भारती एएक्सए जनरल इंश्योरेंस इंडिया ने अपना परिचालन पिछले साल शुरू किया। जब बीमा कंपनियां अंडरराइटिंग कारोबार को लेकर सतर्क होने के लिए मजबूर हैं, ऐसे में यह कंपनी खुदरा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां कीमतों में गिरावट हो चुकी है। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी मिलिंद चालिसगांवकर ने शिल्पी सिन्हा से कंपनी की रणनीति के संदर्भ में बात की। प्रस्तुत है बातचीत के अंश :
वैश्विक आर्थिक मंदी का कोई असर पुनर्बीमा पर पड़ेगा?
दरअसल पुनर्बीमा के जरिए पूंजी का इस्तेमाल कुछ जोखिम उठाने के लिए किया जाता है। अगर पूंजी की आपूर्ति कम हो तो फंड की लागत भी बढ़ सकती है और एक साफ संदेश सभी बीमाकर्ताओं को जाता है कि वे लगातार घाटा नहीं उठा सकते हैं। कमीशन की दर में भी 2-5 फीसदी की कमी आई है।
अग्नि, स्वास्थ्य और वाहन बीमा के क्षेत्र में दावे के अनुपात को कम करने के लिए क्या किया जा सकता है?
पोस्ट डिटैरिफिंग को टाला नहीं जा सकता है। कीमतें अपने स्तर पर आ सकें उसके लिए डीटैरिफिंग किया जाता है। जो भी हो रहा वह नियंत्रण के उपाय का एक स्वाभाविक नतीजा है और यह अपेक्षित ही था। अब या तो कीमतें बदलेंगी या दावे पर बेहतर तरीके से नियंत्रण बनाया जाएगा। इसके अलावा बीमा योजनाओं की विशेषताएं भी बदल सकती हैं।
क्या योजनाओं की विशेषताओं में भी बदलाव आ रहा है?
सामूहिक स्वास्थ्य बीमा की विशेषता में बदलाव आ रहा है। कई ऐसे उदाहरण हैं जहां लोगों ने कीमतों में बदलाव लाने के बजाय विशेषताओं में बदलाव किया है। मिसाल के तौर अगर एक कंपनी ने अपने कर्मचारियों के लिए एक सामूहिक स्वास्थ्य बीमा का कवर करने के लिए जिसके लिए हर साल 2 लाख रुपये तक का भुगतान किया जाएगा।
उसके बाद वे एक पूरक भी जोड़ देते हैं कि अगर आप अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं तो आप उसी अस्पताल में जा सकते हैं जहां एक दिन के लिए 2,000 रुपये लिया जाता है। अगर इस पर आपका नियंत्रण नहीं है तो सभी बहुत महंगे अस्पताल में जाने लगेंगे। इस तरह लागत पर नियंत्रण करके आपूर्ति पर भी नियंत्रण किया जा सकता है।
क्या अतिरिक्त विशेषताएं जोड़ने से ज्यादा प्रीमियम जुटाया जाता है?
लोग वाहन बीमा पॉलिसी बहुत लेते हैं। जब चार या पांच विकल्प मौजूद होते हैं तो यह एक कमोडिटी की बिक्री के अलावा आपसी मधुर संबंधों का ताना-बाना सा बन जाता है। इससे दो तरीके से प्रीमियम जुटाने में मदद मिलेगी।
पहली एक मोटर पॉलिसी के लिए 5,000 रुपये प्रीमियम का भुगतान करने के बजाय ग्राहकों का एक फीसदी ज्यादा भुगतान करने और ज्यादा लेने का इच्छुक होता है। इसी वजह से प्रीमियम का संग्रह भी बहुत ज्यादा होगा। दूसरी बात यह है कि जब एक संबध कायम होता है तो इससे ज्यादा बिक्री करने का एक मौका तैयार होता है।
क्या इन हाउस टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर्स ) से भी मदद मिलती है?
एक बीमा कंपनी की यह जिम्मेदारी है कि वह दावे के लिए सेवा मुहैया कराए। हमारे पास तीन विकल्प हैं। पहला यह कि आप सब कुछ खुद ही कर सकते हैं जिसमें टीपीए का काम भी शामिल होता है। इसे आमतौर पर लोग इन-हाउस टीपीए भी कहते हैं। दूसरा विकल्प यह है कि इन-हाउस से जुड़े कामों का कुछ हिस्सा करें और कुछ के लिए टीपीए का इस्तेमाल करें।
तीसरा विकल्प है कि आप सारा काम बाहर से ही कराएं। हमलोगों ने बीच का रास्ता अपनाया और दो टीपीए को नियुक्त किया। हम उनकी उपस्थिति और उनकी क्षमता का इस्तेमाल करते हैं ताकि दावे पर जल्द से जल्द काम किया जाए। लेकिन हम दावे पर नियंत्रण करने के लिए उन पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। इन-हाउस गतिविधियों से यकीनन मदद मिलती है।
जो काम टीपीए के जरिए हो सकता है यह एक नियमित काम है और इसके लिए दुनिया भर में 24 घंटे के एक कॉल सेंटर और सर्विस सेंटर की जरूरत होती है। लेकिन कुछ गतिविधियां ऐसी होती है जिसे करने की जरूरत होती है मसलन बीमाधारक के साथ बेहतर संबंध बनाना और दावे की लागत पर नियंत्रण करना। अगर हम इन जिम्मेदारियों को नजरअंदाज करते हैं तो यह बेहतर तरीके से नहीं हो पाता।
