रिजर्व बैंक के 25 वें गवर्नर शक्तिकांत दास का छह वर्ष का कार्यकाल मंगलवार को समाप्त हो रहा है। उन्होंने कई मौकों पर देश के वित्तीय तंत्र को मुश्किलों से बचाया। अटकलें थीं कि उन्हें एक और कार्यकाल मिल सकता है लेकिन सोमवार को सरकार ने संजय मल्होत्रा को नया आरबीआई गवर्नर घोषित किया। फिलहाल राजस्व सचिव का पद संभाल रहे मल्होत्रा 11 दिसंबर से पद संभालेंगे।
ऊर्जित पटेल के व्यक्तिगत कारणों से पद छोड़ने के बाद दास 12 दिसंबर 2018 को गवर्नर बने थे। दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने वाले दास गवर्नर बनने से पहले राजस्व और आर्थिक मामलों के विभाग में सचिव थे। गवर्नर के रूप में उन्होंने कोविड-19 महामारी का सामना भी किया जो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चुनौती थी।
उनके कार्यकाल में यूक्रेन-रूस और इजरायल-हमास की लड़ाई ने भी देश की वित्तीय स्थिरता को चुनौती पेश की। हालांकि दास देश को इन तमाम संकटों से उबारने में कामयाब रहे। कोविड के दौरान उनके नेतृत्व में रिजर्व बैंक ने नकदी और परिसंपत्ति गुणवत्ता की समस्याओं से निपटने के लिए पारंपरिक और अपारंपरिक दोनों तरह के कदम उठाए।
केंद्रीय बैंक के अधिकांश कदम एक तय अवधि के लिए थे। इसके परिणामस्वरूप उन्हें समाप्त करने से बाजार में कोई उथलपुथल नहीं हुई। इसके अलावा बैंक ने अपने परिसंपत्ति प्रबंधन कार्यक्रम को द्वितीयक बाजार की सरकारी प्रतिभूतियों तक सीमित रखा। ऐसा करने से राजकोषीय घाटे के प्रबंधन में मदद मिली।
अमेरिका की ग्लोबल फाइनैंस मैगजीन ने लगातार दो साल तक वर्ष का सर्वश्रेष्ठ केंद्रीय बैंकर चुना। उन्हें उन तीन शीर्ष केंद्रीय बैंक गवर्नरों में शामिल किया गया जिन्हें एप्लस श्रेणी मिली। यह श्रेणी मुद्रास्फीति नियंत्रण, आर्थिक वृद्धि के लक्ष्यों, मुद्रा स्थिरता और ब्याज दर प्रबंधन के आधार पर ए से एफ तक निर्धारित की गई थी।
बीते छह सालों में दास ने देश की वित्तीय व्यवस्था को जिन चुनौतियों से सफलतापूर्वक बचाया उनमें आईएलऐंडएफएस प्रकरण शामिल है जिसने गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के क्षेत्र में संकट उत्पन्न कर दिया था। इसके चलते इस क्षेत्र की दो और कंपनियों दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्पोरेशन और रिलायंस कैपिटल का पतन हो गया था।
दास ने दो अन्य अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों येस बैंक और लक्ष्मी विकास बैंक को भी डूबने से बचाया। स्टेट बैंक के नेतृत्व में बैंकों के एक समूह ने येस बैंक की मदद की। नवंबर 2020 में रिजर्व बैंक ने लक्ष्मी विलास बैंक का डीबीएस बैंक ऑफ इंडिया में विलय किया और उसके बाद खराब वित्तीय हालात के चलते इसका नियंत्रण खुद संभाला।
मुद्रास्फीति के मोर्चे पर भी उनका कार्यकाल सफल रहा। दास के छह वर्ष के कार्यकाल में केवल एक बार ऐसा हुआ जब लगातार तीन तिमाहियों तक मुद्रास्फीति छह फीसदी के दायरे में नहीं रही। जनवरी से सितंबर 2022 तक ऐसा हुआ और रिजर्व बैंक को इसके लिए सरकार के समक्ष स्पष्टीकरण पेश करना पड़ा।
दास के कार्यकाल में सूचीबद्ध बैंकों का फंसा कर्ज भी सितंबर 2024 में 2.59 फीसदी रह गया जो कई वर्षों का न्यूनतम स्तर था। इस दौरान विशुद्ध फंसे कर्ज का अनुपात भी घटकर 0.56 फीसदी रहा। दिसंबर 2018 में दास के कार्यभार संभालते समय सूचीबद्ध बैंकों का सकल एनपीए 10.38 फीसदी था जबकि अग्रिम का विशुद्ध एनपीए 4.50 फीसदी था।