प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा उत्पादों की गलत तरीके से की जाने वाली बिक्री पर भारतीय रिजर्व बैंक सख्त रुख अपना रहा है और ऐसी प्रथाओं को रोकने के लिए दिशानिर्देश लाने पर भी विचार कर रहा है।
बैंकिंग नियामक ने देखा है कि बीमा जैसे वित्तीय उत्पादों को उन लोगों को बेचा जा रहा है, जिनके पास इसकी समझ नहीं है, जो उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इस बारे में भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा, ‘हम अभी विचार कर रहे हैं कि विनियमित संस्थाओं द्वारा वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं की गलत तरीके से की जाने वाली बिक्री पर दिशानिर्देश लाने की जरूरत है या नहीं।’
बीते हफ्ते एचएसबीसी द्वारा वित्तीय समावेशन पर आयोजित एक कार्यक्रम में राव ने कहा था, ‘बीमा उत्पादों जैसी वित्तीय सेवाओं की गलत तरीके से बिक्री किए जाने की खबरें मिल रही हैं। चिंता की बात है कि उपयुक्तता और औचित्य पर ध्यान दिए बिना ऐसी गलत तरह से होने वाली बिक्री से उस योजनाओं के प्रति अविश्वास पैदा होगा, जिनका उद्देश्य कृत्रिम सीमाएं बनाकर निम्न आय वाले परिवारों को सुक्षा प्रदान करना है।’
डिप्टी गवर्नर की बातें सोमवार को रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर अपलोड की गई हैं।
इसके अलावा रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने माइक्रो फाइनैंस कंपनियों द्वारा वसूली जाने वाली अत्यधिक ब्याज दरों पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इन ऋणदाताओं को इस क्षेत्र से जुड़े उच्च लाभ वाले कारोबार के इतर देखना और सोचना चाहिए। माइक्रो फाइनैंस कंपनियों को इसे सहानुभूति वाले नजरिये से देखना चाहिए और वंचित और गरीब तबके को सशक्त बनाने में अपनी सामाजिक और आर्थिक भूमिका को पहचानना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘इस क्षेत्र में काफी अधिक ऋण है, उस पर ऊंचे ब्याज दर लगते हैं और ऋण वसूलने का तरीका भी काफी कठोर है।’ उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ कंपनियों के पास भले ही कम लागत वाले फंड तक पहुंच है मगर बाकी उद्योग के मुकाबले काफी अधिक मार्जिन वसूलते पाए गए हैं और कई मामलों में तो यह काफी अधिक रहा है।
निजी क्षेत्र के कुछ बैंकों और अधिकतर स्मॉल फाइनैंस बैंकों के पास बड़े पैमाने पर माइक्रोफाइनैंस पोर्टफोलियो है। बैंकों के पास सार्वजनिक जमा जैसे कम लागत वाले फंड तक पहुंच है, जबकि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक फंड और बाजार उधारी पर निर्भर रहना पड़ता है। राव ने कहा, ‘हालिया तिमाहियों में माइक्रोफाइनैंस ऋण पर लगाए जाने वाले ब्याज में कुछ कमी जरूर दिखी है, लेकिन उच्च ब्याज दर और उच्च मार्जिन वाले क्षेत्र अभी भी बरकरार हैं।’
डिप्टी गवर्नर ने कहा कि माइक्रोफाइनैंस क्षेत्र में व्यवधान हाल में बढ़ गए हैं। लोगों पर कर्ज बढ़ गए हैं, जिससे जबरन वसूली के कारण कभी-कभार दुखद परिणाम सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि ऋणदाताओं से ऋण लेने वालों को अत्यधिक ऋण लेने से रोकने के लिए अपने ऋण मूल्यांकन ढांचे को बेहतर बनाने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा माइक्रो फाइनैंस कंपनियों को किसी भी प्रकार की बलपूर्वक या अनैतिक वसूली प्रथाओं से बचना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वित्तीय सेवाएं जिम्मेदार और टिकाऊ तरीके से प्रदान की जाएं।’ उन्होंने माइक्रोफाइनैंस क्षेत्र की कंपनियों को अपने कारोबारी मॉडल का खुद से निरीक्षण करने की सलाह भी दी है।
राव ने कहा, ‘भले ही कारोबारी मॉडल दमदार हो मगर संगठनात्मक संरचना और सेवाएं प्रदान करने के लिए बनाई गई प्रोत्साहन योजनाएं दोषपूर्ण हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्राहकों के लिए प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। इसके लिए मॉडल के बारे में खुद से निरीक्षण करने की जरूरत है।’