सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों का संयुक्त बाजार पूंजीकरण पिछले सात महीनों के दौरान 77 प्रतिशत चढ़ा है। निवेशकों द्वारा वृद्घि संबंधित शेयरों के बजाय वैल्यू शेयरों पर ज्यादा ध्यान दिए जाने के बीच इन कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में तेजी दिखी है। हालांकि सभी सूचीबद्घ कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में उनका योगदान 10 प्रतिशत से नीचे बना रहा।
14 अक्टूबर, 2020 को यह भागीदारी गिरकर महज 7.5 प्रतिशत रह गई। तब से सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 9.3 लाख करोड़ रुपये बढ़कर 21.4 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो 77 प्रतिशत की तेजी है। पीएसयू बाजार पूंजीकरण की भागीदारी बढ़कर 9.24 प्रतिशत हो गई, लेकिन यह 13.4 प्रतिशत के दीर्घावधि औसत से नीचे रही।
समान अवधि के दौरान कुल बाजार पूंजीकरण 44 प्रतिशत बढ़कर 231 लाख करोड़ रुपये हो गया।
पीएसयू बाजार पूंजीकरण में ज्यादातर वृद्घि भारतीय स्टेट बैंक की वजह से आई। ऋणदाता का बाजार पूंजीकरण अक्टूबर से 2.05 लाख करोड़ रुपये तक बढ़कर 3.83 लाख करोड़ रुपये हो गया है। ओएनजीसी और पावरग्रिड ने अपने बाजार पूंजीकरण में 71,142 करोड़ रुपये और 46,718 करोड़ रुपये जोड़े। वर्ष 2015 से भारत के कुल बाजार पूंजीकरण में पीएसयू की भागीदारी तेजी से घटी है। विनिवेश को लेकर गतिरोध और मुनाफे में कमी के बावजूद वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए लाभांश की लगातार निकासी से इस शेयर के लिए नकारात्मक धारणा को बढ़ावा मिला।
आईडीबीआई कैपिटल के शोध प्रमुख ए के प्रभाकर ने कहा, ‘कई बड़ी पीएसयू कंपनियां अपने ऊंचाइें के सिर्फ 20 प्रतिशत पर कारोबार कर रही हैं। उनके खुलासा मानक कमजोर हैं। कुछ मामलों में, परिचालन की ऊंची लागत से भी दबाव पड़ा है।’
विश्लेषकों का कहना है कि कई पीएसयू को बाजार बढ़त हासिल है और उन्हें अपनी पूंजी का इस्तेमाल सरकार को भुगतान या सरकार की ओर से कंपनियों की खरीदारी के बजाय विस्तार पर करना चाहिए।
क्षेत्रों में लगातार वृद्घि, परिचालन के अभाव की वजह से पीएसयू बाजार पूंजीकरण में गिरावट को बढ़ावा मिला है।
इक्विनोमिक्स के संस्थापक जी चोकालिंगम का कहना है, ‘ज्यादातर पीएसयू उन व्यवसायों से जुड़े हुए नहीं हैंजो मौजूदा समय में बाजार के अनुकूल हैं, जिनमें आईटी और फार्मा शामिल हैं। वे पारंपरिक निर्माण व्यवसाय में नहीं हैं।’
ऐसे विदेशी फंडों से दिलचस्पी घटी है, जो ईएसजी (पर्यावरण, समाज और कॉरपोरेट प्रशासन) मानकों के अनुरूप निवेश करते हैं। इससे इन शेयरों के लिए निवेशकों का लगाव कम हुआ है। अपनी बैलेंस शीट को कर्ज मुक्त बनाने वृद्घि संबंधित क्षेत्रों में विविधता लाने की अक्षमता अन्य कारण हैं। इसके अलावा गिरती तेल कीमतों जैसे बाहरी कारक भी हैं। हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि पीएसयू के लिए अच्छा प्रदर्शन करने की संभावना बनी हुई है।
जेएम फाइनैंशियल के प्रमुख (रणनीतिकार एवं अर्थशास्त्री) धनंजय सिन्हा ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘पीएसयू की मुनाफा भागीदारी (बीएसई 500 श्रेणी में) वित्त वर्ष 2018 के 18 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 28 प्रतिशत हो गई। इससे पहले वित्त वर्ष 2022 में 39 प्रतिशत की तेजी के बाद इसमें लगातार तेजी आई थी। बीएसई-500 के मुकाबले बीएसई पीएसयू के प्रतिफल अनुपात का नकारात्मक अंतर 700 आधार अंक से घटकर -100 आधार अंक रह गया।’ उन्होंने कहा कि इसके बावजूद, बीएसई पीएसयू के लिए बाजार पूंजीकरण में अंतर तीन साल पहले के 20 प्रतिशत से घटकर 9 प्रतिशत रह गया।
सिन्हा ने कहा, ‘इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए हमारा मानना है कि उन कंपनियों में पीएसयू शेयरों से अच्छे प्रतिफल का गुंजाइश बनी हुई है, जो अपने परिचालन एवं प्रशासनिक प्रदर्शन में बड़ा बदलाव सुनिश्चित कर सकती हैं, खासकर विनिवेश कार्यक्रम के संदर्भ में।’
प्रभाकर के अनुसार, लंबी अवधि से जुड़े पेशेवर प्रबंधक पीएसयू के कायाकल्प में मददगार साबित हो सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘प्रबंधन में निरंतरता नहीं है, कई सीईओ जिम्मेदारी संभालने के 6 से 8 महीने के अंदर सेवानिवृत हुए हैं। अब सरकार ने प्रमुख प्रबंधकों के लिए निर्धारित कार्यकाल तय करना शुरू किया है।’
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि सरकार को निजीकरण के संदर्भ में चयनात्मक रुख अपनाना चाहिए। चोकालिंगम ने कहा, ‘जिस समय हिंदुस्तान जिंक का निजीकरण हुआ, तब कुल बाजार पूंजीकरण 1,000 करोड़ रुपये था। आज, बाजार पूंजीकरण 1.43 लाख करोड़ रुपये है और सरकार की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है।’