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गिल्ट फंडों में कितना सुरक्षित मूलधन

Last Updated- December 09, 2022 | 9:41 AM IST

गिल्ट फंडों में निवेश करना कितना सुरक्षित है? क्या मूलधन को सुरक्षित मान लेना उचित है? ब्याज दरों के घटने की स्थिति में इस वर्ग से कितनी आय की उम्मीद की जा सकती है?

 के श्रीनिवास


गिल्ट फंड केवल सरकारी बांडों में निवेश करते हैं, ऐसे में इनके निवेश में किसी प्रकार के डिफॉल्ट होने की गुंजाइश खत्म हो जाती है। हालांकि ब्याज दरों के बढ़ने की स्थिति में इनकी वैल्यू कम हो सकती है।

साथ ही ब्याज दरों में कटौती किए जाने की स्थिति में इनमें बढ़त भी देखी जा सकती है। आगे, तुम्हारा प्रिंसिपल गिल्ट फंडों में नुकसान से नहीं बचा सकता है। इस वर्ग में किसी संभावित आय के  आसार नहीं होते हैं।

हाल ही में रेलिगेयर म्युचल फंड ने लोटस म्युचल फंड का अधिग्रहण किया है। सभी यूनिट धारकों को एक पर्याय दिया गया है कि रेलिगेयर के पूर्ण नियंत्रण से पहले अपने सभी यूनिट का प्रतिदान कर लें।

इस अधिग्रहण का निवेशकों पर क्या असर पड़ सकता है? क्या इस फंड में अब भी निवेश जारी रखना समझदारी है?

अप्पन्ना


हाल ही में लोटस एसेट मैनेजमेंट कंपनी का मालिकाना हक दूसरे के पास चला गया है और इसका नाम परिवर्तित करते हुए रेलिगेयर एमसी रखा गया है। इसका मतलब नये प्रबंधन के पास इसके लिए पर्याप्त फंड उपलब्ध है।

दोनों मालिक में कोई अधिक भिन्नता नहीं है। दोनों भी परिसंपत्ति प्रबंधन व्यापार में एक समान बिना किसी तजुर्बे के नए खिलाड़ी हैं। लोटस में परिवर्तित हुए नए मालिक के प्रति हम काफी तटस्थ हैं।

निवेशकों को पर्याप्त फंड प्रदर्शन के आधार पर निर्णय लेना चाहिए और कर संबंधित निवेश के लिए कहीं अन्य जगह पर पैसे लगाने चाहिए।

अगर मैं टैक्स लाइबिलिटी को घटाने के लिए डिविडेंड स्ट्रिपिंग को चुनता हूं तो मुझे कौन से कर चुकाने होंगे?

भास्कर पी


डिविडेंड स्ट्रिपिंग की सलाह किसी म्युचुअल फंड द्वारा घोषित लाभांश पर किसी व्यक्ति की टैक्स लाइबिलिटी कम करने के लिए दी जाती है। अगर आपको म्युचुअल फंड से जल्द ही लाभांश जारी किए जाने उम्मीद हो तो रिकार्ड डेट से पहले उसकी यूनिटें खरीदें।

इस स्थिति में लाभांश फंड की वर्तमान संग्रहित राशि पर दिया जाएगा और इसका एनएवी कम हो जाएगा। इसके बाद नुकसान दिखाने के लिए निवेशक ये यूनिट रिकार्ड डेट के बाद बेच सकता है। इससे एनएवी में हुआ नुकसान कैपिटल लॉस में बदल जाएगा। इक्विटी फंड में मिले लाभांश पर कोई कर नहीं लगता।

इसलिए निवेशक को नुकसान होने के कारण में कोई कर नहीं देना होगा जबकि सच्चाई यह है कि एनएवी और लाभांश दोनों को जोड़ दिया जाए तो निवेशक को लाभ हुआ रहता है। हालांकि डिविडेंड स्ट्रिपिंग का यह विकल्प ज्यादा दिन नहीं रहने वाला।

संशोधिक कानून के तहत इसका लाभ उसी को दिया जाएगा जब निवेशक ने रिकार्ड से तीन माह पहले यूनिट खरीदीं हों और इसे रिकार्ड डेट के नौं माह बाद ही ट्रांसफर या फिर बेच दी हो।

इस दशा में ट्रांजेक् शन से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। यानी इसके चलते डिविडेंड स्ट्रिपिंग के माध्यम से कर से नहीं बचा जा सकेगा।

इक्विटी म्युचुअल फंड से होने वाले कैपिटल गेन पर कर नहीं लगता। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर 16.99 फीसदी कर लगता है। डेट पर यह कर (बगैर इंडेक्सन)11.33 फीसदी होता है या इंडेक्सन के साथ 22.66 फीसदी, जबकि शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर व्यक्ति के टैक्स स्लैब के आधार पर कर लगता है।

मैं इस समय अमेरिका में हूं। मैं जानना चाहता हूं कि भारत में म्युचुअल फंड में निवेश की प्रक्रिया क्या है? कृपया मुझे बताएं कि क्या वहां पर निवेश के कोई और विकल्प हैं क्या मुझे इसके जरिए होने वाली आय पर कर देना होगा?

वेंकट

अमेरिकी नागरिक किसी ऐसी जगह निवेश नहीं कर सकते जो अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग में पंजीबध्द न हो। इसलिए आप भारतीय म्युचुअल फंड में निवेश नहीं कर सकते। यहां पर निवेश करने के लिए आप कोई अपना भारतीय पता दे सकते हैं।

भारत में निवेश करने के लिए दूसरे जरिए हैं ऑफशोर फंड जिन्हें आप अमेरिका में ही खरीद सकते हैं। इसके अतिरिक्त रियल एस्टेट, गोल्ड पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सेवा और डायरेक्ट इक्विटिज अन्य निवेश विकल्प हैं।

म्युचुअल फंड में लगने वाले करों की बात करें तो आपको इक्विटी स्कीम पर 16.99 फीसदी शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होता है, डेट स्कीम में यह कर 33.99 फीसदी होता है। इक्विटी में होने वाले लांग टर्म कैपिटल गेन पर कोई कर नहीं लगता।

डेट पर यह कर (बगैर इंडेक्सन)11.33 फीसदी होता है या इंडेक्सन के साथ 22.66 फीसदी, जबकि शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर व्यक्ति के टैक्स स्लेब के आधार पर कर लगता है। वास्तव में निवेशक के पास लाभांश करमुक्त आते हैं। लाभांश वितरण कर का भुगतान एएमसी स्वयं करती है।

एएमसी इसे उस राशि में से काट लेती जो वास्तव में निवेशक के पास जानी है। यह टैक्स डिडक्शन डेट में होने वाले लांग टर्म कैपिटल गेन पर 22.66 फीसदी और इक्विटी में कोई कर नहीं लगता। डेट में होने वाले शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन में यह कर 33.99 फीसदी और इक्विटी में 16.99 फीसदी होता है।

बांड फंड मेट्रिक्स के बारे में आप हमेशा कहते हैं कि गिल्ट फंडों पर रिजर्व बैंक द्वारा किए जाने वाले ब्याज दरों में परिवर्तन का असर पड़ता है।

यहां आपका मंतव्य सीआरआर में होने वाले परिवर्तन से है या फिर रेपा या रेपो रेट से। किसी डेट फंड में एसआईपी के जरिए लंबी अवधि में धन एकत्र करने के लिए आपको क्या करना चाहिए?


 ईशान

सीधे समझें तो बांड फंड मैट्रिक्स क्रेडिट रिस्क और बांड फंड के जरिए उत्पन्न होने वाली ब्याज दर की जोखिम  की एक झलक देते हैं। गिल्ट फंड ब्याज दर के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। सीआरआर और रेपो रेट में होने वाले किसी भी परिवर्तन का असर उसकी कीमतों पर पड़ता है।

इस तरह से ब्याज दरें मांग और बांड प्राइस पर निर्भर करते हैं। लंबी अवधि में पूंजी एकत्र करने के लिए फिक्स्ड इंकम निवेश एक अच्छा विकल्प नहीं है।

इसके लिए इक्विटी ही एक उपयुक्त जरिया है चाहे इसमें कितनी ही अस्थिरता क्यों न हो। आपको इक्विटी में एसआईपी के जरिए निवेश की सलाह दी जाती है।

फिक्स्ड इंकम जोखिम से बचना चाह रहे निवेशक के लिए एकमुश्त निवेश करने के लिए उपयुक्त इंस्ट्रूमेंट्स है। यहां फंडों का चयन आपके निवेश पर निर्भर है। किसी भी लांग टर्म के पोर्टफोलियो में अनुशासित पुनर्संतुलन के लिए फिक्स्ड इंकम एलोकेशन एक अहम भूमिका निभाते हैं।

क्योंकि आप लंबी अवधि में निवेश के लिए बांड फंड तलाश रहे हैं तो हम आपको बिरल सन लाइफ डाइनामिक्स बांड फंड कोटक फ्लेक्जी डेट फंड, फोर्टिस फ्लेक्जी डेट या फिर आईडीएफसी डायनामिक बांड फंड जैसे अच्छी रेटिंग वाले फंडों में से किसी एक को चुनने की सलाह देते हैं।

वैल्यू रिसर्च

First Published - December 28, 2008 | 9:04 PM IST

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