भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जानकीरमण ने कहा है कि कर्मचारियों में सहानुभूति का भाव नहीं होने के कारण बैंकों खास तौर पर डिजिटल बैंकिंग में ग्राहकों की शिकायतें बढ़ रही हैं। पुणे में नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बैंक मैनेजमेंट में 12 जुलाई को मुख्य भाषण देते हुए स्वामीनाथन ने कहा कि बैंकरों को करुणा के साथ काम करना चाहिए। ग्राहक सिर्फ ‘राजा’ नहीं, बैंकिंग प्रणाली में भरोसे की बुनियाद भी है।
स्वामीनाथन का भाषण रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर मंगलवार को अपलोड किया गया। इसमें उन्होंने यह भी कहा कि दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं के कारण शिकायतें नहीं बढ़ीं बल्कि इनमें इजाफा ग्राहक सेवा के प्रति निजी जुड़ाव नहीं होने और मशीनी नजरिया अपनाने से हुआ है। स्वामीनाथन ने कहा, ‘बैंकिंग प्रणाली में स्वचालन प्रक्रिया तो बढ़ रही है लेकिन स्वामित्व अथवा जिम्मेदारी का भाव कम हो रहा है।’
उन्होंने कहा कि बैंकिंग प्रणाली में आम तौर पर पहले से लिखे ईमेल के जरिये जवाब दिया जाता है। ग्राहक हेल्पलाइन के जरिये बात करना चाहे तो वहां भी जटिलता खत्म ही नहीं होती। उन्होंने कहा, ‘भरोसा इस तरह नहीं कमाया जाता और व्यवस्था भी ऐसी नहीं रहनी चाहिए। कोई बुजुर्ग एटीएम ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। उधार लेने वाला ग्रामीण डिजिटल तरीके से कर्ज चुकाना नहीं जानता। छोटे कारोबारी को यूपीयआई रिफंड की चिंता रहती है। यह सेवा की नहीं भरोसे की बात है।’
स्वामीनाथन ने जोर देते हुए कहा कि बैंकिंग क्षेत्र में सफलता के लिए चुनौतियों से तुरंत निपटने और दीर्घकालिक जिम्मेदारियां उठाने की क्षमता होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘तेज होना काफी नहीं है; आपको फुर्तीला एवं सहनशील भी होना चाहिए। फुर्ती आपको सामने आने वाली दिक्कतों से बचने में मदद करती है। सहनशक्ति आपको लक्ष्य के लिए डटे रहने में मदद करती है। आपको दोनों की जरूरत होगी।’ उन्होंने समझाया कि केवल धन संभालने को बैंकिंग नहीं कहते बल्कि यह भरोसे को संभालना है। डिप्टी गवर्नर ने स्पष्ट कहा, ‘आपके निर्णय व्यक्तियों, परिवारों, व्यवसायों और समुदायों को प्रभावित करेंगे। आप वित्तीय समावेशन, डिजिटलीकरण, ऋण वृद्धि और आर्थिक स्थिरता में भूमिका निभाएंगे। यह कोई छोटी जिम्मेदारी नहीं है।’
उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय बैंकिंग का भविष्य नीतियों और प्रणालियों के जरिये ही तय नहीं होगा बल्कि खुद को ढालने की क्षमता, दूरदर्शिता, लचीलापन और सहानुभूति भी इसमें शामिल होगी। उन्होंने कहा, ‘बेहतर बैंकर बनने के लिए वास्तव में आपको अपने ज्ञान के साथ निर्णय लेना, कानून के साथ परंपरा को लेकर चलना एवं सिद्धांत के साथ अपने कर्म का तालमेल बनाना सीखना होगा।’
टाइटैनिक का जिक्र करते हुए स्वामीनाथन ने कहा कि जहाज इसलिए नहीं डूबा कि आइसबर्ग नहीं दिखा था बल्कि इसलिए डूबा क्योंकि वह देर से देखा गया था। उन्होंने साइबर हमलों, फिशिंग और डीपफेक जैसे खतरों के बीच हालात को समझना सीखने का सुझाव दिया और कहा, ‘आम जिंदगी की तरह बैंकिंग में भी हमेशा सबसे बड़ा या सबसे उन्नत सिस्टम ही सफलता नहीं दिलाता, बल्कि सतर्कता और हालात को समय रहते ठीक करने से कामयाबी मिलती है।