सरकारी बैंक बचत खातों में न्यूनतम मासिक औसत शेष (एमएबी) राशि नहीं होने पर लगने वाले शुल्क को हटा रहे हैं। वरिष्ठ बैंकरों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकारी बैंक जमाकर्ताओं को अपने साथ जोड़े रखने और नए जमाकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए यह शुल्क हटा रहे हैं। इस क्रम में बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन बैंक, केनरा बैंक और पंजाब नैशनल बैंक जैसे बैंकों ने बचत खातों पर न्यूनतम शेष राशि कम होने पर लगने वाले शुल्क को हटा दिया है।
बैंकरों ने कहा कि इस कदम से बैंकों को बचत खातों में विशेष तौर पर कम आय वाले समूहों से जमा राशि प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। कम आय वाले समूहों को कई बार न्यूनतम शेष राशि रखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के रीपो रेट में संचयी रूप से 100 आधार अंक 6.50 प्रतिशत से गिरकर 5.50 प्रतिशत करने से बचत खातों और सावधि जमाओं पर ब्याज दर कम हो गई है।
सरकारी बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘रिजर्व बैंक ने रीपो रेट कम कर दी है, इसलिए बैंकों ने ऋणों पर ब्याज दरों को फिर से तय किया है। इस दौर में बैंकों ने ऋण-ब्याज मार्जिन पर दर में कटौती के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए जमा पर ब्याज दरें कम कर दी हैं। इसलिए जमाकर्ताओं को बनाए रखने के लिए बैंक अपने ग्राहकों को यह छूट दे रहे हैं क्योंकि बचत खातों पर ब्याज दरें पहले से ही बहुत कम हैं।’
बचत बैंक खातों पर औसत ब्याज दर घटकर 2.50 से 2.75 प्रतिशत हो गई है। इसके अतिरिक्त एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए सावधि जमा दर 6 से 7.30 प्रतिशत से घटकर 5.85 से 6.70 प्रतिशत हो गई है।
बैंकरों ने कहा कि सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों के बचत खातों पर न्यूनतम मासिक औसत शेष राशि रखने की आवश्यकता को माफ करने से बैंकों की गैर-परिचालन आय पर असर पड़ेगा और बचत खाता ब्याज दर में कटौती से कुछ प्रभाव कम होगा। उन्होंने कहा कि न्यूनतम मासिक शेष राशि बनाए रखने में विफल रहने वाले खातों की संख्या पिछले दो-तीन वर्षों में बढ़ी है। इससे बैंकों की शुल्क आय में वृद्धि हुई है और समग्र लाभप्रदता में मदद मिली है। इसके अतिरिक्त बैंकरों ने बताया कि न्यूनतम राशि नहीं बनाए रखने पर लगने वाले शुल्क को हटाने से निष्क्रिय खातों की संख्या बढ़ने का जोखिम बढ़ सकता है।
रेटिंग एजेंसी के विश्लेषक ने कहा, ‘निष्क्रिय खातों में वृद्धि हुई है। इससे ग्राहकों को खाते में कोई राशि नहीं रखने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, इसलिए वे कुछ समय में निष्क्रिय हो जाएंगे और बैंकों को उन्हें बनाए रखने की लागत वहन करनी होगी।’
अन्य सरकारी बैंक के वरिष्ठ बैंकर ने कहा, ‘बैंक शून्य बैलेंस पर वेतन खाता खोलने की सुविधा देते हैं और बचत बैंक खाते में न्यूनतम बैलेंस बनाए रखने की आवश्यकता कम है। इसलिए इन शुल्कों को हटाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।’