जबरदस्त नियमन और खतरनाक वित्तीय उत्पादों की गैर मौजूदगी की वजह से ही भारतीय वित्त व्यवस्था मौजूदा मंदी के दौर में भी मजबूती से खड़ी है।
हालांकि, यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इसका असर करीब-करीब हर सेक्टर पर पड़ा है। इसकी एक बानगी आप हिंदुस्तानी बैंकों की हालत के रूप में देख सकते हैं। कर्ज अदायगी को लेकर मौजूद चिंताओं की वजह से बैंकों के ऊपर उनकी गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है। इसे बैंक अपने सबसे बड़े दुश्मन के तौर पर देख रहे है।
तीसरी तिमाही में इनकी बुरी गत ने इसमें सुधार की गुंजाइश को भी खत्म कर दिया है। कोढ़ में खाज का काम किया है कर्ज देने की दर में गिरावट ने। इन्हीं वजहों से बीएसई के बैंकेक्स में साल की शुरुआत से 25 फीसदी की गिरावट आ चुकी है, जबकि सेंसेक्स सिर्फ सात फीसदी गिरा है।
बढ़ती मुश्किलें
आईएमएफ के अनुमान की मानें तो अगले वित्त वर्ष में देश की विकास दर 5.3 फीसदी के आंकड़े तक सिमट सकती है। दूसरी तरफ, पिछले दो सालों में मुल्क ने नौ फीसदी की रफ्तार से तरक्की की है। संकेत साफ हैं। कर्ज देने की रफ्तार गिरकर 19 फीसदी के स्तर पर आ गई है।
एंजल ब्रोकिंग के विश्लेषक वैभव अग्रवाल के मुताबिक तो यह अगले साल तक गिरकर 15.17 फीसदी पर आ सकती है। कर्ज कम देने की वजह से अर्थव्यवस्था में कमाई के स्तर पर असर पड़ रहा है। इस वजह से लोगों की पैसा चुकाने की क्षमता पर काफी असर हुआ है। इसी वजह से बैंकों की परिसंपत्तियों पर काफी असर पड़ा है।
सवाल यह है कि कितना असर पड़ेगा?
मूडी के आंकड़ों की मानें तो सामान्य तौर पर इस और अगले वित्त वर्ष में बैंक के गैर निष्पादित कर्ज (एनपीएल) 3-3.5 औप 4-5 फीसदी के बीच रह सकते हैं। पिछले वित्त वर्ष में एनपीएल का स्तर 2.3 फीसदी था।
उसके मुताबिक तेजी के माहौल में इनमें 100 या 200 बेसिस प्वाइंट्स का इजाफा हो सकत है। वहीं उसका कहना है कि अच्छे माहौल में बैंकों का एनपीएल 50 बेसिस प्वाइंट कम हो सकता है। एक अन्य एजेंसी का मानना है कि वित्त वर्ष 2011 तक एनपीए पांच फीसदी के स्तर तक पहुंच सकता है।
ब्रिक्स सिक्योरिटीज के दीपक अग्रवाल कहते हैं कि, ‘जिन बैंकों ने रियल एस्टेट, मेटल और एसएमई सेगमेंट में पैसा लगाया हुआ है, उनके एनपीए में अगले वित्त वर्ष में काफी इजाफा हो सकता है। साथ ही, गैर सुरक्षित रिटेल लोन देने वाले बैंकों की एनपीए में भी काफी इजाफा हो सकता है। इसमें सबसे ज्यादा एनपीए बढ़ सकती है आईसीआईसीआई बैंक की।’
कारोबार की पतली होती हालत का सबसे पहले असर पडेग़ा कमजोर लेनदारों पर। एसएमई के साथ-साथ रियल एस्टेट, निर्यात आधारित कारोबार और जिंस से जुड़े कारोबारियों पर सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है। पहले हो सकता है कि इन सेक्टरों ने मोटा मुनाफा दिया हो, लेकिन आज यह मुनाफे में पलीता लगा सकता है।
बड़े-बड़े सरकारी और निजी बैंकों ने इन सेक्टरों को 14-18 फीसदी और 8-12 फीसदी का कर्ज दिया है, लेकिन अब दबाव महसूस कर रहे हैं। रिटेल लोन सेगमेंट के मामले में भी बैंकों को काफी दबाव झेलना पड़ रहा है। दूसरी तरफ, क्रेडिट कार्ड और असुरक्षित व्यक्तिगत कर्जों को लेकर काफी चिंताएं महसूस हो रही हैं।
हालांकि, मौजूदा दौर में कंपनियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन विश्लेषकों की मानें तो पहले की तुलना में इस बार दबाव काफी कम है। 1997 में तो कंपनियों द्वारा मोटा पूंजी विस्तार, कम पूंजीकरण और अक्षम परिसंपत्ति गुणवत्ता निगरानी की वजह से बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 97 फीसदी के स्तर पर जा पहुंचा था।
आज कंपनियों का पूंजी विस्तार में इक्विटी को भी शामिल करने, कड़े नियमों, सुरक्षा और वसूली के सख्त कदमों की वजह से सकल एनपीए में इजाफा होने की उम्मीद कम ही है। वैसे, मंदी के लंबा खींचने की वजह से एनपीए का चक्र अगले साल से भी आगे फैल सकता है।
कैसी रही कमाई?
पिछले साल जुलाई में बॉन्ड्स की कमाई 9.5 फीसदी के स्तर पर पहुंच चुकी थी, लेकिन उसके बाद इसमें जबरदस्त गिरावट दर्ज किया गया है। इस वजह से बॉन्ड्स की कीमत काफी बढ़ गई थी।
इस वजह से बैंकों को अचानक काफी मुनाफा दर्ज करने का मौका मिल गया। इस वजह से कंपनी की अतिरिक्त कमाई में पिछली तिमाही में काफी इजाफा हो गया था। मिसाल के तौर पर पीएनबी का ट्रेडिंग प्रॉफिट उसकी दूसरी कमाई की तुलना में 27 फीसदी से बढ़कर पिछली तिमाही में 36 फीसदी हो गया। वजह थी, उसकी ट्रेडिंग प्रॉफिट में पूरे 150 फीसदी का इजाफा।