जीवन बीमा कंपनियां बाजार में उठापटक, घटती ब्याज दर और नॉन-पार्टिसिपेटिंग बीमा पॉलिसी में कीमतों की होड़ के बीच अपने बही खातों में जोखिम कम करने के लिए पार या पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी का रुख कर रही हैं। कई बीमा कंपनियों ने अपने पोर्टफोलियो में बदलाव किया है और अरसे तक यूलिप एवं कमाई तथा मार्जिन बढ़ाने के लिए नॉन-पार पॉलिसियों पर निर्भर रहने के बाद पार-पॉलिसियां बढ़ाई हैं।
आमदनी में गिरावट, वैश्विक उथल-पुथल और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा लगातार की जा रही बिकवाली से शेयर बाजार पिछले साल सितंबर के अपने उच्चतम स्तर से करीब 7 फीसदी लुढ़क गए हैं। इससे घबराई बीमा कंपनियां अपने पोर्टफोलियो में बदलाव कर रही हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने रीपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती की है, जिससे 10 साल के सरकारी बॉन्डों पर यील्ड जनवरी के 6.7 फीसदी के उच्च स्तर से घटकर करीब 6.4 फीसदी रह गया है। इससे सरकारी बॉन्डों में निवेश पर बीमा कंपनियों को मिलने वाला रिटर्न कम हो गया है।
पार या पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी वे बीमा पॉलिसी होती हैं, जिनमें पॉलिसी लेने वालों को गारंटीशुदा लाभ मिलता है। साथ ही उन्हें बीमा कंपनी के अधिशेष का एक अंश भी बोनस या लाभांश के तौर पर दिया जाता है। यह अधिशेष रकम पार्टिसिपेट यानी भागीदारी करने वाले उन फंडों के प्रदर्शन से आती है, जो पार पॉलिसीधारकों के प्रीमियम इकट्ठे करते हैं तथा विभिन्न परिसंपत्तियों में लगाते हैं। इनमें लाभ की तो गारंटी दी जाती है मगर बोनस या लाभांश की गारंटी नहीं होती और ये निवेश पर मिलने वाले रिटर्न, खर्च एवं दावों पर निर्भर करता है।
निजी क्षेत्र की एक जीवन बीमा कंपनी के मुख्य कार्य अधिकारी ने कहा, ‘बीमा कंपनियां अपने बहीखातों पर जोखिम घटाने के वास्ते पार पॉलिसियों का रुख कर रही हैं क्योंकि कम ब्याज दर के माहौल में नॉन पार पॉलिसी पर ऊंचे रिटर्न की गारंटी देना मुश्किल हो जाता है। पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी में प्रदर्शन के हिसाब से रिटर्न मिलता है, जिससे बीमा कंपनियां जोखिम को बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं।’ उन्होंने कहा कि बाजार के प्रदर्शन से यूलिप को फायदा तो होता है, लेकिन खर्चों की सीमा तय हो जाने के कारण बीमा कंपनियों की मुनाफा कमाने की क्षमता भी कम हो जाती है। इसीलिए आम तौर पर पार पॉलिसियों को प्राथमिकता दी जाती है।
आदित्य बिड़ला के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी कमलेश राव ने कहा, ‘हमने पार पॉलिसियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा दी है। वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में हिस्सेदारी करीब 6 फीसदी थी मगर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में बढ़कर 20 फीसदी हो गई है। पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी लंबे अरसे के लिए ली जाती है और इसमें काफी मुनाफा हो सकता है। शेयर में निवेश फायदेमंद हो सकता है। अप्रैल में एक पॉलिसी लाई गई थी, जिसमें 50 फीसदी निवेश शेयरों में था। यूलिप की हिस्सेदारी और शेयर बाजार के प्रदर्शन को देखते हुए पार पॉलिसी यूलिप से बेहतर हैं।’
उद्योग की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार एचडीएफसी लाइफ ने वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में कहा कि नए प्रस्तावों और व्यापक आर्थिक अनिश्चितता के कारण पार्टिसिपेटिंग बीमा पॉलिसी की बिक्री बढ़ी है। यहां तक कि सरकारी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने भी संकेत दिया है कि वह वित्त वर्ष 2026 में दो पार्टिसिपेटरी बीमा पॉलिसी लाएगी। कंपनी 2022 में स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होने के बाद से अच्छे मार्जिन के लिए नॉन पार बीमा पॉलिसी ला चुकी है।