कोविड-19 के संक्रमण की दूसरी लहर और वृद्धि पर पडऩे वाले इसके असर की चिंता भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के 6 सदस्यों के दिमाग में छाई रही। रिजर्व बैंक की ओर से जारी बैठक के ब्योरे से यह जानकारी मिलती है।
समिति के सदस्य प्रतिफल को लेकर बॉन्ड बाजार में भी हस्तक्षेप के पक्ष में थे। एमपीसी के एक बाहरी सदस्य जयंत आर वर्मा ने कहा कि रिजर्व बैंक के दिशानिर्देश प्रतिफल नीचे लाने में असफल रहे और यह गतिविधि रोकी जा सकती है। रिजर्व बैंक ने पहली तिमाही में द्वितीयक बाजार से 1 लाख करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीद की घोषणा की थी।
आखिर में एमपीसी ने फैसला किया कि नीतिगत रीपो दर में कोई बदलाव नहीं किया जाए और समावेशी रुख बनाए रखा जाए, ‘जब तक कि टिकाऊ वृद्धि के लिए जरूरी है और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 का असर कम नहीं हो जाता है, साथ ही यह सुनिश्चित रहना चाहएि कि महंगाई दर लक्ष्य के भीतर बनी रहे।’
जारी किए गए संपादित ब्योरे से पता चलता है कि रिजर्व बैंक ने भले ही राजकोषीय वृद्धि के अपने लक्ष्य को 10.5 प्रतिशत पर बरकरार रका है, ज्यादातर सदस्य बहुत ज्यादा निश्चिंत नहीं थे कि कोविड-19 के बढ़ते मामलों का अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ेगा।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘कोविड-19 के तेजी से बढ़ते मामले भारत की अर्थव्यवस्था की चल रही रिकवरी के सामने एकमात्र सबसे बड़ी चुनौती है।’
फरवरी में एमपीसी की योजना के मुताबिक अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा था और मांग की स्थिति सुधर रही थी। सरकार की ओर से निवेश को बढ़ाने के कदमों व बाहरी मांग में सुधार से वृद्धि में तेजी की उम्मीद थी। लेकिन हाल में कोविड-19 के संक्रमण और आर्थिक गतिविधियों पर इसके असर पर बहुत सावधाने से नजर रखने की जरूरत है।
गवर्नर दास ने कहा कि इस समय वक्त की मांग है कि प्रभावी तरीके से आर्थिक रिकवरी जारी रखी जाए, जिससे इसका दायरा व्यापक और स्थायी हो सके। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक वित्तीय बाजारों की स्थिति दुरुस्त रखने और वित्तीय स्थिरता के लिए हर संभव कदम उठाएगा।
डिप्टी गवर्नन माइकल पात्र ने कहा कि हाल में बढ़ी महंगाई पर ध्यान रखा जाना चाहिए, जबकि इसके साथ ही अर्थव्यवस्था के मजबूत और टिकाऊ वृद्धि के साथ बहाल होने पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए। पात्र ने कहा, ‘इस तरीके का एक अहम हिस्सा यह है कि घरेलू वित्तीय बाजारों को वैश्विक असर व उतार चढ़ाव से बचाए रखा जाए, जिससे वित्तीय स्थिति का वृद्धि को लगातार समर्थन मिलता रहे।’
रिजर्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मृदुल के सागर ने कहा कि आॢथक रिकवरी जोखिम में आ जाएगी अगर संक्रमण की नई लहर पर जल्द काबू नपीं पा लिया जाता, खासकर ऐसी स्थिति में, जबकि मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों का इस्तेमाल पहले ही किया जा चुका है।
मौद्रिक नीति विभाग के प्रमुख सागर ने कहा कि हालांकि पॉलिसी टूलकिट्स का विस्तार अभी भी अतिरिक्त बोझ का वहन कर सकता है। उन्होंने कहा कि संक्रमण के प्रसार से एक या दो महीने में स्थिति सामान्य होने की संभावनाओं को पटरी से उतार सकता है, ऐसे में टीकाकरण, परीक्षण और उपचार ही आर्थिक रिकवरी की रक्षा में अहम हैं। स्वास्थ्य नीति रक्षा की प्रथम पंक्ति में आ गई है, जबकि मौद्रिक और राजकोषीय नीति सिर्फ दूसरी पंक्ति की भूमिका निभा सकती हैं।
बाहरी सदस्य शशांक भिडे ने कहा, ‘रिकवरी की गति को कोविड-19 के झटकों के नकारात्मक असर से बचाने की जरूरत है। खासकर आमदनी में वृद्धि और रोजगार अहम होगा।’ भिडे के मुताबिक आसान मौद्रिक नीति ने टिकाऊ आर्थिक गतिविधियों और वृद्धि में रिकवरी को समर्थन दिया है और इस तरह के नीतिगत माहौल की जरूरत है, जिससे कि मजबूती बनी रहे और रिकवरी व्यापक बन सके।
अशिमा गोयल ने कहा कि तमाम देशों में दूसरी लहर बहुत तेज लेकिन कम अवधि के लिए रही है। इसका वृद्धि पर असर मामूली होगा, अगर पूरी तरह से लॉकडाउन और एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही पर प्रतिबंध से बचा जाए।
जयंत आर वर्मा ने कहा कि रिजर्व बैंक की फारवर्ड गाइडेंस प्रतिफल पर लगाम लगाने में असफल रही है और उन्होंने कहा कि अब इसका बहुत कम असर है। उन्होंने कहा कि अनुमानों पर बहुत ज्यादा भरोसा समझदारी नहीं होगी। इसके बजाए तेजी से प्रतिक्रिया देने में एमपीसी को चपलता और लचीलापत दिखाने की जरूरत है। वर्मा ने कहा कि समय पर दिया गया मार्गदर्शन इस असंगति हिसाब से लाजिमी है।