बीएस बातचीत
बाजार कारोबारियों ने सरकार द्वारा वृद्घि-समर्थक बजट पेश किए जाने के बाद राहत की सांस ली है, क्योंकि बजट का पूंजी बाजारों में निवेश के लिए किसी तरह का ज्यादा कर प्रभाव नहीं पड़ा है। करीब 100 अरब डॉलर की प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियों वाले ऐशमोर गु्रप के शोध प्रमुख जॉन डेन ने पुनीत वाधवा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि यदि वित्त मंत्री और उनकी टीम द्वारा मौजूदा बजट पेशकशें नहीं की होतीं तो बाजार पर इसका नकारात्मक असर देखा जा सकता था। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
आप बजट प्रस्तावों के बाद निवेश स्थान के तौर पर भारत को किस नजरिये से देख रहे हैं?
बजट उम्मीद से ज्यादा राहतकारी रहा क्योंकि इसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर खर्च को बढ़ाने के साथ साथ निजीकरण के लिए प्रयास किए गए। यदि सरकार अपने सुधार और इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधित वादों पर सफल रहती है तो भारत ऊंची वृद्घि दर दर्ज कर सकता है और इससे सार्वजनिक वित्त को मजबूत बनाने में मदद मिल सकती है। दूसरी तरफ, यदि सरकार अर्थव्यवस्था की दक्षता बढ़ाए बिना सिर्फ खर्च करती है तो यह बजट विफल साबित हो सकता है और अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
हालांकि अल्पावधि में निवेशक उत्साहित होंगे क्योंकि बड़े खर्च के वादों से अल्पावधि में जीडीपी को बढ़ावा मिलेगा।
वैश्विक केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीति कब तक आसान बनी रहेगी?
आसान पूंजी कहीं नहीं जा रही है। विकसित देशों में केंद्रीय बैंकों ने स्वयं को कमजोर स्थिति में पेश किया है। जहां खासकर परिसंपत्ति कीमतें बढ़ाने पर जोर दिया गया है, वहीं सरकारों ने व्यापक अर्थव्यवस्था में ढांचागत समस्याएं दूर करने के संदर्भ में अनदेखी की है, जैसे बढ़ते कर्ज, घटती उत्पादकता और ऋण के खतरनाक स्तर। केंद्रीय बैंकों ने वित्तीय बाजारों में बुलबुले फूंके हैं। ये बुलबुले इतने बड़े हैं कि मौजूदा हालात में इन्हें दूर कर पाना उनकी अर्थव्यवस्थाओं के लिए नुकसानदायक साबित होगा। कोविड-19 टीके की पेशकश की वजह से 2020 के बाद वर्ष 2021 में, सुधार आएगा। यह बाजारों में तेजी और मजबूत वैश्विक वृद्घि से जुड़ा होगा। हालांकि सभी अंतर्निहित ढांचागत आर्थिक समस्याएं बरकरार हैं और खासकर असमानता और कर्ज के संदर्भ में स्थिति बदतर हुई है। जैसे जैसे आबादी बढ़ेगी, निजी क्षेत्र के खर्च पर सरकारी खर्च भी बढ़ेगा। इस संदर्भ में, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और जापान में केंद्रीय बैंकों से ज्यादा सख्ती की आशंका नहीं है।
उभरते बाजारों, खासकर भारत के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है?
सरकारी ऋण में बड़ी वृद्घि से सरकारी बॉन्ड बाजारों में प्रतिफल पर दबाव पड़ेगा। इसलिए बड़ी क्वांटीटेटिव-ईज्ड (क्यूई) अर्थव्यवस्थाओं में प्रतिफल की लहर अब समाप्त हो गई है। पूंजी इन बाजारों से दूर होगी और धीरे धीरे वह उन अर्थव्यवस्था पर केंद्रित होगी जहां बॉन्ड बाजारों में प्रतिफल बरकरार है और शेयर बाजारों में पूंजी वृद्घि के अवसर हैं। ईएम को इसका लाभ मिलेगा। सबसे बड़े लाभार्थी वे ईएम देश हैं जो मुख्य ईएम बॉन्ड और शेयर बाजार सूचकांकों का हिस्सा रहे हैं, क्योंकि दुनिया के 99 प्रतिशत निवेशक कथित ‘इंडेक्स ह्यजर्स’ हैं। भारत मुख्य ईएम-निर्धारित आय सूचकांकों में शामिल नहीं है, इसलिए वह सिर्फ निर्धारित आय में पूंजी का एक छोटा हिस्सा आकर्षित करता है। शेयरों के संदर्भ में, भारत अपने अन्य सूचकांक सदस्यों के साथ साथ अपनी उचित भागीदारी हासिल करेगा, हालांकि भारतीय इक्विटी का ऊंचा मूल्यांकन शायद यह सुनिश्चित करेगा कि कुछ निवेशक ईएम में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले भारत पर अंडरवेट रुख अपना सकते हैं।
भारत में आपके ओवरवेट और अंडरवेट सेक्टर कौन से हैं?
क्षेत्रवार, हम वित्त को पसंद कर रहे हैं, जो अच्छी स्थिति में हैं और इसे मजबूत आर्थिक गतिविधि की वजह से कम लागत का लाभ मिलेगा और साथ ही ऋण रिकवरी में सुधार तथा तेज ऋण वृद्घि की भी उम्मीद है। हम निर्माण सेवा क्षेत्र को भी पसंद कर रहे हैं जिसे इन्फ्रास्ट्रक्चर खर्च से मजबूती मिल रही है। घरेलू डिस्क्रेशनरी मांग में सुधार आएगा जिससे वाहन, लीजर, एंटरटेनमेंट को मदद मिलेगी।
भारतीय बाजारों के लिए मुख्य जोखिम क्या हैं?
काफी उम्मीदें हैं और ऐतिहासिक तौर पर भारत प्रशंसनीय रहा है। इसलिए यदि वित्त मंत्री और उनकी टीम मौजूदा प्रस्तावों की पेशकश नहीं करतीं तो बाजार पर नकारात्मक असर पड़ सकता था। भारत में वित्तीय स्थिति काफी हद तक ठहराव से जुड़ी रही है, जैसा कि पिछले कांग्रेस प्रशासन में देखा गया। दूसरा जोखिम है मुद्रास्फीति- ऊर्जा, आयात शुल्क आपूर्ति संबंधित समस्याएं आदि, जो ऊंची कीमतों का संकेत दे रही हैं। मुझे इस कैलेंडर वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही में दरें बढऩे की उम्मीद है। इसके अलावा विदेशी प्रवाह भी बाजार प्रदर्शन का बड़ा घटक है। दुनिया में कहीं भी जोखिम अल्पावधि दिशा को प्रभावित करेंगे। हमारा मानना है कि टीके, बेहतर वृद्घि और अमेरिका में नए राष्ट्रपति की नीतियों की वजह से 2021 में वैश्विक धारणा में सुधार आएगाा।