भारतीय रिजर्व बैंक की 6 सदस्यों वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) नीति की समीक्षा में लगातार आठवीं बार अपना रुख और रीपो दर जस की तस रख सकती है। बिज़नेस स्टैंडर्ड के सर्वेक्षण में शामिल सभी 10 प्रतिभागियों ने ऐसी राय जाहिर की है। नीतिगत समीक्षा का नतीजा 7 जून को आएगा। केंद्रीय बैंक ने मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच रीपो दर में 250 आधार अंक का इजाफा किया और इसे 6.5 फीसदी तक पहुंचा दिया। मगर उसके बाद से लगातार सात बैठकों में मौद्रिक नीति समिति ने दरें यथावत रखी है।
आरबीएल बैंक में अर्थशास्त्री अचला पी जेठमलानी ने कहा, ‘मुख्य मुद्रास्फीति नरम दिख रही है मगर खाद्य मुद्रास्फीति पर अनिश्चितता बनी हुई है। वृद्धि की गति तो अच्छी दिख रही है मगर सतर्कता बरतते हुए इस बार भी विराम ही लगे रहने की संभावना नजर आ रही है।’ मार्च तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था 7.8 फीसदी की दर से बढ़ी, जो उम्मीद से ज्यादा आंकड़ा है। इसकी बड़ी वजह विनिर्माण क्षेत्र में तेजी को माना जा रहा है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि वृद्धि की यह रफ्तार पूरे साल बनी रहेगी।
रिजर्व बैंक ने मुख्य मुद्रास्फीति को 2 से 6 फीसदी के बीच बनाए रखने का लक्ष्य रखा है और महंगाई अभी इस दायरे के भीतर ही है। अप्रैल में मुद्रास्फीति मामूली कमी के साथ 4.83 फीसदी रही, जो मार्च में 4.85 फीसदी थी।
सर्वेक्षण में शामिल सभी प्रतिभागियों ने सर्वसम्मति से कहा कि रिजर्व बैंक नरमी का रुख वापस लेता रहेगा। इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘मुद्रास्फीति के हालिया आंकड़ों और खाद्य एवं जिंस कीमतों के रुख से संकेत मिलता है कि जून की मौद्रिक नीति समीक्षा में दर और रुख में किसी तरह का बदलाव नहीं होगा।
चौथी तिमाही में उम्मीद से बेहतर वृद्धि आंकड़ों ने अगस्त की समीक्षा में रुख बदलने की संभावना भी लगभग खत्म कर दी है।’ कई प्रतिभागियों ने उम्मीद जताई कि केंद्रीय बैंक चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही से दर घटाना शुरू कर सकता है।
नायर ने कहा, ‘हमें लगता है कि अगले कुछ महीनों में खाद्य पदार्थों के दाम कम रहे और वैश्विक बाजार में जिंसों के ऊंचे दाम का मुख्य मुद्रास्फीति पर असर नहीं पड़ता है तो तीसरी-चौथी तिमाही में दर में कटौती हो सकती है।’ भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और येस बैंक का अनुमान है कि इसी वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में दर में कटौती हो सकती है।
जुलाई में बजट पेश होने के बाद बैकों के बीच तरलता की स्थिति सुधरने की उम्मीद है क्योंकि सरकार खर्च बढ़ा सकती है। तब तक रिजर्व बैंक बैंकिंग तंत्र में नकदी बढ़ाने के लिए वेरिएबल रेट रीपो जैसे अस्थायी उपाय जारी रख सकता है।
फरवरी का बजट अंतरिम होने के कारण सरकार का खर्च कम रहा, जिस कारण बैंकों के बीच औसतन 1.4 लाख करोड़ रुपये की तरलता की कमी रही। कर संग्रह में तेजी के कारण सरकार के पास नकदी का अधिशेष रहा फिर भी मई में औसत कॉल दर 6.56 फीसदी रही, जो रीपो दर के करीब थी। इसकी वजह से रिजर्व बैंक ने वेरिएबल रेट रीपो के जरिये बैंकिंग तंत्र में नकदी डाली थी।
जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट्स बॉन्ड सूचकांक में भारत के शामिल होने से चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा, जिससे तरलता की किल्लत घटेगी।