विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भी भारतीय शेयर बाजार से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि आगामी महीनों में उनकी बिक्री में तेजी आ सकती है।
मौजूदा साल में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 10,772 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। मौजूदा महीने के लिए यह आंकड़ा 2,766 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। शेयर बाजार से पैसा बाहर निकाले जाने के प्रमुख कारकों में से एक है भारतीय मुद्रा की कीमत में गिरावट आना।
रुपया इस साल की शुरुआत से अमेरिकी डॉलर की तुलना में 6.38 फीसदी तक गिरा है। वास्तव में विदेशी संस्थागत निवेशक घरेलू मुद्रा के गिरावट के दुष्चक्र में फंस गए हैं जिससे इनका पोर्टफोलियो प्रभावित हो रहा है और वे भारतीय मुद्रा में और अधिक कमजोरी आने की आशंका को ध्यान में रख कर अपनी संपत्तियां बेचने को बाध्य हो रहे हैं।
विदेशी कोष से जुड़ी अन्य चिंताओं में देश की खराब होती वित्तीय स्थिति और आम चुनाव से जुड़ी स्वाभाविक अनिश्चितताएं हैं। ‘एशिया स्ट्रेटेजी’ पर सिटी गु्रप की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इसकी अधिक संभावना है कि दूसरी तिमाही में अब हम एशियाई फंडों द्वारा अतिरिक्त पूंजी प्रवाह देखेंगे।’
कई फंडों को अपने डेट पोर्टफोलियो में अधिक मार्क-टु मार्केट नुकसान का सामना करना पड़ रहा है और ऐसे नुकसान को देखते हुए नकदी जुटाए जाने की जरूरत है। सिटी ग्रुप का अनुमान है कि पिछले साल सितंबर और अक्टूबर के दौरान एशियाई फंडों द्वारा की गई बिक्री उनकी परिसंपत्तियों की 6.3 फीसदी थी और पिछले महज तीन सप्ताहों में यह प्रवाह उनकी कुल परिसंपत्तियों के 2.9 फीसदी पर पहुंच गया था।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह प्रवाह अक्टूबर के स्तर तक पहुंच जाने का अनुमान है। कैपीचुलेशन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केआरसी शेयर्स ऐंड सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक देवेन चोकसी ने कहा, ‘अपने पोर्टफोलियो में मार्क टु मार्केट घाटे के लिए अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशी फंड नकदी जुटाने की सख्त जरूरत महसूस कर रहे हैं। इसी वजह से उन पर बिक्री का दबाव बढ़ रहा है।’
एक प्रमुख एफआईआई के प्रतिनिधि ने कहा, ‘राजकोषीय घाटा ब्याज दरों पर दबाव डालेगा और रुपये की कीमत में गिरावट से तेल की कीमत में किसी भी तरह की बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था पर दबाव और अधिक बढ़ा देगी।’
इन सब के अलावा एक प्रमुख चिंता यह है कि भारतीय बाजार में विदेशी संस्थागतों ने बिक्री की रफ्तार क्यों बढ़ा दी है। रुपये की कीमत में गिरावट के साथ बढ़ती जिंस कीमतें भी एक प्रमुख चिंता बनी हुई हैं।
रुपये की विनिमय दरों में किसी भी तरह की गिरावट शेयर बाजारों में अराजकता ला सकती है। एक तकनीकी विशेषज्ञ विजय भंवानी कहते हैं कि उस स्थिति में 2250 का स्तर आसानी से टूट जाएगा और एक नई सर्वाधिक गिरावट पर पहुंच जाएगा।