अगर आप अपने परिवार के लिए किराने का सामान खरीदते हैं तो आपने पिछले कुछ महीनों के दौरान बहुत सी वस्तुओं की कीमतों में तेज बढ़ोतरी महसूस की होगी। महंगाई से खरीद क्षमता घट रही है, जिससे बहुत सी गृहिणियां और वरिष्ठ नागरिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि वे अपनी मौजूदा जीवनशैली बनाए रख पाएंगे या नहीं।
महंगाई का व्यापक दायरा
मई में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई 6.3 फीसदी रही है। इसमें मुख्य रूप से खाद्य तेल की कीमतों और प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों (मांस, मछली आदि) की वजह से बढ़ोतरी हुई है। स्वास्थ्य जैसी सेवाओं समेत मुख्य महंगाई के बहुत से घटकों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से भी महंगाई में इजाफा हुआ है। ईंधन एवं बिजली (जिसमें केरोसिन भी शामिल है) के दाम भी बढ़े हैं। एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने कहा, ‘महंगाई का मौजूदा दौर काफी व्यापक है और केवल एक या दो श्रेणियों से प्रेरित नहीं है।’
अनुमान से ज्यादा बढ़ोतरी
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने महंगाई के मौजूदा दौर को अल्पकालिक बताया है। हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मौजूदा दौर अनुमान से ज्यादा सतत है। भले ही मई में महंगाई का ऊंचा आंकड़ा महामारी के कारण आपूर्ति में पैदा हुई रुकावट का नतीजा हो। लेकिन आर्थिक गतिविधियां तेजी से पटरी पर आने पर भी महंगाई जल्द नियंत्रण में नहीं आएगी। बरुआ ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि महंगाई के इस दौर में वापसी का घटक जुड़ा है, जो एक चिंता का विषय है।’
विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई आने का कारण मांग में बढ़ोतरी नहीं बल्कि आपूर्ति में कमी है। ये कमियां शायद अल्पावधि में दूर न हों।
उदाहरण के लिए खाद्य तेल को ही लें। देश में इसका स्थानीय उत्पादन और आयात दोनों होते हैं। जिंसों की कीमतों में तेजी के साथ ही वैश्विक बाजारों में खाद्य तेल की कीमतें भी बढ़ी हैं। स्थानीय स्तर पर भी बहुत से खाद्य तेलों की किल्लत है, जिसकी अल्पावधि में भरपाई नहीं होगी।
महामारी की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं की मांग भी बढ़ी है। नए अस्पताल एवं अन्य चिकित्सा सुविधाएं तैयार होने में समय लगेगा, इसलिए कुछ समय तक लागत ऊंची बनी रहेगी।
पश्चिमी दुनिया में सुधार की उम्मीद में वैश्विक जिंस बाजार में तेजी बनी हुई है। दुनिया भर में जो अतिरिक्त नकदी है, वह इस बाजार में आई है। इससे कीमतों में तेजी आई है। इसका विनिर्मित उत्पादों की कीमतों पर असर पड़ा है, जिससे सीपीआई आधारित महंगाई बढ़ी है।
वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की ऊंची कीमतों और भारत में खुदरा और औद्योगिक उपयोग के लिए बाजार आधारित कीमतों से पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े हैं। बरुआ ने कहा, ‘जब तक तेल की कीमतें ऊंची बनी रहेंगी, तब तक परिवहन महंगा बना रहेगा और इसका बहुत से उत्पादों की कीमतों पर असर होगा।’
वैश्विक बाजारों में तेल एवं जिंसों की ऊंची कीमतें कुछ समय बने रहने के आसार हैं। एचडीएफसी बैंक के पूर्वानुमान के मुताबिक सीपीआई आधारित महंगाई नरम पडऩे से पहले इस साल अगस्त तक 6.8 फीसदी पर पहुंच सकती है। बरुआ का अनुमान है कि सीपीआई आधारित महंगाई वित्त वर्ष 2022 में औसतन 6 फीसदी रहेगी।
उम्मीद की किरण
आम तौर पर ऊंची महंगाई ब्याज दरों में बढ़ोतरी से जुड़ी है। परिवारों को न केवल रोजमर्रा की चीजों पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है बल्कि उन्हें ज्यादा मासिक किस्त (ईएमआई) चुकाने की भी चिंता करनी पड़ती है। हालांकि इस बार उन्हें इस मोर्चे पर चिंता करने की जरूरत नहीं है। महंगाई बढऩे के बावजूद आरबीआई ब्याज दरों को नियंत्रित रखना चाहता है। इसे वृद्धि को सहारा देने और सरकार की उधारी लागत को कम से कम स्तर पर रखने की जरूरत है। इसलिए हाल-फिलहाल रीपो दर में बढ़ोतरी के आसार नहीं हैं। इस तरह लोगों को कुछ राहत मिल रही है।
आप अल्पावधि में क्या कर सकते हैं
परिवार मुश्किल हालात में हैं क्योंकि महंगाई का यह दौर बहुत से लोगों के लिए नौकरियां जाने और आमदनी में स्थिरता के बीच आया है। विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि परिवारों को यह नहीं मानना चाहिए कि महंगाई का यह दौर जल्द खत्म हो जाएगा। उन्हें ऊंची महंगाई के लंबे दौर के लिए तैयार रहना चाहिए। जिन परिवारों को बजट की दिक्कतें हैं, उन्हें इसे कम करने के बारे में विचार करना चाहिए। इसका मतलब है कि व्यक्ति को सस्ते विकल्प तलाशने चाहिए और उन श्रेणियों में अपनाना चाहिए, जिनमें सस्ते विकल्प उपलब्ध हैं।
महामारी की तीसरी लहर आने की आशंका है, इसलिए परिवारों को एहतियात के तौर पर बचत करनी चाहिए। बजट बनाएं और इस पर टिके रहें। माईवेल्थग्रोथ डॉट कॉम के सह-संस्थापक हर्षद चेतनवाला ने कहा, ‘हालांकि खान-पान में कटौती करना मुश्किल है, लेकिन जब तक महंगाई नीचे नहीं आती है या आपकी आमदनी नहीं सुधरती है, तब तक आपको गैर जरूरी उपभोक्ता सामान की खरीद टालनी चाहिए।’ छुट्टियां बिताने जैसे विलासिता खर्च स्थगित किए जाने चाहिए।
बढ़ती लागत से निपटने के तरीके के रूप में दूसरी नौकरी तलाशें। फ्रीफिनकल डॉट कॉम के संस्थापक एम पट्टाभिरामन ने कहा, ‘ऑनलाइन बहुत से रोजगार उपलब्ध हैं। इस तरीके से आप अल्पावधि में अधिक खर्च से निपट सकते हैं।’
आप लंबी अवधि में क्या कर सकते हैं
ऊंची महंगाई से निपटने के लिए लंबी अवधि (सात साल या अधिक) का पोर्टफोलियो बनाएं, जिनमें ज्यादा हिस्सा इक्विटी का हो। चेतनवाला ने कहा, ‘यह एक परिसंपत्ति वर्ग है, जो लंबी अवधि में आराम से महंगाई को मात दे सकता है।’ उनका सुझाव है कि व्यक्ति को विभिन्न लक्ष्यों के लिए अपनी निवेश अवधि के बारे में विचार करना चाहिए और तभी उपयुक्त परिसंपत्ति आवंटन पोर्टफोलियो बनाना चाहिए।
युवा लोगों जैसे 30 से 40 साल तक की आयु के लोगों को ऊंची महंगाई के इस प्रकरण से सबक सीखना चाहिए और इक्विटी में पर्याप्त निवेश करना चाहिए। पट्टाभिरामन ने कहा, ‘बहुत से युवा लोगों के पोर्टफोलियो में बड़ा हिस्सा निश्चित आय योजनाओं जैसे कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) का होता है। उन्होंने भले ही इक्विटी म्युचुअल फंडों में निवेश शुरू कर दिया होगा, लेकिन अब भी उनका इन योजनाओं में निवेश बहुत कम है। इसे दुरुस्त किया जाना चाहिए।’
इन गलतियों से बचें
ऐसे समय जब सावधि जमाएं महंगाई को मात नहीं दे पा रही हैं। तब वरिष्ठ नागरिकों को उन उत्पादों में निवेश के जरिये ऊंचे प्रतिफल के पीछे नहीं भागना चाहिए, जिसके बारे में वे कुछ नहीं जानते हैं। बहुत से वरिष्ठ नागरिक उस पैसे का इक्विटी में निवेश कर देते हैं, जिसकी उन्हें अपने नियमित खर्च पूरे करने के लिए जरूरत होती है। कुछ उन डेट फंड श्रेणियों में निवेश कर रहे हैं, जिनके जोखिमों को वे पूरी तरह नहीं समझते हैं। इससे बचा जाना चाहिए क्योंकि वे अपनी पूंजी गंवा सकते हैं।
