अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों को 4 दिसंबर को प्रस्तावित मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दरों में किसी तरह के बदलाव की उम्मीद नहीं है। उनके अनुसार आने वाले समय में वित्तीय प्रणाली से कुछ मात्रा में नकदी समेटी जा सकती है, लेकिन दरें तब भी बदलेंगी ऐसा नहीं लग रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने 12 अर्थशास्त्रियों और बॉन्ड बाजार के कारोबारियों से बात की, जिनमेंं सभी की यह राय थी कि छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) रीपो रेट 4 प्रतिशत के स्तर पर यथावत रखेगी। अर्थशास्त्रियों और बॉन्ड कारोबारियों के अनुसार लंबे समय तक यह स्थिति बदलने की उम्मीद नहीं है। अक्टूबर में खुदरा महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा निर्धारित दायरे 2-6 प्रतिशत से बढ़कर 7.61 प्रतिशत हो गई थी। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में महंगाई 6 प्रतिशत से ऊपर रहेगी और मार्च से पहले इसके 5 प्रतिशत से नीचे आने की उम्मीद नहीं है।
राहत की बात यह रही है कि पहली तिमाही में जबरदस्त फिसलने के बाद दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में गिरावट की दर कमजोर हुई है। पिछले सप्ताह आबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था ‘पहली तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत गिरावट आने के बाद दूसरी तिमाही के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में सुधार की गति तेज हुई है। देश में आर्थिक गतिविधियों में उम्मीद से अधिक तेजी आई है।’ दूसरी तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट की दर कम होकर 7.5 प्रतिशत रह गई।
एचडीएफसी फस्र्ट बैंक में मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील पान ने कहा, ‘ब्याज दरों में कमी की गुंजाइश तो फिलहाल खत्म हो गई है क्योंकि महंगाई ऊंचे स्तर पर चली गई है। हालांकि आर्थिक गतिविधियों में तेजी जरूर आई है, लेकिन कसर अभी बाकी है। ऐसे में दरें बढऩे के आसार भी नहीं लग रहे हैं।’ पान के अनुसार चालू वित्त वर्ष के बाद भी दरें बढ़ती नहीं दिख रही हैं।
बंधन बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सिद्धार्थ सान्याल ने कहा कि दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बेहतर रहने के बावजूद उत्पादन सामान्य स्तर पर नहीं पहुंच पाया है और अभी एक बड़ा अंतर पाटना है। सान्याल ने कहा, ‘मौजूदा हालात में तो यही लग रहा है कि लंबे समय तक दरें बढ़ाने का निर्णय नहीं लिया जाएगा।’ दरें नहीं बढऩे की स्थिति में सभी का ध्यान वित्तीय प्रणाली में मौजूद प्रचूर नकदी पर चला जाएगा। प्रणाली में 6.73 लाख करोड़ रुपये से अधिक नकदी आने के बाद मनी मार्केट दरें लुढ़क गई हैं। तीन महीन से कम अवधि के ट्रेजरी बिल की नीलामी 3 प्रतिशत से नीचे हो रही है और एक वर्ष के बिल पर ब्याज 3.5 प्रतिशत है, जो रीपो रेट से कम है।
आईसीआईसीआई बैंक के समूह कार्याधिकारी एवं वैश्विक बाजार प्रमुख बी प्रसन्ना ने कहा, ‘नकदी प्रबंधन एमपीसी की चर्चा के दायरे में नहीं आता है, लेकिन बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) या स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (एसडीएफ) के जरिये कुछ हद तक नकदी कम की जा सकती है।’ एलऐंटी फाइनैंस ग्रुप की मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे नित्सुरे ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में विश्वास बहाल नहीं हो पाया है और मौजूदा हालात भी निवेश के लिए पूरी तरह अनुकूल नहीं हुए हैं। नित्सुरे ने कहा कि बाजार में सस्ती दरों पर रकम उपलब्धता होने के बाद भी उत्साह पूरी तरह जोर नहीं पकड़ पाया है।
