चालू वित्त वर्ष में अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 1.29 फीसदी कमजोर होने के बाद रुपये में और गिरावट की आशंका है। इसका मुख्य कारण पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतें चढ़ने की संभावना है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के एक सर्वेक्षण में अधिकतर प्रतिभागी मानते हैं कि जुलाई के अंत तक रुपया 87 प्रति डॉलर तक गिर जाएगा। मगर उम्मीद है कि सितंबर के अंत तक रुपया अपनी स्थिति एक बार फिर मजबूत करेगा।
शुक्रवार को रुपया 86.59 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतें रुपये के लिए विशेष जोखिम बनी हुई हैं। पश्चिम एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के कारण कच्चे तेल का दाम उछलने से रुपये पर फिर दबाव आ सकता है और यह अन्य एशियाई मुद्राओं के मुकाबले और कमजोर हो सकता है। हाल ही में डॉलर की कमजोरी के बावजूद दूसरे उभरते बाजारों की मुद्राओं के मुकाबले रुपये का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा।
आईएफए ग्लोबल के मुख्य कार्य अधिकारी अभिषेक गोयनका ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि प्रमुख मुद्राओं खासकर यूरो और येन के मुकाबले डॉलर कमजोर होगा। उभरते बाजार की मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में कमजोरी ज्यादा नहीं दिखेगी। डॉलर में हाल में दिखी कमजोरी के बावजूद उभरते बाजार की अधिकतर मुद्राओं में रुपया पहले ही काफी खराब प्रदर्शन कर चुका है। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि रुपया अब एशियाई मुद्राओं खासकर युआन के अधिक करीब होगा।’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि कच्चे तेल की कीमतें रुपये के लिए जोखिम बनी हुई हैं। यदि पश्चिम एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के कारण ब्रेंट क्रूड 90 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चला जाता है तब रुपये पर दबाव बढ़ सकता है और आगे इसका प्रदर्शन और खराब हो सकता है।’
13 जून से इजरायल ने मोसाद के नेतृत्व में ड्रोन अभियान चलाकर ईरान के परमाणु और मिसाइल बुनियादी ढांचे पर हजारों हवाई हमले किए हैं। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने मिसाइल और ड्रोन हमलों का सिलसिला शुरू किया, जिसमें इजरायल के सोरोका अस्पताल पर सेजिल मिसाइल से बड़ा हमला भी था। इसमें दर्जनों घायल हो गए।
22 जून को अमेरिका संघर्ष में शामिल हो गया और स्थिति गंभीर हो गी। अमेरिका ने ईरान के परमाणु अभियान से जुड़ी जगहों मसलन फोरदो, नतांज और इस्फहान में बंकरों को ध्वस्थ करने वाले बमों से हमला किया। जवाब में ईरान ने गंभीर नतीजों की चेतावनी दी। इससे पश्चिम एशिया में युद्ध बहुत बढ़ जाने का डर हो गया है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘85 रुपये से 86 रुपये प्रति डॉलर की सीमा आदर्श है, जो युद्ध न होने की स्थिति में दिखनी चाहिए। लेकिन युद्ध के कारण स्थिति खराब होने पर हम रुपये को 87 प्रति डॉलर तक देख सकते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘यह समझना जरूरी है कि ईरान वैश्विक बाजार में कच्चे तेल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता नहीं है। इसके निर्यात पर प्रतिबंध है। वह चीन को थोड़ा तेल देता है, लेकिन वैश्विक आपूर्ति में इसकी भूमिका सीमित है। कच्चे तेल की कीमतों में हाल में दिखी 75 डॉलर प्रति बैरल तक की वृद्धि घबराहट के कारण है बुनियादी कारणों से नहीं। ऐसे में बेहद खराब स्थिति में इसके 80 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर जाने की संभावना है और मेरा मानना है कि 75 डॉलर प्रति बैरल लघु अवधि में देखी गई उछाल है। संघर्ष हल्का पड़ने पर कीमतें पुराने स्तर पर लौट आएंगी।’
उल्लेखनीय है कि चालू कैलेंडर वर्ष में अब तक रुपये में 1.13 फीसदी गिरावट आई है। जून में अब तक इसमें 1.17 फीसदी गिरावट देखी गई है।