सार्वजनिक क्षेत्र के कर्ज देने वाले पंजाब एंड सिंध बैंक अपने कारोबार का विस्तार करने के लिए अपनी 25 से 30 फीसदी हिस्सेदारी को बेचने की तैयारी में है।
वह अपनी हिस्सेदारी को अक्टूबर तक प्राइवेट प्लेसमेंट के जरिए बेच सकते हैं। इसके जरिए बैंक कुल 1,000 करोड़ रुपये जुटाने की सोच रहा है जो उसके विस्तार में सहायक साबित होगा।
दिल्ली स्थित बैंक के मुख्यालय ने शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का माहौल होने के कारण पैसे जुटाने के लिए आईपीओ के बजाए प्राइवेट प्लेस्मेंट के जरिए पैसे जुटाना सही समझा है। इस बारे में एक सूत्र के मुताबिक इस वक्त आईपीओ के जरिए पैसे जुटाने की कोई संभावना नही है।
जबकि प्राइवेट प्लेसमेंट प्रक्रिया के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों मसलन जीवन बीमा निगम, यूटीआई और स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया में पंजाब एंड सिंध बैंक के शेयरों को डाइल्यूट किया जाएगा। हालांकि डाइल्यूशन प्रक्रिया सिर्फ सरकारी कंपनियों के साथ ही किया जाएगा ऐसा नही है।
प्राइवेट कंपनियों की संभावना को भी पूरी तरह से खारिज नही किया गया है। इस बारे में एक सूत्र के मुताबिक यह पूरी तरह से प्राइवेट सेक्टर की दिलचस्पी पर निर्भर करता है। प्राइवेट प्लेस्मेंट प्रक्रिया से पहले सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए बैंक की इक्विटी पूंजी को फिर से तैयार करेगी। कुल 743 करोड़ रुपये की पेड अप पूंजी में से सरकार 550 करोड़ रुपये को प्रिफे रेंशियल शेयरों और डेट इंस्ट्रूमेंटों में तब्दील करेगी। खासकर प्रारंभ के सालों में इन दोनो से मिलने वाले रिटर्नों पर छूट भी दी जा सकती है।
इक्विटी को तैयार करने के काम का अगस्त के अंत तक पूरा हो जाने की संभावना है। इस काम के पूरा हो जाने के बाद 743 करोड़ रुपये में शुद्ध इक्विटी गिरकर 180 करोड़ रुपये हो जाएगी। प्राइवेट प्लेसमेंट और कैपिटल स्ट्रक्चरिंग के बारे में यूनियन कैबिनेट के द्वारा भी जल्द ही विचार विमर्श किए जाने की संभावना है। साल 2004-05 में पंजाब एंड सिंध एकमात्र ऐसा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक था जिसे घाटा झेलना पड़ा था। लेकिन फिर उसके बाद से बैंक ने पिछले तीन वित्तीय वर्षों में मुनाफा ही दर्ज किया है।
सूत्रों के मुताबिक एक मझौले स्तर का बैंक होने के नाते खुद को बड़ा करने के लिए इसे अपने कारोबार को गति प्रदान करने की जरूरत है। बैंक के द्वारा बैड लोन की आक्रामक रूप से रिकवरी करने के कारण इसे अपने कुल एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट् को कम करने में सफलता साबित हो सकी है। 2004-05 में बैंक का कुल एनपीए जहां 17.17 फीसदी था वहीं यह 2007-08 में गिरकर 0.74 फीसदी हो गया है।