियां विदेशी बाजारों में दहाई अंकों की दर से विकास कर सकती हैं। वैसे, एफडीए के चलते रैनबैक्सी को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। कंपनी को डॉलर मद में लिए गए कर्ज की वजह से नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
दूरसंचार
रिलायंस, आइडिया और वोडाफोन की ओर से दिए ऑफर और तमाम कंपनियों की विस्तार योजनाओं की वजह से उपभोक्ताओं की संख्या में इजाफा हुआ है। हालांकि नेटवर्क के विस्तार की लागत बढ़ने और प्रति मिनट राजस्व में गिरावट से कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ सकता है।

First Published - April 13, 2009 | 6:51 PM IST

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