साझेदारी पर आधारित वितरण का मॉडल, विदेशी बाजारों में अच्छी-खासी मौजूदगी, मोटे मुनाफे वाले जेनरिक दवाओं के कारोबार और विस्तार की जबरदस्त नीति की वजह से सिप्ला के लिए आगे की राह मुश्किल नहीं होनी चाहिए।
घरेलू बाजार में पांच फीसदी हिस्सेदारी पर कब्जे के साथ ही यह कंपनी देसी दवा बाजार की नंबर एक कंपनी है। इस कंपनी की दवाओं की सांस की बीमारियों, एंटी-इन्फेक्टिव, दिल की बीमारियों और आंत्रशोध के सेगमेंट में काफी मांग है।
साथ ही, दमा के मरीजों के लिए जरूरी इन्हेलरों का तीन चौथाई हिस्सा यही कंपनी बनाती है। इसके अलावा, एड्स की दवाओं के बाजार के भी तीन चौथाई हिस्से पर इसी का कब्जा है। घरेलू और विदेशी बाजारों में अच्छी मांग की वजह से कंपनी की बिक्री में अगले कुछ सालों में 20 फीसदी का इजाफा होने की उम्मीद है।
हालांकि, कंपनी के लिए आने वाले कुछ सालों की तस्वीर काफी अच्छी है, लेकिन पिछले कुछ सालों में कंपनी के शेयरों की कीमतों में गिरावट देखने को मिली थी। वजह थी, इसके दक्षिण अफ्रीकी वितरण सहयोगी कंपनी के अधिग्रहण और अमेरिकी एफडीए का इसके निर्माण केंद्रों से जुड़े मुद्दे।
एफडीए की टेढ़ी नजर
सिप्ला के गोवा, कुरकुमभ और बेंगलुरु दवा निर्माण केंद्रों का एफडीए ने निरिक्षण किया था। इसके बाद एफडीए ने फॉर्म 483 जारी कर दिया था। फॉर्म 483, एफडीए किसी कंपनी द्वारा उसके निर्माण मानकों पर खरा नहीं उतरने की सूरत में ही जारी करती है।
हालांकि, यह कोई गंभीर कदम नहीं था। इससे पहले भी कई दवा कंपनियों को एफडीए फॉर्म 483 जारी कर चुकी है। लेकिन यह किसी बड़े कदम की शुरुआत हो सकती थी, अगर कंपनी एफडीए के चिंताओं पर कदम नहीं उठाती। कंपनी अपने 118 उत्पादों को 17 समझौतों के जरिये अमेरिकी बाजारों में बेचती है।
यह जिन इलाकों में अपने उत्पादों को बेचती है, वे कुल अमेरिकी दवा कारोबार के 10 फीसदी हिस्से को दिखलाते हैं। इससे भी अहम बात यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के एड्स राहत की आपात योजना (पीईपीएफएआर) के तहत अफ्रीका में एड्स की दवाओं को बेचने के लिए उसके पास एफडीए की सहमति का होने काफी जरूरी था।
कंपनी के कुल निर्यात में से एक तिहाई हिस्सा अफ्रीकी मुल्कों को ही जाता है। साथ ही, यह निर्यात उसकी कुल बिक्री का 17 फीसदी यानी करीब 700 करोड़ रुपये की कमाई को दिखलाता है। हालांकि, प्रबंधन का कहना है कि कंपनी इस बाबत सारे कदम उठा रही है, लेकिन इस मामले में किसी भी तरह की देरी से उसके अमेरिकी और अफ्रीकी बाजारों में कारोबार पर असर पड़ सकता है।
सिप्ला मेडप्रो
कंपनी दक्षिण अफ्रीका में अपनी दवाओं को जेनरिक दवाओं के स्थानीय साझेदार सिप्ला मेडप्रो के जरिये वितरित करती है। सिप्ला मेडप्रो के साथ कंपनी का इस बाबत 20 साल का समझौता है, लेकिन उस कंपनी में सिप्ला की हिस्सेदारी नहीं है।
अब एक दूसरी दक्षिण अफ्रीकी जेनरिक दवा निर्माता कंपनी एडकॉक इनग्राम, सिप्ला मेडप्रो पर कब्जे की कोशिश में जुटी हुई है। इस वजह से सिप्ला ने चेतावनी दी है कि अगर एडकॉक ने इस मुद्दे पर जोर दिया तो वह सीधे दक्षिण अफ्रीकी बाजार में कूद पड़ेगी।
हालांकि, इससे कंपनी का दक्षिण अफ्रीकी कारोबार पर संकट के बादल छा सकते हैं, जो उसके कुल कारोबार का पांच फीसदी हिस्सा मुहैया करवाती है। इससे कंपनी की 200 करोड़ रुपये की कमाई मर सकती है।
