भारत के आवास ऋण क्षेत्र में क्षेत्रीय असमानता बड़ी चुनौती है। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में भारत के दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी राज्यों की आवास ऋण में हिस्सेदारी क्रमशः 35.02 प्रतिशत, 30.14 प्रतिशत और 28.73 प्रतिशत है। वहीं पूर्वी राज्यों (पूर्वोत्तर राज्यों सहित) की हिस्सेदारी महज 6.10 प्रतिशत है।
भारत में हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों के नियमन व लाइसेंसिंग का काम करने वाले नियामक निकाय नैशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी) ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट ‘ट्रेंड्स ऐंड प्रोग्रेस ऑफ हाउसिंग इन इंडिया 2024’ में कहा है कि वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में पूर्वोत्तर राज्यों का कुल आईएचएल (व्यक्तिगत आवास ऋण) 0.68 प्रतिशत है।
आईएचएल बकाये के हिसाब से व्यक्तिगत आवास ऋण बाजार में 14 राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और पंजाब की हिस्सेदारी करीब 91 प्रतिशत है।
हालांकि रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि हाउसिंग सेक्टर का भविष्य बहुत उजला है। इसे तेज शहरीकरण भौगोलिक विस्थापन, डिजिटलीकरण, सततता और बुनियादी ढांचे के विकास का सहारा मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि आवास की मांग लगातार बढ़ रही है और इस सेक्टर में उल्लेखनीय बदलाव होना है। इसे वित्तीय मॉडल उन्नत होने, नियामक सुधार और बढ़ी पारदर्शिता का सहारा मिलेगा और आगे इसकी वृद्धि और तेज होगी।
रिपोर्ट में एक और प्रमुख चुनौती का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि हरित इमारत के प्रमाणन के सीमित संस्थान हैं और विभिन्न एजेंसियों के रेटिंग प्रमाणपत्र में कोई तालमेल नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हरित सामग्री की अधिक लागत चुनौतीपूर्ण है।’
30 सितंबर, 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक व्यक्तिगत आवास ऋण का बकाया 33.53 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें इसके पहले के साल की समान अवधि की तुलना में 14 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इसमें ईडब्ल्यूएस और एलआईजी (कम आय वर्ग) की हिस्सेदारी 39 प्रतिशत, एमआईजी की हिस्सेदारी 44 प्रतिशत और एचआईजी की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत है।