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ऑनलाइन खरीदारों को भी मिला उपभोक्ता संरक्षण

Last Updated- December 15, 2022 | 3:51 AM IST

पिछले दिनों उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 को लागू कर दिया गया है, जो उपभोक्ताओं के लिए वाकई खुशखबरी है। नया कानून उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की जगह लागू किया गया है। खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर गणेश प्रसाद कहते हैं, ‘नया अधिनियम लाकर सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित कानून को नए जमाने के हिसाब से बना दिया है। इससे उपभोक्ताओं को अधिक ताकत मिल गई है।’ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में अब ई-कॉमर्स से सामान खरीदने वाले उपभोक्ताओं को भी शामिल किया गया है। ऐसे उपभोक्ता इसी कानून के तहत आने वाले उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 के दायरे में आएंगे।
नए अधिनियम की बड़ी खूबी यह है कि इसमें एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान भी है। पीएसएल एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के सह-संस्थापक एवं पार्टनर सिद्धार्थ जैन कहते हैं, ‘प्राधिकरण का काम उपभोक्ताओं के अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित कारोबारी व्यवहार और जनता एवं उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले झूठे या भ्रामक विज्ञापनों से जुड़े मामलों में नियम-कायदे तय करना है। यह प्राधिकरण सभी उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनकी हिफाजत करने और उन्हें लागू करने का काम भी करेगा।’

ई-कॉमर्स नियम एवं प्रभाव
सभी तरह की ई-कॉमर्स कंपनियां नए अधिनियम की जद में लाई गई हैं। ऑनलाइन माध्यम से होने वाली वस्तुओं की बिक्री एवं प्रदान की जाने वाली सेवाओं, सामान वापस करने और रकम लौटाने से जुड़ी बातें इस अधिनियम में हैं। इससे खरीदरों के लिए पारदर्शिता काफी हद तक बढ़ जाएगी। अब ई-कॉमर्स कंपनियों को उत्पादों, उनके विनिर्माताओं और उनकी बिक्री करने वालों के संबंध में अधिक जानकारी देनी होगी।
नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार ई-कॉमर्स कंपनियों को किसी उत्पाद से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारी का विस्तृत विवरण प्रदान करना होगा। जैन कहते हैं, ‘ई-कॉमर्स की श्रेणी में काम करने वाले सभी पक्षों को उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 के दायरे में रख दिया गया है। अब उन्हें उपभोक्ताओं की शिकायत दूर करने के तमाम पुख्ता उपाय अपने प्लेटफॉर्म पर करने होंगे। साथ ही उन्हें सभी जरूरी जानकारी भी प्रदान करनी होंगी।’ इनके अलावा कंपनियों को शिकायत निवारण अधिकारी, आयातक, मूल्य, उत्पादों की वैधता समाप्त होने की तिथि, उत्पादों का सटीक विवरण एवं इनकी खूबियां, उत्पाद के स्रोत देश, विक्रेता, सत्यापित छवि (इमेज) आदि से जुड़ी जानकारी भी देनी होगी। अधिनियम में विक्रेताओं को अपने उत्पादों के बारे में फर्जी समीक्षा लिखने या उत्पादों की गुणवत्ता या उनकी खूबियों के बारे में गलत जानकारी देने से रोकने के भी प्रावधान हैं। उन्हें चेतावनी दी गई है कि वे अपने प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध उत्पादों और सेवाओं के दाम के साथ छेड़छाड़ कर बेजा मुनाफा कमाने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं करें।
अन्य नियमों में ग्राहकों को ऑनलाइन माध्यम से सुरक्षित भुगतान करने के बारे में बताना, उत्पाद का पूरा मूल्य बताना और उसमें शामिल कर की भी ब्योरेवार जानकारी देना, शिकायत किए जाने पर उसका पंजीकरण क्रमांक देना भी शामिल हैं। यदि किसी प्रकार का अपराध होता है तो उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण या उपभोक्ता अदालतों द्वारा तय जुर्माना भरना होगा।
ग्राहक की ओर से मिली किसी भी शिकायत पर ई-कॉमर्स कंपनी को 48 घंटे के भीतर प्रतिक्रिया करनी होगी। यदि ई-कॉमर्स कंपनी खरीद की पुष्टि कर देती है तो वह ग्राहक से किसी प्रकार का कैंसिलेशन चार्ज नहीं ले सकती। अगर वह शुल्क लेती है तो किसी ग्राहक का ऑर्डर अपनी ओर से खुद ही रद्द करने की सूरत में उसे भी उतना ही शुल्क भरना होगा।

उत्पाद से जुड़ी जवाबदेही
उत्पाद एवं क्षेत्र से जुड़े विशेष कानूनों (खाद्य सुरक्षा कानून, भारतीय मानक ब्यूरो आदि) और अदालतों द्वारा तय सिद्घांतों को छोड़ दें तो भारत में अभी तक उत्पाद से जुड़ी जवाबदेही पर कोई विशिष्ट कानून नहीं है। डीएसके लीगल के ऋषि आनंद कहते हैं,’नीति में बड़ा बदलाव करते हुए 2019 के अधिनियम में भारत में उत्पाद जवाबदेही की शुरुआत की गई है। इसके मुताबिक यदि विनिर्माता द्वारा बनाए गए दोषपूर्ण उत्पाद से सेवा प्रदाता की खराब सेवा से कोई नुकसान होता है तो उपभोक्ता मुआवजे का दावा कर सकता है।’
अधिनियम में उत्पाद विनिर्माता, सेवा प्रदाता और उत्पाद विक्रेता की जिम्मेदारी अलग कर उन्हें फर्जी दावों के बोझ से सुरक्षित रखने का भी प्रयास किया गया है। विनिर्माताओं के मामले में यह विनिर्माण एवं डिजाइन से जुड़े दोष पर लागू होता है। यह उन उत्पादों पर भी लागू होता है, जिनमें बताए गए तरीके से विनिर्माण नहीं किया गया है या कुछ फीचर कम होते हैं। साथ ही एक्सप्रेस वारंटी (खरीदारी के बाद निश्चित समय में उत्पाद की मरम्मत या इसे बदलने का वादा) को पूरा नहीं किया जाता है। जहां तक सेवा प्रदाताओं की बात है तो उनकी तरफ से त्रुटिपूर्ण, अधूरी, अपर्याप्त और गुणवत्ता रहित सेवा दिए जाने और एक्सप्रेस वारंटी या अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं करने की स्थिति में यह प्रावधान लागू होगा।
अगर विक्रेता और विनिर्माणकर्ता एक नहीं हैं तो भी विक्रेता को उत्पाद की जवाबदेही वाली कार्रवाई में जवाबदेह बनना होगा। उसकी जवाबदेही उपभोक्ताओं को दोषपूर्ण उत्पाद देने वाले विनिर्माता, वितरक, विक्रेता आदि को जिम्मेदार ठहराने से जुड़े कानून के तहत होगी। मगर इसका यह मतलब नहीं है कि उपभोक्ता को उत्पाद जवाबदेही कार्रवाई का पूरा हक मिल जाता है। कुछ अपवाद भी हैं, जिनके तहत दावा स्थापित मानकों पर खरा नहीं उतर उतरता है। जैन बताते हैं कि धारा 87 में अपवाद दिए गए हैं और स्पष्ट बताया गया है कि किन परिस्थितियों में ग्राहक का दावा मान्य नहीं होगा।

मध्यस्थता का प्रावधान
अधिनियम में विवाद दूर करने के लिए मध्यस्थता का भी प्रावधान है। प्रसाद कहते हैं, ‘मध्यस्थता से विवादों का निपटारा सरलता एवं अधिक तेजी से हो सकता है। यह मोटे तौर पर उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए भी जरूरी होता है। अगर प्रभावी ढंग इसे लागू किया जाए तो इससे उपभोक्ता विवाद आयोग के पास लटके मामलों का बोझ काफी हद तक कम हो जाएगा।’ मध्यस्थता के बाद भी कोई हल नहीं निकलने पर शिकायतकर्ता आगे जा सकते हैं।

मामले निपटाने की समयसीमा
अधिनियम में शिकायतों का समय से निपटारा किए जाने का भी प्रावधान है। इंडसलॉ के फाउंडर पार्टनर गौरव दानी कहते हैं, ‘अधिनियम और इसके नियमों के तहत आयोग द्वारा समयबद्ध रूप से मामलों के निपटारे का जिक्र है। अधिनियम में कहा गया है कि शिकायत मिलने के तीन महीने के भीतर इस पर निर्णय लेने के लिए कदम उठाया जाना चाहिए। अगर शिकायत के बाद उत्पादों की जांच की जरूरत पेश आती है तो 5 महीने के भीतर उपयुक्त कदम उठाया जाना चाहिए।’ राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के समक्ष दायर अपील के मामले में अधिनियम में कहा गया है कि अपील स्वीकार होने के 90 दिनों के भीतर इसका निपटारा होना चाहिए।

First Published - August 3, 2020 | 12:03 AM IST

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