भारतीय रिजर्व बैंक ने कॉरपोरेट डेट सिक्योरिटीज में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा किए जा रहे निवेश के लिए अल्पकालिक निवेश सीमा और ‘कंसंट्रेशन लिमिट’ समाप्त कर दी हैं। इस कदम से इन निवेशकों के लिए कम रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश करना अधिक आसान हो जाएगा, क्योंकि इस क्षेत्र में यील्ड अच्छी है।
ज्यादा रेटिंग वाले भारतीय बॉन्डों और अमेरिकी बॉन्डों की यील्ड के बीच अंतर कम रह जाने तथा कम रेटिंग वाले बॉन्डों पर यील्ड अधिक होने के कारण इनमें ज्यादा निवेश आने की संभावना है। 10 साल के सरकारी बॉन्ड और 10 साल के अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड की यील्ड के बीच अंतर घटकर केवल 179 आधार अंक रह गया है, जो चालू कैलेंडर वर्ष की शुरुआत में 218 आधार अंक था।
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अभी तक विदेशी निवेशक कंपनियों के डेट में अपने कुल निवेश का 30 प्रतिशत हिस्सा ही एक वर्ष की परिपक्वता मियाद वाले बॉन्डों में लगा सकते थे। साथ ही दीर्घावधि के लिए निवेश करने वाले एफपीआई कंसंट्रेशन सीमा के कारण कॉरपोरेट डेट बॉन्ड में अपनी कुल निवेश सीमा का 15 प्रतिशत से अधिक नहीं लगा सकते थे तथा दूसरी श्रेणियों में 10 प्रतिशत से अधिक निवश नहीं कर सकते थे। इस नियामकीय रियायत से एफपीआई का निवेश फौरन नहीं बढ़ेगा मगर इससे बुनियादी मजबूती और अधिक यील्ड वाले बॉन्डों का रास्ता साफ होगा, जिन्हें अभी तक ब्याज दर अधिक होने के कारण अनदेखा कर दिया जाता था।
रॉकफोर्ट फिनकैप एलएलपी के मैनेजिंग पार्टनर व संस्थापक वेंकटकृष्णन श्रीनिवासन ने कहा, ‘इससे एफपीआई ज्यादा यील्ड वाले कॉरपोरेट बॉन्ड का रुख कर सकते हैं। मिड मार्केट फर्मों के इन बॉन्डों की यील्ड अक्सर 13 से 20 प्रतिशत तक होती है। इसकी वजह से ज्यादा जोखिम के बावजूद ये आकर्षक होते हैं। वैश्विक निवेशक बेहतर रिटर्न तलाशते हैं। ऐसे में शीर्ष श्रेणी के बॉन्डों के बजाय कम रेटिंग मगर अधिक यील्ड वाले भारतीय बॉन्डों में विदेशी निवेशकों की ज्यादा दिलचस्पी हो सकती है।’