नए नेतृत्व के ऐलान के साथ ही पी.जे. नायर के उत्तराधिकारी के बारे में चल रही चर्चाओं पर भी विराम लग गया।
यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि यूटीआई बैंक को ऐक्सिस बैंक के चोले में ढालने में सबसे बड़ा योगदान नायर का ही रहा था। नायर ने ही ऐक्सिस बैंक को मुल्क के टॉप तीन बैंकों में शामिल करवाया।
हालांकि, आज की तारीख में तस्वीर उतनी अच्छी नहीं दिखाई दे रही है। इस वजह से तो बैंक के शेयरों की हालत भी अच्छी नहीं है। पिछले पांच सालों में कंपनी के मुनाफे में तकरीबन 50 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया था। यह अब घटकर 20 फीसदी के दायरे में सिमट गया है। दरअसल, इसके पीछे यह धारणा है कि परिसंपत्तियों की कीमतों में गिरावट दर्ज हो सकती है।
यह बात उसके पिछले वित्त वर्ष के आंकड़ों में भी उभर कर आई। हालांकि, बैंक की गैर निष्पादित संपत्तियों के आंकड़ों में कई इजाफा नहीं हुआ, लेकिन पुनर्संगठित कर्जों में मात्रा में अच्छा-खासा इजाफा दर्ज किया गया है।
हालांकि, प्रबंधन पोर्टफोलियो की गुणवत्ता को बरकरार और मुनाफे कमाने की अपनी ताकत को बरकरार रखने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा है। लेकिन जब तक आर्थिक हालत नहीं सुधरती, ये चिंताएं बरकरार ही रहेंगी।
कर्ज की सुस्त रफ्तार
पिछली तिमाही में तीसरी तिमाही की तुलना में कर्ज देने में 36.7 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया। यह उस 50 फीसदी की औसत विकास दर से कम था, जो पिछले पांच सालों में दर्ज की गई थी। वजह रही, आर्थिक तरक्की की सुस्त रफ्तार।
साथ ही, बैंक भी काफी फूंक-फूंक कर लोन दे रहे हैं। रिटेल सेगमेंट को इसी वजह से पिछले साल की तुलना में सिर्फ 18 फीसदी ज्यादा कर्ज मिले। कुल कर्ज में अब तक 20 फीसदी हिस्सा रिटेल सेगमेंट को ही रहता आया है।