नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के चेन्नई पीठ ने लेनदारों को ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालियापन संहिता 2016 की धारा 12ए के तहत शिवा इंडस्ट्रीज द्वारा किए गए एकमुश्त निपटान प्रस्ताव के पीछे तर्क और सभी लेनदारों के लिए नकदी प्रवाह की समयसीमा के बारे में विस्तार से बताने के लिए कहा है। सुनवाई के दौरान सरकारी बैंकों ने अदालत को सूचित किया था कि तीसरे पक्ष के गारंटर के भुगतान को भी शामिल कर लिया जाए तो उन्हें 26 फीसदी बकाये का भुगतान हो जाएगा। इसके अलावा परिचालन लेनदारों को भी उनके बकाए का एक हिस्सा मिल सकेगा।
इस मामले के एक करीबी बैंकर ने कहा कि लेनदारों को जबतक एकमुश्त निपटान योजना के आवेदन में दर्ज 180 दिनों की समय-सीमा के भीतर अंतिम भुगतान नहीं किया जाता, तब तक कंपनी पर देनदारी बनी रहेगी और वह खत्म नहीं होगी। आईबीसी की धारा 12ए के तहत प्रवर्तकों को अपनी कंपनी वापस लेने का एक अवसर दिया गया है बशर्ते 90 फीसदी लेनदारों की सहमति हो और बकाये का भुगतार कर दिया जाए।
लेनदारों ने अदालत को सूचित किया कि यदि किसी कंपनी का परिसमापन किया जाता है अथवा किसी तीसरे पक्ष को समाधान योजना शामिल किया जाता है तो कर अधिकारियों सहित सभी परिचालन लेनदारों का सफाया हो जाता है। इसलिए उन्होंने प्रवर्तकों द्वारा 12ए के तहत दायर प्रस्ताव को मंजूरी दी। अदालती दस्तावेजों के अनुसार, आईडीबीआई बैंक के 644 करोड़ रुपये के दावे का भुगतान अदालत में जारी कार्यवाही पर निर्भर करेगा। जबकि इंटरनैशनल एआरसी को भूमि की बिक्री होने से 510 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम मिलेगी। एनसीएलटी में मामले की सुनवाई 24 जून को होगी।
