विद्युत उपकरण कारोबार से जुड़ी दिग्गज कंपनी भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) बिजली क्षेत्र में बढ़ रहे निवेश का सबसे अधिक फायदा उठाने वाली कंपनी के रूप में उभरी है।
यह इसके विशाल ऑर्डर बुक से भी स्पष्ट दिख रहा है। हालांकि कंपनी के सामने नए ऑर्डरों में गिरावट और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण चुनौतियां भी बढ़ी हैं। कच्चे माल की कीमतों में तेजी और मजदूरी में इजाफा होने की वजह से तीसरी तिमाही में इसका मार्जिन घटा है।
इन सभी घटनाक्रमों और कंपनी की भविष्य की योजनाओं के बारे में जितेन्द्र कुमार गुप्ता ने बीएचईएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के. रवि कुमार से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
क्या 11वीं पंचवर्षीय योजना के लिए 78,000 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा?
योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार यह लगभग 60,000 मेगावाट होगा और अब तक हम लगभग 40,000 मेगावाट बिजली के ऑर्डर हासिल कर चुके हैं।
मौजूदा ऑर्डर बुक और इसका औसतन समय कितना है? अगले दो साल के दौरान आप कितनी बिक्री की उम्मीद कर रहे हैं?
हमारा मौजूदा ऑर्डर बुक 1,25,000 करोड़ रुपये का है और इसके कार्यान्वयन में 36 महीने का औसतन समय लगेगा। 2008-09 के लिए हम बिक्री में 25-30 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। कुल ऑर्डर में से बिजली की भागीदारी लगभग 80 फीसदी की है और बाकी ऑर्डर औद्योगिक क्षेत्र से हैं जहां हम निजी क्षेत्र के ट्रांसमिशन यानी पारेषण और परिवहन कारोबार में प्रमुखता से दस्तक देना चाहते हैं।
निकट भविष्य में औद्योगिक क्षेत्र से मिलने वाले ऑर्डरों की भागीदारी बढ़ कर 30 फीसदी हो जाएगी। अब तक मांग अच्छी बनी हुई है, लेकिन अगले साल हमें इंतजार करो और देखो की रणनीति पर अमल करना पड़ सकता है।
अतिरिक्त क्षमता योजना की स्थिति कैसी है?
इस योजना पर काम चल रहा है। हमें दिसंबर 2009 तक 15,000 मेगावाट और 2011 तक 20,000 मेगावाट क्षमता का निर्माण करना होगा। हम आपूर्ति शृंखला में भी निवेश करने जा रहे हैं जो वित्त वर्ष 2010 की पहली तिमाही में शुरू हो जाएगा। आपूर्ति श्रृंखला की मदद से हम निश्चित रूप से कुछ लागत लाभ हासिल करने में सफल रहेंगे। हम कास्टिंग और फॉर्जिंग उत्पादों का स्वयं निर्माण करेंगे।
आप ऑर्डरों के प्रवाह में गिरावट देख रहे हैं। ऑर्डरों के लिहाज से मौजूदा स्थिति कैसी है?
इस साल हम वित्त वर्ष 2008 की तुलना में 20 फीसदी अधिक ऑर्डर हासिल करने के करीब हैं। इसलिए मैं नहीं मानता कि बिजली क्षेत्र में किसी तरह की मंदी है। हालांकि मांग और आपूर्ति के बीच अंतर लगभग 13 फीसदी का है और बिजली एक राजनीतिक विषय है।
हर कोई आम जनता को बिजली मुहैया कराना चाहता है। इसलिए आप बिजली क्षेत्र की अनदेखी नहीं कर सकते और नए कनेक्शन के लिए ग्रामीण क्षेत्र की ओर से भारी मांग की जा रही है। निजी क्षेत्र से भी मांग में गिरावट नहीं आई है, जैसा कि हम मौजूदा समय में ऑर्डर हासिल कर रहे हैं।
यह देखा गया है कि कंपनियां बिजली उत्पादन क्षमता में ढिलाई के लिए आपूर्ति पक्ष को जिम्मेदार ठहरा रही हैं। इस बारे में आपका क्या नजरिया है?
हम निर्माण चरण के दौरान होने वाले विलंब को कम करने की कोशिश करेंगे। लेकिन मौजूदा समय में हम ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि हमारे पास परियोजनाओं की संख्या काफी बढ़ गई है और हम वेल्डरों और तकनीशियनों का अभाव महसूस कर रहे हैं। विक्रेताओं की संख्या भी काफी कम है। इसलिए हम परेशानी महसूस कर रहे हैं।
उत्पादन में विलंब की समस्या सिर्फ बीएचईएल के साथ नहीं है। विलंब अन्य कंपनियों के मामलों में भी देखा गया है। हम कम से कम जमीनी वास्तविकता तो जानते हैं, लेकिन विदेशी विक्रेताओं को इसमें ज्यादा कठिनाई आ रही है।
क्या आप अपने निष्पादन चक्र के बारे में कुछ बताएंगे? पहले यह कैसे काम करता था और आगे कैसे काम करेगा?
निष्पादन चक्र हमें मिली परियोजना के आकार पर तय होता है। 250 मेगावॉट की परियोजना को हम 32 महीने में को पूरा कर सकते हैं, जबकि 500 मेगावॉट की परियोजना के लिए हमें 39 महीने लगते हैं। पिछले छह सालों में हमारा निष्पादन चक्र 55 से घटकर 39 महीनों में सिमट गया है।
लोगों को उम्मीद है कि यह अब कम होकर 36 महीने हो जाएगा, लेकिन इस स्तर को हासिल कर पाना काफी मुश्किल काम होगा। लोगों को यह याद रखना चाहिए कि एक प्रोजेक्ट के लिए 30 से 40 हजार चीजों की जरूरत होती है। अगर इनमें से एक भी चीज उपलब्ध न हुई तो हम निर्माण कार्य को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं। साथ ही, 50 डीलरों में से एक ने भी समय पर चीजें मुहैया नहीं की तो प्रोजेक्ट वक्त पर पूरा नहीं हो सकता है।