वैश्विक मंदी के डंक को कुंद करने के लिए दुनिया भर के बैंक जंग में शामिल हो चुके हैं।
अमेरिका में जहां बैंकों से पैसे जमा करने के बजाय ऋण देने की गुहार की जा रही है, वहीं स्वीडन और बेल्जियम में बैंकों को दिवालिया होने से बचाने की जुगत भिड़ाई जा रही है।
अमेरिका में व्हाइट हाउस ने मंदी को पछाड़ने के लिए बैंकों से ऋण देने की बात कही है। राष्ट्रपति के कार्यालय से कहा गया है कि अरबों रुपये की मदद पाने वाले बैंक और दूसरी वित्तीय कंपनियां रुपये इकट्ठा करने के बजाय लोगों को ऋण देना शुरू करें।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव डेना पेरिनो ने कहा, ‘हम बैंकों से वही करने को कह रहे हैं, जो उन्हें करना चाहिए। बैंकों का काम ही ऋण देना है और उन्हें वही करना भी चाहिए।’ व्हाइट हाउस ने कहा कि बैंक ऋण के जरिये ही पैसे कमाते हैं। उन्हें आगे बढ़ने और धन का उपयोग करने के लिए ढेर सारे मौके मिलते हैं और उन्हें ऋण देकर इन मौकों का इस्तेमाल भी करना चाहिए।
स्वीडन ने भी अमेरिका और यूरोपीय देशों की तर्ज पर अपने यहां बैंकों को मदद देना शुरू कर दिया है। स्वीडन सरकार ने दिवालिया होने के कगार पर पहुंचे बैंक कार्नेजी एबी को 63 करोड़ डॉलर का ऋण देने का ऐलान किया है। सरकार ने पहले 12.6 करोड़ डॉलर देने की बात कही थी, लेकिन अब इस रकम को बढ़ाकर पांच गुना कर दिया गया है।
दरअसल निवेश बैंक कार्नेजी नकदी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है और उसकी वित्तीय सेहत बिल्कुल खराब हो गई है। सोमवार को बैंक के शेयरों में तकरीबन 50 फीसद की गिरावट दर्ज की गई थी और 12.6 करोड़ डॉलर मिलने की घोषणा के बाद भी गिरावट जारी रही। इसीलिए सरकार को मजबूरन यह रकम बढ़ानी पड़ी।
स्वीडन की ही तर्ज पर बेल्जियम सरकार भी अपने बैंकों को उबारने में जुटी हुई है। उसने केबीसी बैंक को भी धन देने का ऐलान किया है। सरकार बैंक के शेयर गिरने के बाद उसमें 350 करोड़ यूरो डालेगी।
केबीसी के मुख्य कार्यकारी आंद्रे बर्जेन ने कहा, ‘वित्तीय संकट को देखते हुए अतिरिक्त पूंजी भंडार को बढ़ाने में ही समझदारी है। हम इसके बल पर ही दूसरे बैंकों को टक्कर दे पाएंगे।’ इस साल की शुरुआत से अब तक केबीसी के शेयरों में 76 फीसद की गिरावट दर्ज की जा चुकी है।