महामारी की दूसरी लहर में कोविड-19 के तेज प्रसार और उस पर काबू पाने के लिए राज्य प्रशासन द्वारा लॉकडाउन लगाए जाने के बीच गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां कर्ज पुनर्गठन योजना को बहाल करने की मांग कर रही हैं, जिससे आर्थिक व्यवधानों से प्रभावित उधारी लेने वालों को राहत मिल सके। वित्त उद्योग विकास परिषद (एफआईडीसी) ने कहा है कि उन खातों के भी पुनर्गठन की सुविधा दूसरी बार मिलनी चाहिए, जिन्होंने इसके पहले पुनर्गठन का लाभ लिया है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास को लिखे पत्र में उद्योग लॉबी समूह एफआईडीसी ने कहा, ‘कोविड-19 की दूसरी लहर को देखते हुए एमएसएमई सहित खुदरा उधारी लेने वालों और साथ ही खुदरा व थोक कारोबार से जुड़े उद्योग को कर्जदाताओं के तत्काल समर्थन की जरूरत है, जिससे आर्थिक गतिविधियां बहाल हो सकें। इस चुनौतीपूर्ण माहौल में उधारी लेने वाले और कर्जदाताओं को उम्मीद है कि रिजर्व बैंक एकमुश्त पुनर्गठन की 6 अगस्त 2020 की अधिसूचना को कम से कम 31 मार्च, 2022 तक के लिए बढ़ाएगा।
एफआईडीसी ने कहा कि उधारी लेने वाले खाते, चाहे उनका पुनर्गठन पहले भी हो चुका हो या नहीं हुआ हो, अगर 31 मार्च 2021 तक मानकों के मुताबिक रहे हैं तो उन्हें पुनर्गठन की अनुमति दी जानी चाहिए। साथ ही रिजर्व बैंक ऐसे खातों के पुनर्गठन के लिए कामत समिति की सिफारिशों के मुताबिक व्दिशानिर्देश जारी कर सकता है।
यह भी मांग की गई है कि छोटे एनबीएफसी, जिनकी संपत्ति का आकार 500 करोड़ रुपये से नीचे है और वे वित्तपोषण के लिए बैंकों पर निर्भर हैं, के पुनर्गठन की जरूरत है। एफआईडीसी ने कहा, ‘इन छोटे एनबीएफसी को बैंकों व एफआई से अपने कर्ज के पुनर्गठन (एकमुश्त) की अनुमति दी जानी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि ये छोटे एनबीएफसी आगे बैंक फाइनैंस के पात्र बने रहेंगे। उनके संपत्ति देनदारी की स्थिति में कोई अंतर नहीं है। ऐसे में उन्हें नए कर्ज के साथ उनसे थोक व खुदरा कर्ज लेने वालों को समर्थन देने की जरूरत है।’ सक्रिय कारोबारियों में छोटे एनबीएफसी की हिस्सेदारी 75-80 प्रतिशत है। एफआईडीसी के निदेशक रमन अग्रवाल ने कहा कि बड़े एनबीएफसी के विपरीत वे संसाधन के लिए वाह्य वाणिज्यिक उधारी या बॉन्डों का सहारा नहीं ले सकते।
