बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण(आईआरडीए) ने सभी जीवन बीमा कंपनियों को कमीशन पर होने वाले खर्च पर नियंत्रण रखने को कहा है।
निर्देश में इन कंपनियों को 31 मार्च 2009 को समाप्त हो रहे चालू वित्त वर्ष में खर्च और इस दिशा में उठाए गए सभी कदमों का ब्योरा देने को भी कहा गया है।
बीमा नियामक का यह सख्त निर्देश इस तरह की खबरों के बाद आया है कि जीवन बीमा कंपनियां अपने बिचौलियों को दिए जाने वाले कमीशन के तौर पर दोनो हाथों से पैसा लुटा रही है।
इसके बाद बीमा कंपनियों की इस कवायद पर रोक लगाने की जरूरत समझी जाने लगी क्योंकि इससे बीमा कं पनियों की सेहत पर बुरा असर पड सकता है। उल्लेखनीय है कि ये बिचौलियो कंपनियों के व्यक्तिगत अभिकर्ताओं के आलवा होते हैं जिनमें बैंक और कॉर्पोंरेट एजेंट शामिल हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इन पर जीवन बीमा कंपनियां दोनों हाथों से रकम लुटा रही हैं।
औद्योगिक सूत्रों के अनुसार बैंकों को भुगतान किए जाने वाला रेफरल शुल्क पर कमीशन के अलावा10 करोड़ से 25 करोड़ रुपये के आस पास बैठता है। बीमा उद्योग से जुड़े एक वरिष्ठ प्रतिनिधि ने क हा कि कंपनियों द्वारा खुले आम पैसा लुटाने से बाजार पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है।
इस प्रतिनिधि ने कहा कि अनावश्यक बोझ के कारण कंपनियों को बैंकों के साथ अपनी साझेदारी को बचाने के लिए एक बडी रकम अलग से रखनी पड़ती है। बीमा नियामक इन शिकायतों और इसके परिणस्वरूप बीमा कारोबार पर पड़नेवाले बुरे असर के कारण बीमा कंपनियों से अब इन बिचौलियों को किए जाने वाले भुगतान का ब्योरा मांगा है।
इसके लिए नियामक ने विशेष परिपत्र तैयार किया है जिसे एप्वांटेड एक्चुअरीज रिपोर्ट के साथ ही नियामक को सौंपा जाना है। नियामक ने यह भी साफ तौर पर कहा है कि अगर बिचौलिये के साथ कुछ अन्य पार्टियां भी जुड़ी हैं और इन्हें भी भुगतान किया जाता है तो इस बात की जानकारी भी सौंपना आवश्यक है।