कई वजहों से ओएनजीसी के शेयरों ने पिछले कुछ दिनों में इतना जबरदस्त प्रदर्शन किया है।
जुलाई, 2008 के बाद से जहां सेंसेक्स के शेयरों से होने वाली कमाई में 17 फीसदी की गिरावट आई, वहीं ओएनजीसी के शेयरों से होने वाली कमाई 13 फीसदी बढ़ी है। इसकी वजह है, कच्चे तेल के दामों में गिरावट के बावजूद कंपनी की मुनाफा कमाने की क्षमता में इजाफा।
साधारण तौर पर कच्चे तेल की कम कीमत का किसी भी तेल उत्पादक की कमाई पर बुरा असर पड़ता। लेकिन ओएनजीसी के लिए इसका मतलब था, सब्सिडी पर होने वाला कम खर्च। पिछले वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में इसे सब्सिडी पर पूरे 28 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे। यह वह दौर था, जब पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें अपने शिखर पर थीं।
प्रबंधन को उम्मीद है कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में कंपनी पर सब्सिडी का बोझ न के बराबर होगा। इसीलिए कंपनी को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। साथ ही, विश्लेषकों को उम्मीद है कि पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले इस साल सब्सिडी का स्तर कम ही रहेगा।
इसके साथ-साथ विदेशों में तेल और गैस के कुंओं की खरीद की कोशिश और एपीएम के तहत कंपनी के अच्छी गैस कीमत के निर्धारण के वजह से भी कंपनी के शेयरों में इजाफा हुआ है। हालांकि, अब भी मध्यम दौर तक उत्पादन स्तर स्थिर ही रहने का जोखिम कंपनी के ऊपर मंडरा रहा है।
कमाई में इजाफा
कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का मतलब होता है कमाई में इजाफा, लेकिन यह बात ओएनजीसी पर लागू नहीं होती। दरअसल कंपनी को ऐसे हालात में तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को छूट (सब्सिडी) पर कच्चा तेल बेचना पड़ता है।
मिसाल के तौर पर वित्त वर्ष 2008 में जब तेल की कीमत 100.4 डॉलर प्रति बैरेल के ऊंचे स्तर पर थी, तब कंपनी को सब्सिडी की वजह से 49.7 डॉलर प्रति बैरेल की कीमत पर ओएमसी को तेल बेचना पड़ रहा था।
कंपनी के लिए सबसे बुरी बात तो यह रही कि पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जब कच्चे तेल की कीमतें 40 डॉलर प्रति बैरेल से भी नीचे आ गईं, तब भी कंपनी को 34 डॉलर प्रति बैरेल की कीमत पर कच्चे तेल बेचना पड़ रहा था।
चौथी तिमाही में सब्सिडी न के बराबर रहने की उम्मीद है। ऐसे में कंपनी की कमाई भी अच्छे-खासे स्तर पर रहने की उम्मीद है। साथ ही, इस वक्त रुपया भी कमजोर है। ऐसे में, कंपनी की रुपये में होने वाली कमाई में भी 21 फीसदी का अच्छा-खासा इजाफा आने की उम्मीद है।
साथ ही, कंपनी का मुनाफा भी मोटे स्तर पर रहेगा। वैसे, विश्लेषकों का कहना है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें 40-45 डॉलर से नीचे आ गईं, तो वह कंपनी के खतरनाक हो सकता है। हालांकि, विश्लेषकों को उम्मीद है कि कीमतें मौजूदा और अगले वित्त वर्ष में 57-63 डॉलर और 70-75 डॉलर के स्तर पर ही रहेंगी। साथ ही, मौजूदा वित्त वर्ष में सब्सिडी में भी काफी गिरावट आ रही है।
स्थिर उत्पादन
देश में कच्चे तेल और गैस के उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा ओएनजीसी की तरफ से ही आता है। लेकिन इसके तेल और गैस के कुंओं से उत्पादन में इजाफा नहीं हो रहा है। दरअसल, यह कंपनी की खुद के तेल और गैस के कुंओं के पुनर्विकास के काम में जुटी हुई है।
कंपनी के कुल उत्पादन का 75 फीसदी हिस्सा इन्हीं कुंओं से आता है। कंपनी उत्पादन में गिरावट को रोकने के लिए कई आधुनिक कदम उठाए हैं। इससे 2000-2008 के दौरान कंपनी के उत्पादन में 1.6 फीसदी का इजाफा हुआ है। दूसरी तरफ, कंपनी के पास तेल का अच्छा-खासा स्टॉक तो है, लेकिन तेल के कुओं की खोज के मामले में उसका रिकॉर्ड काफी अच्छा नहीं है।