भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा वैश्विक जमाओं के संदर्भ में बैंकों के लिए नियमों में बदलाव लाए जाने के करीब ढाई महीने बाद अब तक इन उपायों से करीब 1.5-2 अरब डॉलर की पूंजी आई है। इस उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि हालांकि यह वर्ष 2013 में आकर्षित हुई जमाओं के मुकाबले कम है, जब केंद्रीय बैंक ने विदेशी मुद्रा जमाओं के लिए विशेष पेशकश की थी।
अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा हालात के आधार पर आरबीआई की रियायती सीमा के जरिये जुटाई जाने वाली पूंजी 3.5-4 अरब डॉलर होगी। अधिकारियों का कहना है कि करीब 40 प्रतिशत कोष फॉरेन करेंसी नॉन-रेसिडेंट (बैंक), या (एफसीएनआर-बी), जमाओं और शेष नॉन-रेसिडेंट एक्सटर्नल (एनआरई) खातों के जरिये जुटाए जाएंगे।
सितंबर 2013 में, जब आरबीआई ने स्पेशल स्वैप विंडो की पेशकश की थी, उस वित्त वर्ष में एफसीएनआर-बी खातों में 26 अरब डॉलर के कोष की अनुमति दी गई थी।
तब बैंकरों ने कहा था कि आरबीआई की घोषणा के कुछ ही सप्ताहों के अंदर 6-8 अरब डॉलर का पूंजी प्रवाह दर्ज किया गया था। इस साल 6 जुलाई को आरबीआई ने विदेशी एक्सचेंज के प्रवाह को आसान बनाए जाने के लिए कई कदमों की घोषणा की, क्योंकि अमेरिकी दर वृद्धि और वैश्विक निवेश में कमी से डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर नए निचले स्तर पर आ गया था।
केंद्रीय बैंक ने नए एफसीएनआर-बी और एनआरई जमाओं पर नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर)और सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) बरकरार रखे जाने के संदर्भ में राहत प्रदान की। 4 नवंबर तक लागू राहत से ऐसी जमाएं जुटाने वाले बैंकों के लिए लागत में कमी आई है।
आरबीआई ने बैंकों को 7 जुलाई से 31 अक्टूबर, 2022 तक एफसीएनआर-बी और एनआरई जमाओं पर ऊंची ब्याज दरों की पेशकश के विकल्प पेश करने की अनुमति दी है।
जहां कई बैंकों ने एफसीएनआर-बी और एनआरई जमाओं पर पेश दरों में बदलाव किया है, वहीं कुल मिलाकर, इसे लेकर प्रतिक्रिया सुस्त नजर आ रही है।
एचडीएफसी बैंक में कोषाध्यक्ष आशीष पार्थसारथी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘एफसीएनआर और एनआरई को लेकर कुछ रियायतें हैं, लेकिन वे बहुत ज्यादा बड़ी नहीं हैं। मैं नहीं मानता कि इससे किसी बैंक पर ज्यादा असर पड़ेगा। वे उस तरह की नहीं हैं जैसी कि वर्ष 2013 में थीं।’ उन्होंने कहा, ‘वर्ष 2013 में, आरबीआई प्रतिपक्ष के तौर पर काम कर रहा था, इसलिए आखिरकार यह सुनिश्चित किया गया कि बैंकों, रुपये से जुड़े कोषों के लिए कुल खर्च काफी हद तक घरेलू लागत पर निर्भर था।’
हालांकि मौजूदा योजना अलग है। जहां आरबीआई ने कुछ राहत प्रदान की है, वहीं बाहरी परिवेश बैंकों के लिए उनके मार्जिन के नजरिये से कम अनुकूल है। मौजूदा समय में मुख्य अंतर यह है कि फेडरल रिजर्व ने करीब दो दशकों में बेहद आक्रामक सख्त चक्र अपनाया है।
मौजूदा समय में अमेरिकी ब्याज दरें ऊपर हैं और घरेलू ब्याज दरें नीचे हैं।
ऐक्सिस बैंक में ट्रेजरी प्रमुख नीरज गंभीर ने कहा, ‘हमने हाल में एफसीएनआर जमाओं पर अपनी दरें बढ़ाई हैं और इन्हें बाजार के अनुकूल किया है।’
