सरकार और वित्तीय क्षेत्र के नियामक ने साथ मिलकर ऐसी नीति बनाने की घोषणा की है जिससे वित्तीय प्रणाली में बिचौलिये की भूमिका पर नजर रखने में मदद मिलेगी।
इसके अलावा इस नए कदम का मकसद उत्पादों की अवैध बिक्री को रोकना और निवेशकों के बीच जानकारी बढाना है। इस संबंध में पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के अध्यक्ष डी स्वरूप की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।
गौरतलब है कि कुछ नियामक एजेंसियों ने वित्तीय क्षेत्र की अव्यवस्थित हालत के कारण निवेशकों को सही जानकारी उपलब्ध नहीं होने को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी और इस समिति का गठन इसी परिप्रेक्ष्य में किया गया है।
इससे पहले भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष सी एस राव की अध्यक्षता वाले एक पैनल ने अपने अध्ययन में पाया था कि निवेशकों को दी जानेवाली जानकारी कमोबेश सही है, लेकिन इसके बाद भी कुछ नियामक संस्थाओं ने इस पर सवाल उठाए थे।
इसके बाद नियामक संस्थाओं और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई जिसने कहा कि इस मामले में एक बार फिर से विचार करने की जरूरत है। इस बाबत एक नियामक एजेंसी के एक अधिकारी ने कहा कि इस समय बिक्री संबधी अनियमितता काफी हद तक है।
इस अधिकारी ने कहा कि इस समय निवेश संबंधी सलाह वित्त बाजार के किसी खास श्रेणी और बिचौलियों को दिए जाने वाले कमीशन पर आधरित है। अधिकारी ने यह भी कहा कि कोई बीमा अभिकर्ता आपको बैंक की जमा योजनाओं में निवेश करने के लिए नहीं कहेगा न ही कोई म्युचुअल फं ड वितरक आपको बीमा पॉलिसी खरीदने की सलाह देगा।
उल्लेखनीय है कि म्युचुअल फंड और बीमा उत्पाद की बिक्री विभिन्न नियमों के तहत की जा रही थी जिसमें कमीशन में काफी भिन्नता थी। यही नहीं, निवेशकों की जानकारी और उनको शिक्षित करने के वास्ते नियामकों के पास पड़े इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन फंड की सुरक्षा और इसके सही इस्तेमाल की तत्काल जरूरत है। इस समिति के एक सदस्य ने कहा कि समूह इस बात की गंभीरता से जांच करेगा कि क्या वित्तीय सलाहकारों के लिए नियमों की जरूरत और किस तरह से बेहतर ढंग़ से नियंत्रित किया जाए।
स्वरूप के अलावा इस पैनल में आरबीआई, प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड, आईआरडीए और वित्त मंत्रालय के प्रतिनिध भी शामिल हैं। मुंबई स्थित एक वित्तीय सलाहकार ने कहा कि वित्तीय सलाहकारों को पहले से ही काफी सारे खुलासे करने होते हैं और इसे नियामक को सौंपने भी होते हैं।
इस सलाकार ने जहां ज्यादा पारदर्शिता लाने की पहल का स्वागत किया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि नियमों केअधिक कड़े हो जाने से छोटी वित्तीय कंपनियों की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। सूत्रों का कहना है पिछले कुछ सालों में वित्तीय साक्षरता में तेजी देखी गई है और इसके साथ ही प्रत्येक नियामक अपनी कार्यकलापों में तेजी ला रहे हैं।