मंदी के माहौल में जब सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर धीमी हो रही हो, औद्योगिक उत्पाद और निवेश में गिरावट दर्ज की जा रही हो, ऐसे समय में कुछ बुनियादी ढांचा क्षेत्रों के उत्पादन में बढ़ोतरी सुखद संकेत है।
जिन क्षेत्रों के उत्पादन में वृद्धि हो रही है, उनमें स्टील, वाहन, सीमेंट और पूंजीगत वस्तुएं शामिल हैं।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही तक जब कुछ विश्लेषक यह कह रहे थे कि मांग में कमी की वजह से विनिर्माण क्षेत्रों में गिरावट आ रही है, वहीं अब कहने लगे हैं कि इन क्षेत्रों में विकास की संभावनाएं हैं और ये क्षेत्र तेजी से विकास कर सकते हैं।
हालांकि मांग में कमी की वजह से औद्योगिक उत्पादन आंकड़ों में दिसंबर (0.6 फीसदी) और जनवरी (0.5 फीसदी) में गिरावट दर्ज की गई।
इसके बावजूद वाहन क्षेत्र की विकास दर साल-दर-साल करीब 13 फीसदी रही। वहीं स्टील का चालू तिमाही में रिकॉर्ड उत्पादन होने की उम्मीद है, साथ ही नबंवर से फरवरी माह के बीच सीमेंट की मांग में भी काफी तेज वृद्धि देखी गई।
दरअसल, पहले जहां कच्चे माल की कीमत और ऊंची ब्याज दर को लेकर चिंता थी, वहीं अब उद्योग के सामने सबसे बड़ी चुनौती उपभोक्ता मांग की है। सच तो यह है कि तमाम क्षेत्रों में मांग में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
विश्लेषकों का कहना है कि अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो वाहन, सीमेंट और स्टील के उत्पादन में हालिया बढ़ोतरी बहुत लंबे समय तक नहीं रहने वाली है। सबसे जरूरी है कि मांग में बढ़ोतरी हो, जो मौजूदा स्थिति को देखते हुए कठिन लग रहा है।
पिछले दो महीनों के दौरान वाहन, सीमेंट, स्टील और रियल्टी क्षेत्रों के विकास के पीछे सरकारी राहत पैकेज, कीमतों में कटौती, कंपनियों की ओर से नए-नए उत्पादों को लॉन्च करना और उपभोक्ता मांग में वृद्धि का मिश्रित असर रहा है।
हालांकि सीमेंट को छोड़ दे, इन सभी क्षेत्रों के विकास दर में वित्त वर्ष 2009 के दौरान साल-दर-साल गिरावट गिरावट का रुख देखा जा रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि इन क्षेत्रों के विकास की सही तस्वीर वित्त वर्ष 2010 की तीसरी तिमाही में ही साफ हो पाएगी। आइए जानते हैं, उन क्षेत्रों के बारे में जिनकी बिक्री में हाल के दिनों में इजाफा हुआ है।
वाहन क्षेत्र
ऊंची ब्याज दर और मंदी की वजह से वाहन क्षेत्रों को तीसररी तिमाही में बिक्री में गिरावट का सामना करना पड़ा था। हालांकि अब स्थिति में सुधार हो रहा है और पिछले दो महीनों में कंपनियों की बिक्री में इजाफा हुआ है।
ऐसे में चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही इन कंपनियों के लिए अच्छा साबित हो सकता है। फरवरी माह में वाहनों की बिक्री में साल-दर-साल के आधार पर 13 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई और इस दौरान वाहन कंपनियों ने करीब 8.36 लाख वाहनों की बिक्री की।
हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए दहाई अंक की यह विकास दर आगे बना रहेगा, इस पर संदेह है।
उनके मुताबिक, बिक्री में इससे थोड़ी गिरावट आएगी और वाहन क्षेत्रों की विकास दर इकाई अंकों में बनी रहेगी। उत्पाद शुल्क में कटौती और कच्चे माल की कीमतों में कमी का असर चौथी तिमाही के परिणामों में दिख सकता है।
वैसे, व्यावसायिक वाहनों की बिक्री में अभी भी तेजी नहीं आई है, जबकि कार और दोपहिया वाहनों की बिक्री अगले वित्त वर्ष में सुधर सकती है।
दोपहिया वाहन
वाहन उद्योग में सबसे कम मार दोपहिया वाहनों की बिक्री पर पड़ी है। फरवरी में इस सेगमेंट की बिक्री साल-दर-साल के आधार पर 16 फीसदी की दर से बढ़ी है। इस दौरान कंपनियों की कुल बिक्री 6.3 लाख इकाई रही।
वैसे, ऊंची ब्याज दरें और कच्चे माल की कीमतों में इजाफे का असर इस क्षेत्र पर भी पड़ा, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसकी अच्छी मांग होने की वजह से दोपहिया वाहनों की बिक्री में खास गिरावट नहीं देखी गई।
हीरो होंडा के वाहनों की बिक्री सबसे ज्यादा हुई और इसकी विकास दर 24 फीसदी के करीब रही। कंपनी के पैशन प्रो मॉडल की बिक्री सबसे अधिक हुई।
हालांकि निर्यात में गिरावट की वजह से बजाज ऑटो की बिक्री में नरमी का रुख रहा और इसमें करीब 16 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। टीवीएस मोटर्स के मोटरसाइकिलों की बिक्री 7 फीसदी की दर से बढ़ी है, जबकि स्कूटर की बिक्री 35 फीसदी की दर से बढ़ी है।
उल्लेखनीय है कि कंपनी की ओर से हाल ही में स्ट्रीक नाम से स्कूटर लॉन्च की गई थी। वैसे, अगले महीने बजाज की बिक्री में भी इजाफा होने की उम्मीद है, क्योंकि कंपनी की ओर से हाल में एक्ससीडी 135 मॉडल लॉन्च किया गया है, जिसकी फरवरी में 21,000 की बिक्री हुई है।
वैसे, हीरो होंड की बिक्री ग्रामीण इलाकों में और बढ़ सकती है, जिससे कंपनी की बिक्री का ग्राफ और ऊपर जा सकता है।
कार
फरवरी माह में कारों की बिक्री में 15 फीसदी की दर से इजाफा हुआ। इसकी मुख्य वजह कीमतों में कमी और नए-नए मॉडल लॉन्च करना रहा। इस दौरान मारुति की ओर से ए-स्टार, जबकि हुंडई की ओर आई-20 मॉडल लॉन्च की गई।
विश्लेषकों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में कार कंपनियों की बिक्री 3 फीसदी की दर से बढ़ सकती है, जिसकी वजह ब्याज दरों में कटौती, बैंकों की ओर से आसान ऋण की सुविधा, पेट्रोल-डीलज की कीमतों में कमी और नए-नए मॉडल हैं। लेकिन मंदी के माहौल में नौकरियों की अनिश्चितता की वजह से कारों की बिक्री पर असर पड़ सकता है।
पिछले महीनों कारों की बिक्री में सबसे ज्यादा इजाफा मारुति सुजुकी में दर्ज की गई। इस दौरान कंपनी की कारों की बिक्री सा-दर-साल के आधार पर 20 फीसदी की दर से बढ़ी। घरेलू बाजार में ए2 सेगमेंट, जिसके तहत अल्टो, जेन, वैगनआर और स्विफ्ट मॉडल आते हैं, उसकी बिक्री 14 फीसदी की दर से बढ़ी है।
इस दौरान कंपनी की ओर से 80,000 ए-स्टार मॉडल बेचे गए, जो इस मॉडल की अब तक की सर्वाधिक बिक्री है। यही नहीं, कंपनी ए स्टार, स्विफ्ट और डिजायर मॉडलों की कीमतों में फिलहाल कोई कटौती नहीं की है।
मारुति की तरह महिंद्रा ऐंड महिंद्रा को भी जाइलो के लॉन्च का फायदा मिला है। कंपनी की बिक्री में इस दौरान 17 फीसदी का इजाफा हुआ है। मारुति की बिक्री को देखते हुए विश्लेषकों का कहना है कि कंपनी के शेयरों की कीमतों में भविष्य में और इजाफा हो सकता है।
व्यावसायिक वाहन
उत्पाद शुल्क में कटौती से टाटा मोटर्स और अशोक लीलैंड को फरवरी माह में फायदा हुआ है। इस दौरान कंपनी के एमऐंडएचसीवी सेगमेंट की बिक्री में क्रमश: 53 फीसदी और 23 फीसदी का इजाफा हुआ है।
विश्लेषकों का कहना है कि बिक्री में आई तेजी व्यावसायिक वाहन कंपनियों के लिए अच्छा संकेत है, क्योंकि सितंबर और दिसंबर में इन कंपनियों की बिक्री में 50 से 70 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि आने वाली कुछ तिमाहियों में कंपनी की बिक्री में बहुत ज्यादा सुधार होने की उम्मीद नहीं है।
जानकारों का कहना है कि औद्योगिक उत्पादन में गिरावट, मांग में कमी और ऊंची ब्याज दरों के कारण व्यावसायिक वाहनों की बिक्री चालू वित्त वर्ष में करीब 20 फीसदी कम हो सकती है। यानी करीब 4 लाख इकाई की बिक्री होने की उम्मीद है।
ट्रकों की बिक्री तो ठंडी रहने के पूरे आसार हैं, लेकिन बसों की बिक्री में इजाफा हो सकता है। दरअसल, बसों की मांग सरकार की ओर से होने का फायदा इन कंपनियों को हो सकता है। जून तक वाहन निर्माता कंपनियों को करीब 15,000 बसों की आपूर्ति सरकार को करनी है, उसके बाद डिफेंस को भी इन कंपनियों से अच्छा ऑर्डर मिल सकता है।
प्रति बस की कीमत 30 लाख रुपये है। ऐसे में कंपनियों को करीब 4500 करोड़ रुपये सरकार से ही मिलेंगे, जिससे टाटा मोटर्स और अशोक लीलैंड को कुछ राहत मिल सकती है।
इसके बावजूद अशोक लीलैंड को चालू वित्त वर्ष में 18 से 25 फीसदी की गिरावट देखनी पड़ सकती है, जबकि टाटा मोटर्स को कारों की बिक्री में इजाफे से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है, जिससे व्यावसायिक सेगमेंट में गिरावट की कुछ हद तक भरपाई हो सकती है।
हालांकि ट्रकों की बिक्री में गिरावट टाटा मोटर्स के लिए चिंता का सबब है। वहीं टाटा मोटर्स को जून 2009 तक 2 अरब डॉलर का कर्ज भी चुकाना है, जिससे कंपनी पर अगले वित्त वर्ष में भी दबाव बना रह सकता है।
सीमेंट
मंदी के बीच सीमेंट कंपनियों के लिए अच्छी खबर है। पिछले कुछ महीनों से सीमेंट कंपनियों की बिक्री में अच्छा इजाफा हो रहा है। इसके साथ ही सीमेंट की कीमतें जहां बढ़ीं हैं, वहीं कच्चे माल की कीमतों में नरमी आई है, जिससे कंपनियों की लागत कम हुई है।
विश्लेषकों का कहना है कि पिछले चार माह के दौरान सीमेंट की मांग में बढ़ोतरी की मुख्य वजह चुनाव के कारण पब्लिक वेलफेयर परियोजनाओं को पूरा करना रहा है। जहां तक बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की बात है, तो 2 टीयर और 3 टीयर शहरों में अब भी मांग कम है।
इसकी वजह से सीमेंट की मांग पर असर पड़ना लाजिमी है। हालांकि कराए में कमी, कोयला और अन्य कच्चे माल की कीमतों में गिरावट की वजह से सीमेंट कंपनियां राहत की सांस ले रही हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो आयातित कोयले की कीमतों में करीब 65 फीसदी की गिरावट आई है।
घरेलू कोयले और मालाभाड़ा में भी कमी आई है। इसकी वजह से कंपनियों की लागत घटी है।खास बात यह कि दिसंबर 2008 में सीमेंट की कीमतों में भी इजाफा किया गया था। वहीं फरवरी 2009 में सीमेंट की कीमतें प्रति बोरी (50 किलो) 2 से 15 रुपये की बढ़ोतरी की गई।
मार्च में भी सीमेंट कंपनियों की ओर से प्रति बोरी 3 से 5 रुपये की बढ़ोतरी की गई। विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले महीने में एकबार फिर सीमेंट की कीमतों में इजाफा हो सकता है। ऐसे में विश्लेषकों का कहना है कि जून की तिमाही में कंपनियों का बेहतर परिणाम सामने आ सकता है।
हालांकि ऐसे में सवाल उठता है कि सीमेंट कंपनियों में इस तरह की तेजी कितने समय तक रहेगी? विश्लेषकों का कहना है कि मानसून तक सीमेंट की मांग बनी रहेगी। मार्च और अप्रैल माह में सीमेंट की मांग में 6-8 फीसदी का इजाफा भी हो सकता है।
लेकिन जून के बाद मांग में नरमी आने के आसार हैं। ऐसे में अधिक उत्पादन होने से कंपनियों पर कीमतें घटाने का दबाव बनेगा। जनवरी-सितंबर 2009 में 37 लाख टन अधिक उत्पादन होने की उम्मीद है, जबकि मांग में 6-8 फीसदी का ही इजाफा होगा।
ऐसे में कंपनियों के पास सीमेंट का स्टॉक जमा हो जाएगा। कुल मिलाकर कहें, तो मौजूदा स्थिति सीमेंट कंपनियों के लिए अच्छी है, लेकिन आने वाले समय में कंपनियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनके मुनाफे पर भी दबाव बनेगा। ऐसे में सीमेंट कंपनियों के शेयरों में हाल के दिनों में जिस तरह की तेजी आई है, वह आगे देखने को नहीं मिलेगी।
रियल एस्टेट
जॉन्स लैंग के सीईओ (बिानेस) संजय दत्त का कहना है कि प्रमुख डेवलपर्स कंपनियों की ओर से मेट्रो शहरों में कीमतों में कटौती और ब्याज दरों में नरमी की वजह से मकानों की मांग में 5-6 फीसदी का इजाफा हुआ है।
हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि मंदी की वजह से नौकरियों पर संकट, महंगे मकान और तरलता की समस्या की वजह से आने वाले समय में भी रियल एस्टेट क्षेत्र की मांग में स्थिरता देखी जा सकती है। वैसे, अंतिम तिमाही में रिहायशी और व्यावसायिक सेगमेंट में थोड़ा सुधार आ सकता है।
मांग में कमी को देखते हुए कुछ डेवलपरों ने अपनी परियोजनाओं को कम से कम एक साल के लिए टाल दिया है, ताकि मांग से ज्यादा आपूर्ति न हो। कुछ बड़ी कंपनियां अपने ऋण को पनर्गठित करने में लगी हैं और आपूर्ति में मामूली बढ़ोतरी कर रही है।
विश्लेषकों का कहना है कि जब लोगों को लगेगा कि नौकरियों में स्थिरता आ गई है, तभी मांग में बढ़ोतरी हो सकती है। वैसे अनिश्चितता भरे माहौल में डेवलपर कंपनियों को नई परियोजनाओं के लिए फंड जुटाना भी मुश्किल हो रहा है।
स्टील
फंडामेंटल्स में थोड़ा सुधार होने की वजह से धातु सूचकांक में सुधार देखा जा रहा है। स्टील कंपनियों की बात करें, तो घरेलू क्रूड स्टील का उत्पादन दिसंबर 2008 में जहां गिरावट दर्ज की गई थी, वहीं जनवरी में इसमें 1.5 फीसदी बढ़ोतरी देखी गई।
विश्लेषकों का कहना है कि फरवरी में उत्पादन जहां स्थिर रहा, वहीं मार्च में इसमें अच्छी वापसी देखी जा सकती है।
टाटा स्टील और जेएसडब्ल्यू स्टील के उत्पादन में चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में अच्छा सुधार होने की उम्मीद है। जानकारों का कहना है कि अंतिम तिमाही में इन कंपनियों के उत्पादन में तीसरी तिमाही की तुलना में करीब 30 फीसदी का इजाफा हो सकता है।
गौरतलब है कि टाटा स्टील चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 20 लाख टन की क्षमता बढ़ाने की तैयारी कर रही है, जिसमें ज्यादातर उत्पाद लॉन्ग प्रोडक्ट के होंगे। जेएसडब्ल्यू स्टील और सेल की बात करें, तो इसके कुल उत्पादन में लॉन्ग प्रोडक्ट की हिस्सेदारी क्रमश: 32 फीसदी और 45 फीसदी है।
विश्लेषकों का कहना है कि निर्माण कार्यों में लॉन्ग प्रोडक्ट की मांग ज्यादा होने की वजह से कंपनियां लंबे उत्पाद पर जोर दे रही है। उल्लेखनीय है कि स्टील की कुल खपत का 35-45 फीसदी हिस्सा लॉन्ग प्रोडक्ट की ही होती है। अगर वाहन, पूंजीगत वस्तु और कंज्यूमर डयूरेबल्स क्षेत्रों की मांग बढ़ती है, तो फ्लैट उत्पादों की मांग में भी इजाफा हो सकता है।
जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक (वित्त) शेषागिरि राव का कहना है कि लंबे उत्पादों की मांग में इजाफा हो रहा है। साथ ही वाहन और अन्य क्षेत्रों की मांग बढ़ने से अन्य उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी।
लेकिन क्या यह ट्रेंड आगे भी बना रहेगा, पूछने पर राव ने बताया कि इसे बारे में ज्यादा विचार नहीं किया गया है, लेकिन इतना जरूर हैकि अक्टूबर और नबंवर की तुलना में स्टील कंपनियों की सेहत में सुधार आया है और यह अच्छा संकेत है। उन्होंने बताया कि मौजूदा दौर कुछ बड़ी कंपनियों के लिए अच्छा मौका है। हालांकि छोटी कंपनियों को अभी भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
सच तो यह है कि स्टील की मांग बढ़ने और स्थिति में सुधार होने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। ऐसे में कुछ समय तक सभी कंपनियां विकास करने में सक्षम नहीं हो पएंगी। जानकारों का कहना है कि स्टील की कीमतों में पहले ही करीब 50 फीसदी की कमी की जा चुकी है।
ऐसे में निकट भविष्य में इसकी कीमतों में और कटौती की गुंजाइश नहीं है। वैसे मौजूदा कीमत पर बहुत कम कंपनियां ही मुनाफा कमा पा रही हैं। टाटा स्टील को जेएसडब्ल्यू और सेल की तुलना में तीसरी तिमाही में अच्छा मुनाफा हुआ है। वैसे, विश्लेषकों को टाटा स्टील के अंतरराष्ट्रीय इकाइयों के लाभ कमाने पर संदेह है, क्योंकि उस पर काफी दबाव बना हुआ है।