वित्त वर्ष 22 के पहले 5 महीने में बैंक ऋण में औद्योगिक कर्ज की हिस्सेदारी घटकर 26 प्रतिशत के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है, जो वित्त वर्ष 21 में 26.1 प्रतिशत थी। कई साल की सुस्त वृद्धि दर के बाद यह स्थिति हुई है। वित्त वर्ष 13 में यह हिस्सेदारी रिकॉर्ड उच्च स्तर पर थी, जब कुल बैंक कर्ज में उद्योगों के ऋण की हिस्सेदारी करीब 46 प्रतिशत थी।
इसकी तुलना में आवास ऋण सहित व्यक्तिगत ऋण की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 22 के पहले 5 महीने के दौरान कुल बैंक कर्ज का 26.7 प्रतिशत है, जो इस साल मार्च में समाप्त वित्त वर्ष के दौरान 26.1 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष 12 में व्यक्तिगत ऋण की हिस्सेदारी 18.2 प्रतिशत थी।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा क्षेत्रवार बैंक कर्ज का आवंटन किए जाने के बाद यह पहला मौका है, जब व्यक्तिगत कर्ज का प्रतिशत औद्योगिक कर्ज से ज्यादा हो गया है।
वित्त वर्ष 22 के पहले 5 महीने में बकाया औद्योगिक कर्ज पिछले साल की समान अवधि की तुलना में महज 2.3 प्रतिशत बढ़ा है, और अगस्त के अंत तक यह 28.2 लाख करोड़ रुपये था। इसकी तुलना में बैंकों द्वारा दिया गया व्यक्तिगत ऋण वित्त वर्ष 22 के पहले 5 महीने के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 12.1 प्रतिशत बढ़कर इस महीने के अंत तक 28.94 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है।
विशेषज्ञों का कहा है कि इससे संकेत मिलता है कि निजी क्षेत्र के निवेश और उद्योगों के पूंजीगत व्यय में मंदी जारी है।
जेएम फाइनैंशियल इंस्टीट्यूशनल इक्विटी के प्रबंध निदेशक और मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘उपभोक्ता मांग की वजह से आर्थिक रिकवरी को लगातार बल मिल रहा है, जबकि कंपनियां अपना बैलेंस सीट हल्का करने में जुटी हुई हैं और वे नई परियोजनाओं व क्षमता विस्तार पर खर्च नहीं कर रही हैं।’
उन्होंने उम्मीद जताई कि कॉर्पोरेट का पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 23 की दूसरी छमाही या वित्त वर्ष 24 के शुरुआत में गति पकड़ेगा, जबर उपभोक्ता मांग में टिकाऊ वृद्धि हो जाएगी और क्षमता का अधिकतम उपयोग होने लगेगा।
अन्य मसला सूक्ष्म स्तर पर निवेश में तेज गिरावट का है। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘बैंक ऋण के आंकड़े उन आकंड़ों की पुष्टि करते हैं, जो हम सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों में देख रहे हैं। भारत की जीडीपी में निवेश की हिस्सेदारी पिछले वित्त वर्ष में गिरकर कई साल के निचले स्तर पर पहुंच गई, क्योंकि कंपनियां निवेश को लेकर सुस्त रही हैं।’
वित्त वर्ष 21 में भारत की जीडीपी में निवेश या सकल नियत पूंजी सृजन की हिस्सेदारी घटकर 17 साल के निचले स्तर 27.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो एक साल पहले के 29 प्रतिशत की तुलना में कम है। राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़ों के मुताबिक यह वित्त वर्ष 10 में 39 प्रतिशत के अब तक के सर्वोच्च स्तर पर था।
सबनवीस के मुताबिक बैंकों की ओर से उद्योग को दिए जाने वाले कर्ज में सुस्ती बॉन्ड बाजार में भी नजर आ रही है। उन्होंने कहा, ‘विनिर्माण या औद्योगिक क्षेत्र की बहुत कम कंपनियां कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार से उधारी ले रही हैं और ज्यादातर बॉन्ड उधारी गैर बैंकिंग वित्त कंपयिनां या सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों जैसे एनटीपीसी द्वारा ली गई है।’
कुल मिलाकर बैंकों ने अप्रैल-अगस्त, 2021 के दौरान 62,000 करोड़ रुपये का औद्योगिक ऋण दिया है, जबकि उनका खुदरा खाता इस अवधि के दौरान 3.13 लाख करोड़ रुपये बढ़ा है।
अगर वित्त वर्ष 22 के पहले 5 महीने की वृद्धि की धारणा पूरे वित्त वर्ष में जारी रहती है तो वित्त वर्ष 22 लगातार 8वां साल होगा, जब औद्योगिक कर्ज की तुलना में व्यक्तिगत ऋण में तेज वृद्धि दर्ज होगी।
पिछले 7 साल में औद्योगिक कर्ज सिर्फ 2 प्रतिशत संयुक्त सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है और यह मार्च, 2014 के अंत के 25.2 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर इस साल मार्च के अंत में 28.96 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
इसकी तुलना में बैंकों का खुदरा कर्ज इस अवधि के दौरान 16 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ा है और यह मार्च, 2014 के 13.4 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर इस साल मार्च के अंत तक 28.5 लाख करोड़ रुपये हो गया है। गैर खाद्य कर्ज में वृद्धि की दर 10.2 प्रतिशत सीएजीआर से हुई है और यह इस साल मार्च के अंत तक 55.3 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 108.9 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
