भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव ने कहा कि वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) का वित्तीय नियामकों के साथ करीबी समन्वय स्थापित किए जाने की जरूरत है। वित्तीय क्षेत्र में एनबीएफसी कंपनियों की विविधता बढ़ रही है और इनके बीच परस्पर सामंजस्य बढ़ने के कारण करीबी समन्वय स्थापित किए जाने की आवश्यकता है।
हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मध्यस्थता को रोकने के लिए नियमों को सुसंगत बनाया है। रिजर्व बैंक ने एनबीएफसी क्षेत्र के लिए मानदंड आधारित नियामकीय प्रारूप स्थापित किया है। इसमें एनबीएफसी के संचालन और उनके बीच करीबी समन्वय की संभावना के आधार पर श्रेणियां बनाई गई हैं। एनबीएफसी को श्रेणियों पर आधारित विनियमन के आधार पर तीन श्रेणियों : एनबीएफसी का ऊपरी स्तर, मध्यम स्तर और आधार स्तर हैं।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बीते माह एनबीएफसी की कार्यप्रणाली पर गंभीर आपत्ति जताई थी। उन्होंने ‘किसी भी कीमत पर वृद्धि’ की कुछ एनबीएफसी की सोच पर चिंता जताते हुए चेतावनी दी थी कि यदि एनबीएफसी पर स्वनियमन नहीं होगा तो केंद्रीय बैंक उन्हें दंडित करने में नहीं हिचकिचाएगा।
इसके बाद रिजर्व बैंक ने चार एनबीएफसी – आशीर्वाद माइक्रोफाइनैंस, आरोहण फाइनैंशियल सर्विसेज (एक एमएफआई भी), डीएमआई फाइनैंस और नवी फिनसर्व को उधार लेने वालों से अत्यधिक ब्याज वसूलने के कारण ऋण मंजूर करने और वितरण करने से रोक दिया था।
राव ने ‘केंद्रीय बैंक के ग्लोबल साउथ पर उच्च स्तरीय पॉलिसी कॉन्फ्रेंस’ में भारत और ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के लिए तीन उभरते जोखिमों को उजागर किया। इस क्रम में अत्यधिक विषम जलवायु घटनाओं और जलवायु परिवर्तन से जोखिम, उभरती तकनीकों से जोखिम और एनबीएफसी क्षेत्र की मजबूती पर जोखिम हैं।