रिलायंस पेट्रोलियम (आरपीएल) का रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के साथ विलय का फैसला बाजारों के लिए आश्चर्यजनक नहीं है। ध्यान देने की बात यह है कि हालांकि दोनों कंपनियों का विलय अल्पावधि में परिचालन लाभ के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित नहीं होगा।
फ्लैशबैक
अतीत में आरआईएल ने विभिन्न कंपनियों की मदद से बड़ी पूंजी वाली कई परियोजनाओं को पूरा किया है। पिछले 15 साल में आरआईएल ने तीन कंपनियों के साथ विलय किया। उदाहरण के लिए, आरआईएल की मौजूदा 630,000 बैरल प्रति दिन (बीपीडी) क्षमता वाली रिफाइनरी पहले एक अलग इकाई के रूप में स्थापित की गई।
रिलायंस पेट्रोलियम के नाम से भी जानी जाने वाली इस कंपनी ने 1993 में एक आईपीओ जारी किया और वर्ष 2000 में वाणिज्यिक उत्पादन शुरू किया एवं 2002 में इसका आरआईएल के साथ विलय हो गया।
नया सौदा
नए सौदे के मुताबिक आरआईएल का एक शेयर आरपीएल के प्रति 16 शेयरों के लिए जारी किया जाएगा। इसे ध्यान में रख कर कि आरआईएल आरपीएल में शेव्रॉन की 5 फीसदी हिस्सेदारी खरीद लेगी और इसके बाद आरपीएल में इसकी कुल 75.38 फीसदी की हिस्सेदारी हो जाएगी, आरआईएल 6.93 करोड़ शेयरों का नया इश्यू जारी करेगी।
विलय की नियत तारीख 1 अप्रैल, 2008 है और यह अनुमान लगाया गया है कि पूरी विलय प्रक्रिया में लगभग 6 महीने लगेंगे।
आरपीएल फायदे में
एकल आधार वाली इकाई के रूप में हालांकि आरपीएल ने विलय के जरिये आरआईएल को शुद्ध रिफाइनिंग व्यवसाय में एक विकल्प मुहैया कराया है, लेकिन मौजूदा आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए इस विलय से वह फायदे की स्थिति में रहेगी।
वैश्विक मंदी की शुरुआत के साथ ही कच्चे तेल की कीमत में कमी आई है और रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) पिछले कुछ महीनों में घटा है। आरआईएल के मामले (मौजूदा रिफाइनरी) में यह वित्त वर्ष 2009 की पहली तिमाही में 15 डॉलर प्रति बैरल से फिसल कर दूसरी तिमाही में 13 डॉलर रह गया और तीसरी तिमाही में लगभग 10 डॉलर प्रति बैरल।
हालांकि बेंचमार्क सिंगापुर जीआरएम जनवरी, 2009 में ऊपर (6-8 डॉलर प्रति बैरल) रहा। खंडवाला सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक विनय नायर कहते हैं, ‘मौजूदा परिदृश्य में वित्त वर्ष 2010 के लिए संयुक्त इकाई के लिए जीआरएम अनुमानित रूप से 10-12 डॉलर प्रति बैरल है।’
संभावनाएं
इस विलय से कच्चे तेल की खरीदारी, उत्पादन विपणन, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन और संचालन नियोजन जैसे क्षेत्रों में परिचालन लाभ दिख रहा है। लेकिन ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि यह लाभ बेहद मामूली होगा, क्योंकि आरआईएल पहले से ही आरपीएल का प्रबंधन संभाल रही है और संभावित तौर पर कोई भी बड़ा कार्य प्रमुख कंपनी के नेतृत्व में ही पूरा किए जाने की संभावना है।
हालांकि ट्रांसफर प्राइसिंग जैसी समस्याओं को दूर करने और संचालन के प्रबंधन को आसान बनाने में संयुक्त कंपनी को कामयाबी मिलेगी। अहम बात यह है कि आरपीएल द्वारा जुटाए गए नकदी प्रवाह के इस्तेमाल में आरआईएल को अधिक आजादी हासिल होगी।