भारतीय बैंकों को बेसल-2 के नए जोखिम प्रबंधन के अनुकूल बनाने के प्रयास के एक हिस्से के तौर पर नियामक, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आज नए दिशानिर्देश जारी किए हैं।
आरबीआई ने बैंकों से कहा है कि वे पर्याप्त पूंजी बनाए रखें जिससे विभिन्न जोखिमों, जिसमें उनकी नेकनामी को क्षति पहुंचाने वाले कारक (जोखिम)भी शामिल हैं, से निपटा जा सके।पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रिया (एसआरपी) में जारी दिशानिर्देशों में बैंकों से कहा गया है कि वे क्रेडिट कंसन्ट्रेशन, निपटान जोखिम, नेकनामी, नीति और ऋण जोखिम के कम आकलन जैसे जोखिमों के लिए प्रावधान करें। पहले इसका उल्लेख नहीं किया गया था।
जैसा कि दिशानिर्देशों में कहा गया है, जोखिमों को कम आंकने की संभावना और जोखिम प्रबंधन की गुणवत्ता को देखते हुए बैंको को अतिरिक्त पूंजी रखना पड़ सकता है।पहले ही आरबीआई ने बेसल-2 नियमों के तहत न्यूनतम पूंजी अनुपात और बाजार अनुशासन पर दो दिशानिर्देश जारी कर चुकी है जिसका नाम पिलर-1 और पिलर-3 है।
जहां न्यूनतम पूंजी अनुपात तीन जोखिमों- ऋण, बाजार और परिचालन जोखिमों की पहचान करता है वहीं आज जारी किए गए दिशानिर्देशों में नए जोखिमों को भी समाहित किया गया है।नए दिशानिर्देशों के अनुसार बैंक अब उन जोखिमों से भी सुरक्षित रहेंगे जो वाह्य कारकों से उत्पन्न होते हैं और जिन्हें न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात के अंतर्गत पूर्णत: शामिल नहीं किया गया था।
ये दिशानिर्देश बैंकों को अपने जोखिमों के प्रबंधन और उन पर नजर रखने के लिए बेहतर तकनीक विकसित करने की दिशा में प्रोत्साहित करते हैं।बैंकों को सुस्पष्ट आंतरिक आंकलन प्रक्रिया अपनाने की जरुरत होगी ताकि वे नियामक को यह विश्वास दिला सकें कि उनके पास विभिन्न जोखिमों के लिए पर्याप्त पूंजी है।हालांकि, ये नियम के वल विस्तृत सिध्दांत उपलब्ध कराते हैं जिससे बैंकों को उनके आंतरिक पूंजी पर्याप्ता आकलन प्रक्रिया विकसित करने में मदद मिले।
बेसल-2 मानक के तहत बैंकों को विस्तृत जोखिमों के लिए बैंकों को प्रावधान करने की जरूरत होगी जबकि पहले के मानकों में केवल ऋण जोखिमों की ही चर्चा की गई थी।विदेशी बैंकों और वैसे भारतीय बैंकों, जिनका परिचालन देश के बाहर भी है, को बेसल-2 मानकों को 31 मार्च 2008 से लागू करना होगा जबकि अन्य वाणिज्यिक बैंकों, स्थानीय बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़ कर, के लिए यह नियम 31 मार्च 2009 से लागू किया जाएगा।