मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) को बढ़ती मुद्रास्फीति का भय तो है लेकिन उसने महसूस किया कि वृद्घि में सुधार की लय इतनी प्रयाप्त नहीं है कि नीति को कड़ा किया जाए खासकर ऐसे समय पर जब कोविड के ओमीक्रोन रूप से आर्थिक गतिविधि में ठहराव आने का अंदेशा है।
छह सदस्यीय एमपीसी ने आम राय से नीति रीपो दर को पुराने स्तर पर बरकरार रखने के लिए वोट दिया। इस समिति में बाहरी विशेषज्ञों और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास सहित इसके सदस्यों की संख्या बराबर बराबर है। बाहरी सदस्य जयंत आर वर्मा ने पहले की तरह ही रिजर्व बैंक के उदार रुख को बनाए रखने के खिलाफ मत दिया।
रीपो दर और रिवर्स रीपो दर को पहले की तरह क्रमश: 4 फीसदी और 3.35 फीसदी पर बरकरार रखा गया है लेकिन केंद्रीय बैंक ने कहा कि 1 जनवरी से वह अपने तरलता अवशोषण संचालन के लिए परिवर्तनीय दरों को अपनाएगा जिससे रिवर्स रीपो की नियत दर व्यावहारिक रूप से बेकार हो जाएगी।
गवर्नर शक्तिकांत दास वैश्विक कारकों से उत्पन्न होने वाली विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित हैं। कुछ पुरानी चुनौतियां समाप्त नहीं हो रही हैं तो वहीं कुछ नई चुनौतियां उभर आईं हैं।
रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा, ‘एक ओर जहां भारतीय अर्थव्यवस्था 2021-22 में संभावित 9.5 फीसदी की वृद्घि दर को हासिल करने की तरफ बढ़ रही है वहीं अब भी कई सारे क्षेत्रों मे चिंता बरकरार है।’ दास ने कहा कि निजी खपत महामारी से पूर्व के स्तर से नीचे है। ईंधन पर कर कटौती अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात है जिससे महंगाई में कमी आनी चाहिए लेकिन मोबाइल शुल्क में संशोधन किए जाने से प्रमुख मुद्रास्फीति पर दबाव पड़ सकता है।
गवर्नर ने कहा कि दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति के 5 फीसदी पर बरकरार रहने की उम्मीद है लेकिन एमपीसी को मुद्रास्फीति पर आरंभिक कॉस्ट पुश दबाव के साथ साथ ओमीक्रोन से उपजी अनश्चितता को लेकर सचेत रहना है।
भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में प्राफेसर वर्मा ने कहा कि वह न तो रिवर्स रीपो दर को 3.35 फीसदी पर बनाए रखने और न ही उदार रुख को बरकरार रखने के पक्ष में थे।
