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सूक्ष्म वित्त क्षेत्र को ऋण लागत में मिलेगी राहत

Last Updated- December 12, 2022 | 3:42 AM IST

बैंकों के सूक्ष्म वित्त ऋण की लागत को कोष आधारित उधारी दर की सीमांत लागत (एमसीएलआर) से जोड़ा जा सकता है। साथ ही प्रति ग्राहक कर्ज की सीमा लागू की जा सकती है, जिससे कि ऋणग्रस्तता की सीमा पर काबू पाया जा सके।
सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) को भी कर्ज की लागत तय करने में उनकी उधारी की लागत के 10 प्रतिशत तक की तय सीमा से छूट दी जा सकती है। यह इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए होगा कि वे लगातार दो वित्त वर्षों में महामारी होने की वजह से कर्ज की अतिरिक्त लागत वहन करने में सक्षम नहीं होंगे।
फंड की लागत पर 10 प्रतिशत के भीतर मुनाफे के प्रावधान से बैंकों की तुलना में कर्ज का जोखिम ज्यादा होता है। इसके साथ ही एमएफआई के लिए 85 प्रतिशत क्वालीफाइंग असेट के नियम में भी बदलाव किया जा सकता है, जिससे कि वे अपनी संपत्ति की श्रेणी में विविधीकरण कर सकें। यह अहम है, क्योंकि उनमें से कुछ ऑन-टैप-एसएफबी लाइसेंस के इच्छुक हो सकते हैं और निर्धारित संपत्ति वर्ग में बहुत ज्यादा संकेंद्रण बड़ा जोखिम है, क्योंकि सूक्ष्म वित्त पहले से ही संवेदनशील क्षेत्र है।
उद्योग जगत से जुड़े सूत्रों ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के इस क्षेत्र पर लागू होने वाले नियामकीय ढांचे को सुसंगत बनाने के परामर्शक दस्तावेज में इसका उल्लेख हो सकता है, जो इस पखवाड़े जारी होने की उम्मीद है।
इस सेक्टर पर बैंकों व सूक्ष्म वित्त संस्थानों का कुल बकाया करीब 2,30,000 करोड़ रुपये है। इसमें एमएफआई की करीब 1,37,000 करोड़ रुपये की बड़ी हिस्सेदारी शामिल है, जिसमें लघु वित्त बैंक (एसएफबी) भी शामिल हैं।
बैंकों की लागत को एमसीएलआर से जोडऩे से न सिर्फ ऐसे कर्ज के फंड की लागत में कमी आएगी, बल्कि आरक्षित निधि- नकद आरक्षी अनुपात और वैधानिक तरलता अनुपात की जरूरतें भी कम होंगी। साथ ही परिचालन लागत पर भी असर पड़ेगा। जहां युनिवर्सल बैंकों की एमसीएलआर, एसएफबी की तुलना में कम होगा, वहीं सूक्ष्म वित्त की उधारी दर कम होगी क्योंकि वे अपना चालू व बचत खाता (सीएएसए) पोर्टफोलियो तैयार करते हैं।
बैंकों के लिए प्रति ग्राहक कर्ज की सीमा लागू किया जाना एमएफआई पर लागू ग्रामीण इलाकों में 1.60 लाख रुपये और शहरी इलाकों में 2 लाख रुपये प्रति परिवार की सीमा के मुताबिक हो सकता है, जिसमें उधारी लेने वाले की ऋणग्रस्तता की सीमा 1.25 लाख रुपये तक सीमित होगी।
इस क्षेत्र में ऋणग्रस्तता के बढ़ते स्तर और कोविड-19 के प्रसार के बाद संग्रह कम होने से लागत व्यवस्था में बदलाव और ऋणग्रस्तता की सीमा तय करने की जरूरत महसूस की गई। इससे उधारी लेने वालों की सुरक्षा हो सकेगी और साथ ही नियमन के दायरे में आने वाली इकाइयों की सेहत की भी सुरक्षा होगी और यहां तक कि इस कारोबारी मॉडल पर भी बुरा असर नहीं पड़ेगा।
सभी सूक्ष्म ऋणदाताओं को क्रेडिट ब्यूरो की रिपोर्टिंग के आंकड़े एक निर्धारित प्रारूप में देने होंगे और ग्राहक की ऋणग्रस्तता के बारे में ज्यादा सटीक जानकारी मिल सकेगी।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस साल फरवरी में कहा था कि बैंकिंग नियामक एक परामर्शक दस्तावेज लेकर आएगा, जिससे नियमन के दायरे में आने वाले विभिन्न कर्जदाताओं- बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों या एनबीएफसी और एसएफबी पर लागू नियामकीय ढांचे को सुसंगत बनाया जा सके।
असम सरकार द्वारा पारित माइक्रो फाइनैंस इंस्टीट्यूशंस (रेगुलेशन आफ मनी लेंडिंग बिल, 2020) को केंद्रीय बैंक के कदम के पीछे मुख्य वजह माना जा रहा है, इस नियमन को लेकर उद्योग बंटा रहा है। यह मसला एक बार फिर चर्चा में आ गया है क्योंकि इस पर असम सरकार और माइक्रोफाइनैंस नेटवर्क आफ इंडिया (एमएफआईएन) के बीच पिछले 10 दिन से बातचीत चल रही है।
एनबीएफसी-एमएफआई के कर्ज की लागत पिछले कुछ वर्षो में 3 से 5 प्रतिशत कम हुई है, जबकि बैंकों द्वारा एमएफआई को उधारी की लागत नहीं कम हुई है, जबकि ब्याज दरें कम हो रही हैं। कुछ प्रमुख बैंक एमएफआई से 24 से 26 प्रतिशत तक वसूलते हैं, जबकि एनबीएफसी-एमएफआई से अधिकतम उधारी दर 21.50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

First Published - June 14, 2021 | 12:00 AM IST

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