भारतीय कंपनियों के लिए जैसे जैसे फंड जुटाना मुश्किल हो रहा है, उन्हें दूसरे रास्ते तलाशने पड़ रहे हैं।
इसी के तहत कुछ कंपनियां सीधे तौर पर छोटे निवेशकों की तरफ अपना रूख कर रही हैं। कंपनियां इन निवेशकों को लुभाने के लिए बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट से ज्यादा रिटर्न देने की बात कह रही हैं। पिछले एक महीने में कई कंपनियों ने सीधे तौर पर जमाकर्ताओं से पैसे जुटाएं हैं।
इनमें यूनाइटेड स्पिरिट्स (विजय माल्या के यूबी ग्रुप का हिस्सा), गोदरेज इंडस्ट्रीज, उत्तर प्रदेश स्थित यश पेपर्स, वाहन कल पुर्जे की निर्माता गैब्रियल इंडिया और ऊर्जा उत्पादन करने वाली कपंनी भारत बिजली शमिल है। ये सभी कंपनियां 5,000 से लेकर 25,000 तक की न्यूनतम राशियों को स्वीकार कर रही हैं।
जहां तक इन पर ब्याज दर की बात है तो यह विभिन्न अवधियों केलिए अलग-अलग है और ये एक से तीन साल के बीच 9 से 12 प्रतिशत तक का रिटर्न दे रही है। इन डिपॉजिट पर दिया जा रहा रिटर्न भी बहुत ज्यादा आकर्षक है। उदाहरण के लिए यूनाइटेड स्पिरिट्स एक साल के डिपॉजिट पर 11 प्रतिशत का रिटर्न दे रही है जबकि तीन साल के डिपॉजिट पर 11.5 प्रतिशत का रिटर्न दे रही है।
इसी तरह गैब्रियल इंडिया तीन साल केडिपॉजिट पर 12 प्रतिशत की ब्याज दर ऑफर कर रही है। इस बाबत यूनाइटेड स्पिरिट्स के इन्वेस्टर रिलेशन के प्रबंधक मलय गुप्ता का कहना है कि हम अपनी रोजाना की पूंजी समस्याओं से निपटने केलिए पैसे जुटा रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कंपनी खुदरा निवेशकों से फिक्सड डिपॉजिट या फिर संचयी जमाओं के रूप में पैसे उधार ले रही है।
एफडी की जहां तक बात है तो प्रत्येक तिमाही में ब्याज का भुगतान करना पड़ता है जबकि सीडी के मामले में अवधि पूरी होने पर रुपयों का भुगतान किया जाता है। गुप्ता ने कहा कि संचयी जमाओं के मामले में कंपनियों को ज्यादा ब्याज देना पड़ता है क्योंकि कंपनी इन सारे रुपयों का इस्तेमाल लंबी अवधि केलिए करती हैं। ब्रोकरों और डिस्ट्रिब्यूटरों की मानें तो ऐसी और भी बहुत सी कंपनियां हैं जो इस रास्ते से बाजार में प्रवेश करना चाह रही है।
उल्लेखनीय है कि बैंक जैसे भारतीय स्टेट बैंक 1,000 दिन के फिक्स्ड डिपॉजिट पर 10.5 प्रतिशत का ब्याज दे रहा है। ब्लूचिप इन्वेस्टमेंट एडवायजरी के निदेशक जे कण्णन केअनुसार फंडों की कीमतें ज्यादा होने के बावजूद कंपनियों के लिए खुदरा निवेशकों से पैसे जुटाना अधिक फायदेमंद है।
बैंक अपने कर्ज 14 प्रतिशत या उससे अधिक की ब्याज दरों पर दे रहे हैं। इस लिहाज से बैंकों की बजाय खुदरा निवेशकों से पैसा जुटाना ज्यादा आसान है क्योंकि इससे 1-1.5 प्रतिशत तक के ब्याज की बचत होती है। यहां तक कि ब्रोकर को 0.25 प्रतिशत से 0.5 प्रतिशत तक का ब्रोकरेज देकर भी इस रास्ते से पैसा जुटाना ज्यादा फायदेमंद है।
एफएमपी के मामले में निवेशकों को सिर्फ इंडीकेटिव पोर्टफोलियो और इंडीकेटिव रिटर्न केबारे में पता होता है क्योंकि बैंक की तरह फंड रिटर्न के बारे में किसी तरही की गारंटी नहीं दे सकते हैं। दूसरी तरफ कपंनी के एफडी पर मिलने वाले रिटर्न को लेकर निवेशक बहुत ही निश्चिंत होते हैं।
हालांकि कंननियों के डिपॉजिट में निवेश करने पर रिटर्न न मिलने का खतर भी रहता है क्योंकि पिछले कुछ दिनों में कंपनियां द्वारा डिफॉल्ट की घटनाएं हुई हैं। इसके बाद भी अगर कोई बेहतर रिकॉर्ड वाले कंपनियों का चयन कर इनमें कुछ सालों केलिए निवेश करता है तो फिर पैसा डूबने की संभावना बहुत ही कम होती है।
यहां तक वित्तीय विश्लेषक भी कुछ इसी तरह की बातें महसूस करते हैं। इस बाबत एक सर्टिफायड वित्तीय योजनाकार विश्राम मोदक का कहना है कि कपंनी डिपॉजिट में निवेश एक तरह से असुरक्षित माना जाता है और कर्ज लेने वाले के रकम वापसी से मुकरने का एक डर हमेशा बना रहता है।
कंपनी डिपॉजिट में निवेश करने से पहले किसी कंपनी के मुनाफे और घाटे की जानकारी का मुआयना कर लेना ज्यादा फायदेमंद होता है। ज्यादा ब्याज दर देना इस बात का संकेत होता है कि कंपनी को फंड की कितनी अधिक जरूरत है।
साथ ही, इससे इस बात का पता चलता है कि ऊंचे रिटर्न देने वाली कंपनी हो सकता है कि निवेशक की मूल रकम भी वापस करने को तैयार न हो। भारतीय कानून ऐसी कंपनियों से सावधान रहने की सलाह देते हैं जो 13 प्रतिशत से ज्यादा रिटर्न देने की बात करती हैं।
हालांकि केवल छोटे निवेशकों को कपंनी केफिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश करना चाहिए। जहां तक अमीर निवेशकों की बात है तो उनको कंपनी डिपॉजिट में निवेश करने से दूर रहना चाहिए क्योंकि करों में छूट की लिहाज से यह बहुत फायदे का सौदा तो नहीं है। कंपनी एफडी से आनेवाले रिटर्न को निवेशकों के आमदनी में जोड़ दिया जाता है। अत: अगर आप 10 प्रतिशत कीकर श्रेणी में आते हैं तो कंपनी एफडी पर मिलने वाले रिटर्न पर भी उसी अनुपात में आयकर लगेगा।