भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दरों में की गई कटौती से ऋण फंडों का प्रचलन एक बार फिर जोर पकड़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आगे चल कर दीर्घावधि के ऋण फंडों का प्रतिफल यादा आकर्षक हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 25 आधार अंकों की कमी कर इसे 4.75 प्रतिशत और और रिवर्स रेपो रेट घटा कर 3.25 प्रतिशत कर दिया है।
रेपो वह दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को उधार देता है और रिवर्स रेपो वह दर है जिस पर बैंक अपने पैसे केंद्रीय बैंक के पास रखते हैं। नई नीति की सरकारी बॉन्डों में सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी गई है। हालांकि, फंड प्रबंधकों ने बताया कि लिक्विड फंडों का परिदृश्य धुंधला बना हुआ है क्योंकि प्रणाली में अतिरिक्त नकदी आ जाने से अल्पावधि के मुद्रा बाजार में दरें कम हुई हैं।
एक फंड प्रबंधक ने कहा कि लिक्विड फंड मुद्रा बाजार की दरों का अनुसरण करेंगे। तीन महीने के लिक्विड फंड का प्रतिफल अनुमानत: चार से पांच प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान है और छह महीने वाले लिक्विड फंडों की दरें घट कर 5 प्रतिशत पर आ सकती हैं।
वैल्यू रिसर्च के मुताबिक काफी कम अवधि वाले ऋण फंडों का प्रतिफल घट कर 1.42 प्रतिशत हो गया है। वर्तमान में लिक्विड फंड सालाना 8.40 फीसदी का प्रतिफल अर्जित कर रहे हैं। आईएनजी इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट के मुख्य निवेश अधिकारी अरविंद बंसल ने कहा कि अल्पावधि के फंडों की धारणाओं में यादा सुधार नहीं हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘अल्पावधि की दरें पहले ही महत्वपूर्ण रूप से घट गई हैं और स्प्रेड काफी अधिक हैं। दीर्घावधि के फंडों के लिए अभी भी कुछ मौके हैं और इनके लाभ आगे चल कर घट सकते हैं।’ दीर्घावधि के गिल्ट और बॉन्ड फंडों को इन कटौतियों से सबसे अधिक लाभ हो सकता है। मध्यम और दीर्घावधि के गिल्ट फंड सालाना 16.18 प्रतिशत का प्रतिफल दे रहे हैं।
इस श्रेणी का सबसे बेहतर फंड 40.59 फीसदी का प्रतिफल अर्जित कर रहा है। सुंदरम बीएनपी पारिबा म्युचुअल फंड के फंड प्रबंधक के रामकुमार ने कहा, ‘दरों में की गई कटौती बाजार के लिए सकारात्मक है। लाभ का ग्राफ नीचे की तरफ झुका है और ये गिल्ट और बॉन्ड दोनों फंडों के लिए अच्छा है।’
वित्तीय योजनाकारों का कहना है कि दीर्घावधि के फ्लोटिंग रेट फंडों में निवेश करना बेहतर है क्योंकि इनमें यादा अस्थिरता नहीं है। वर्तमान में फ्लोटिंग रेट फंड सालाना 8.76 प्रतिशत के प्रतिफल की पेशकश कर रहे हैं।
