मैं वर्ष 2006 से प्रणालीबध्द निवेश योजना (एसआईपी) के जरिए म्युचुअल फंडों में निवेश कर रहा हूं। मेरे निवेश की समयावधि 15 वर्षों की है।
हाल की शेयर बाजार में गिरावट के पूर्व मेरे पोर्टफोलियो का किताबी (अनरियलाइज्ड) मुनाफा 100 फीसदी से ज्यादा का था। हालांकि, वर्तमान में लगभग 25 फीसदी का घाटा हो गया है।
लिहाजा, मैं अपने निवेश को रिडीम नहीं करना चाहता हूं, लेकिन समय-समय पर मैं मुनाफावसूली करने की सोच रहा हूं। रिडीम करने के लिए सबसे बेहतर रणनीति क्या होगी?
रंगेश
आपको अपने पोर्टफोलियो में फेरबदल (रीबैलेंस) करना चाहिए। यह बाजार की गिरावट के दौरान आपके निवेश को बचाए रखेगा। समय-समय पर फेरबदल (रीबैलेंसिंग) आपकी क्षमता के अनुरुप आपके निवेश जोखिम को कम करने में सहायक सिध्द होगा।
मूलत: निवेशक को अपने पोर्टफोलियो में साल भर में एक बार फेरबदल करना चाहिए। अस्थिरता के दौर में आप तिमाही फेरबदल भी कर सकते हैं। यह आपके परिसंपत्ति में सही संतुलन बनाए रखेगा। जब आप निवेश की समयावधि के अंतिम दौर में हो, तो आपको इक्विटी में निवेश के जोखिम को धीरे-धीरे कम कर देना चाहिए।
प्रत्येक वर्ष आपके इक्विटी पोर्टफोलियो का कुछ हिस्सा डेट में बदल दें। यह आपके निवेश को सुरक्षित और परिसंपत्ति श्रेणी में स्थिर बनाने में सहायक होगा। बाजार की गिरावट में किसी भी निवेशक के धैर्य एवं विश्वास की परीक्षा होती है।
यह निवेशकों के लिए मुश्किल भरा समय है, जब उसे अपने निवेश की कीमत में लगातार गिरावट देखनी पड रही है।
लेकिन गिरावट के दौरान निवेश जारी रखना काफी महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान निवेशक को निम्नतम स्तर पर खरीदारी करने का मौका मिलता है। जब बाजार में बहार आएगी, तब वर्तमान में आपको हुई आनुमानिक घाटे की अपेक्षा इस निवेश से कहीं अधिक की प्राप्ति होगी।
म्युचुअल फंडों द्वारा लाभांश कब दिया जाता है, क्या इस पर लाभांश वितरण कर (डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स – डीडीटी) देना होता है? यदि निवेशक ग्रोथ विकल्प को चुनता है, तो क्या निवेशक डीडीटी देना टाल सकता है? ग्रोथ विकल्प में कर का भुगतान किस प्रकार करना पड़ता है?
चंद्रकांत गुप्ता
परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी द्वारा जब लाभांश वितरण किया जाता है, तभी उनके द्वारा लाभांश वितरण कर (डीडीटी) का भुगतान भी कर दिया जाता है। लिहाजा निवेशक के हाथों में आनेवाला लाभांश कर मुक्त होता है, उल्लेखनीय है कि योजना में ही डीडीटी की वसूली कर ली जाती है। अंतत: यह निवेशक के हिस्से से ही तो जाता है।
यदि निवेशक द्वारा ग्रोथ विकल्प का चयन किया जाता है तो डीडीटी की रकम को बचाया जा सकता है। ग्रोथ विकल्प के लिए यहां पर कोई अन्य कर लागू नहीं होता है। लेकिन रीडेम्पशन पर पूंजी लाभ कर लागू होगा।
मेरे द्वारा कुछ म्युचुअल फंडों में निवेश किया गया है, जिसे मैं बंद करना चाहता हूं? मेरे निवेश में 50 फीसदी की गिरावट आई है। क्या मैं वर्तमान के निवेश को घाटे पर बेचकर और अन्य बेहतर म्युचुअल फंडों के यूनिट को उठा सकता हूं?
इंदर पाल सिंह
रीडीम करने से पूर्व वर्तमान के म्युचुअल फंडों के प्रदर्शन को भलीभांति टटोल लीजिए। यदि फंड का प्रदर्शन स्थिर है और पूर्व में इसका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरुप रहा है तो फंड के साथ बने रहने में ही भलाई है। हाल के शेयर बाजार में गिरावट के चलते वर्तमान में इन फंडों में घाटा हुआ है लेकिन भविष्य में ये अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
यदि आपके द्वारा जिन फंडों में निवेश किया गया है, उनका पिछला प्रदर्शन अस्थिर रहा है तो इस फंड से बाहर निकलना ही बुध्दिमानी होगी। किसी अच्छे फंड में निवेश करें जिसका प्रदर्शन बेहतर रहा है।
वर्तमान के निराशाजनक परिदृश्य को दिमाग में रखते हुए, यह सलाह देना चाहेंगे कि किसी अच्छे डाइवर्सिफाइड लार्ज-कैप फंडों का चुनाव करें जिनका पिछला प्रदर्शन भी बढ़िया रहा है।
तीन वर्ष पहले एचडीएफसी प्रूडेंस फंड लंबी अवधि तक टॉप रेटेड फंडों में शुमार था। लिहाजा मैंने इसे मेरे निवेश का हिस्सा बना लिया था।
मेरे निवेश के जोखिम रुपरेखा के अनुसार मैं डेट और इक्विटी के अनुपात के साथ सहज था। हालांकि, फंड के प्रदर्शन में अब गिरावट दर्ज की गई है। भविष्य के लिए इस फंड पर आपकी क्या राय है?
अमित खेर
वर्ष 2006 तक फंड का प्रदर्शन काफी बढ़िया रहा। वर्ष 2007 से इसका प्रदर्शन औसत हो गया। प्रदर्शन में आई गिरावट के लिए प्राथमिक तौर पर इक्विटी में सर्वाधिक निवेश करना कारण बना और अब बाजार में जारी गिरावट के दौरान भी यह निवेश बरकरार है।
इस निर्णय ने फंड के प्रदर्शन को कमजोर बना दिया। पिछले दो वर्षों के दौरान फंड के औसत प्रदर्शन ने इसे महज सामान्य निवेश बना दिया है। म्युचुअल फंड बाजार में कई अच्छे बैलैंस्ड फंड हैं जिन पर आप गौर सकते हैं।
क्या यदि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा ब्याज दरों में आगे भी कटौती की जाती है, जिसकी अधिक संभावनाएं बनी हुई हैं, तो गिल्ट फंड में सुधार आएगा?
नरेश मोदी
गिल्ट फंडों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक)में निवेश किया जाता है। जिसमें केंद्र सरकार की डेटेड प्रतिभूतियां (एक वर्ष से अधिक की परिपक्वता वाली प्रतिभूतियां), राज्य सरकार की प्रतिभूतियां और राजकोष बिल आदि का समावेश होता है।
निवेश के ये उपकरण परिपक्वता से ठीक पहले प्रतिबिंबित होते हैं और आगे ब्याज दरों में बदलाव के चलते काफी जोखिम भरे हो जाते हैं। यील्ड्स और बांड की कीमतें विपरीत दिशा में आगे बढ़ते हैं।
जब ब्याज दरों में गिरावट आती है तब सरकारी प्रतिभूतियों की आय में भी गिरावट दर्ज की जाती है और ऐसे में गिल्ट फंडों की कीमतों में उछाल आ जाता है। जब ब्याज दरों में बढ़ोतरी होती है तो सरकारी प्रतिभूतियों की आय में भी बढ़ोतरी आती है और गिल्ट फंडों की कीमतों में गिरावट दर्ज की जाती है।