भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सावधि जमा (टर्म डिपॉजिट) की परिपक्वता अवधि पूरी होने के बाद भी बैंकों में पड़ी रकम पर मिलने वाले ब्याज से संबंधित नियमों में संशोधन किए हैं। इन नियमों में संशोधनों के बाद जमाकर्ताओं को अधिक सतर्क रहना होगा।
क्या हैं नए नियम?
आरबीआई ने 2 जुलाई को ‘रीव्यू ऑफ इंस्ट्रक्शंस ऑन इंटरेस्ट ओवरड्यू डोमेस्टिक डिपॉजिट्स’ नाम से जारी अधिसूचना में कहा है कि परिपक्वता अवधि पूरी होने के बाद भी टर्म डिपॉजिट की रकम का भुगतान नहीं हो पाता है तो इस पर बचत खाते पर मिलने वाली ब्याज दर के बराबर या फिर टर्म डिपॉजिट कराते वक्त तय की हुई दर में से जो कम हो, उसके बराबर प्रतिफल मिलेगा। पुराने नियमों के अनुसार बैंकों में परिपक्वता अवधि पूरी होने के बाद भी पड़ी रकम पर बचत जमा पर मिलने वाले ब्याज के बराबर ही राशि के भुगतान का प्रावधान था। आरबीआई की अधिसूचना के अनुसार नए नियम सभी अधिसूचित बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक), लघु वित्त बैंक, स्थानीय क्षेत्रीय बैंक और सभी सहकारी बैंकों (शहरी, जिला एवं एवं राज्य स्तरीय) पर लागू होंगे।
क्यों बने नए नियम
वित्त वर्ष 2018 में बैंकों में 14,307 करोड़ रुपये रकम जमा थी जिनके लिए ग्राहकों ने दावे नहीं किए थे। वित्त वर्ष 2019 के अंत में यह रकम बढ़कर 18,380 करोड़ रुपये हो गई। डीएसके लीगल में एसोसिएट पार्टनर अविनाश खरड़ कहते हैं, ‘बैंकों में ऐसी रकम की भरमार लगने के बाद आरबीआई को नियमों में संशोधन करना पड़ा है।’ बैंकों में ऐसी रकम का अंबार लगाना नई बात नहीं है। बैंकबाजार में मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) आदिल शेट्टी कहते हैं, ‘ग्राहकों को यह बात बैंकों को बतानी चाहिए कि परिपक्वता के बाद वे रकम का क्या करेंगे। उदाहरण के लिए एफडी के मामले में ग्राहक को निर्देशों के साथ हस्ताक्षर (काउंटर-साइन) की हुई एफडी रसीद सौंपनी होगी। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो एफडी परिपक्वता के बाद भी बैंकों में ही जमा रह जाती है और तय नियमों के अनुसार इस पर ब्याज मिलता है।’
कम ब्याज
भुगतान नहीं हुई रकम पर ब्याज तय करने के लिए बैंकों के पास अब दो विकल्प मौजूद हैं। शेट्टी कहते हैं, ‘उन्हें बचत बैंक ब्याज दर और टर्म डिपॉजिट शुरू करने पर तय दर में किसी एक का चयन करना होगा। कुछ बैंकों में लघु अवधि की जमाओं (अमूमन 90 दिन से कम अवधि की) पर ब्याज बचत बैंक खाते के मुकाबले कम मिलता है। आरबीआई के नए निर्देश के बाद ऐसी जमाओं पर बचत बैंक खातों पर मिलने वाले ब्याज से भी कम प्रतिफल मिलेगा।
नॉमिनी को भी जानकारी
अगर कोई ग्राहक किसी खाते में 10 वर्षों या इससे अधिक समय तक लेनदेन नहीं करता है तो उस खाते में जमा रकम ‘अनक्लेम्ड डिपॉजिट’ या बिना दावे वाली रकम हो जाती है। चालू एवं बचत खातों और टर्म डिपॉजिट की रकम सभी इसका हिस्सा हो सकते हैं। शेट्टी कहते हैं, ‘बिना दावे की जमा राशि जमाकर्ता शिक्षा एवं जागरूकता कोष में डाल दी जाती है। वहां से रकम सरकारी प्रतिभूतियों आदि में निवेश की जाती है।’